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स्वतंत्रता दिवस और हम……………

परिवर्तन की ओर.......
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स्वतंत्रता दिवस और हम……………

15 अगस्त 1947 एक लम्बे संघर्ष के बाद भारत आजाद हुआ. न जाने कितने शहीदों के लहू से इस देश की धरा को सींचा गया. बड़े अदभुद थे वो लोग जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. उन्होंने अपना आज हमारे आज के लिए बलिदान कर दिया भविष्य के लिए उन्होंने अपना वर्तमान त्याग दिया.
उन्हें पूरा यकीन था की हम उनके सपनो के भारत का निर्माण करेंगे. एक ऐसा भारत जहाँ देश के उत्थान के लिए हर नागरिक अपना कर्त्तव्य निर्वहन पूर्ण समर्पण से करेगा. एक ऐसा भारत जहाँ सभी जातियों व धर्मो के लोग प्रेम भाव से रहेंगे और राष्ट्र निर्माण के लिए अपने निजी स्वार्थो को ताक पर रख देंगे.
वो सोचते थे की आजादी का दिन इस देश में होली, दिवाली, ईद, बैशाखी से भी अधिक धूम धाम से मनाया जायेगा. शायद इसी लिए वो कह गए ……….
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले.
वतन पर मरने वालो के यही बाकि निशां होगे.
पर क्या हम उनकी अपेक्षाओं पर खरे उतरे है. जबसे देश आजाद हुआ है हमने केवल अपने बारे में सोचा है. मेरा भारत महान कहने वाले कई लोग मिल जाते है पर उसमे उनका क्या योगदान है ये वो नहीं बता पाते. मानो उनके यहाँ पैदा होने से ही ये देश महान हुआ हो. इस देश के लिए जो लोग कुर्बान हो गए उनके सपनो के भारत को हमने कही खो दिया.
एक ऐसा भारत जहा भूख, भय, भ्रष्टाचार से रहित समाज होगा ये सपना हमने तोड़ दिया है. हमने एक ऐसा भारत बना दिया है जहा केवल भय है भूख है और हर तरफ भ्रष्टाचार है. जहा करोडो की आबादी भूखी है. जहाँ कभी भी कुछ भी होने का भय है. जहा एक छोटा सा मुल्क जिसकी हमारे शहीदों ने अलग होने की कल्पना भी नहीं की थी उसके कारन भय पैदा हुआ है. और भीड़ में मेरा भारत महान कहने वाले नेता लोग कॉमनवेल्थ खेलों में अदभुद भ्रष्टाचार का नमूना पेश कर चुके है. ये भूल जाते है की केवल कहने भर से ही भारत महान नहीं हो सकता है. निसंदेह भारत एक महान देश था. जहा 23 साल की उम्र में भगत सिंह ने फांसी के फंदे को हस्ते हस्ते चूम लिया. 15 साल के चंद्रशेखर आजाद ने अपने नाजुक शरीर पर हंटर खाए. सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गाँधी, सुखदेव और राजगुरु जैसे लोग आत्मोत्सर्ग करने को तैयार रहे. और अपना बलिदान किया.

आज हम उस दिन को जिस दिन के लिए ये सब अपना सब कुछ कुर्बान कर गए उसको हमने केवल अवकाश का दिन बना दिया. इस बार इत्तफाक से ये महापर्व रविवार को पड़ा है. कई लोग ऐसे है जो परेशां है क्योकि दो छुटियाँ एक ही दिन पड़ने से एक छुट्टी का नुक्सान हुआ है. बड़े दुर्भाग्य की बात है की वो लोग जिन्होंने हमारे आज को सजाने के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया. उनके बलिदान को सम्मान देने वाले दिन को हम अपनी छुट्टियो का हिसाब कर रहे है.

इन महापर्वों पर हमे मन से 2 मिनट का मौन रखना चाहिए. उन शहीदों की याद में नहीं जो इस दिन को लाने के लिए मर मिटे. अपितु अपनी अंतरात्मा की मौत के शोक के रूप में. उस देश का कभी कुछ नहीं हो सकता जिस देश के लोगो की अंतरात्मा मर चुकी हो. और भले ही ये बात लोगो को चुभे पर भारत के लोगो की जो मेरा भारत महान कह कर अपने अहं को तृप्त करते है अंतरात्मा पूरी तरह से मर चुकी है.. और जिन कुछ की अभी जिन्दा है उसकी अंतरात्मा को मरने की लोग पूरी तरह से तयारी कर रहे है.
भारतीयों की अंतरात्मा के मर जाने का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा की कॉमनवेल्थ खेलों में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला करने के बाद भी नेता इसपर कुछ करने को तैयार नहीं है. क्योकि वो जानते है की जिनसे उन्होंने वोट मांगना है वो खुद उनके भ्रष्टाचार को आदर्श मान कर अपने लिए नए मार्ग प्रसस्थ करेंगे………

जब तक हम अपने को बदलने की कोई कोशिश नहीं करते तब तक ये 15 अगस्त, 26 जनवरी जैसे महापर्वो का कोई अर्थ नहीं रह जाता है……….

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जय हिंद …………. जय भारत…………
अमर हैं वो शहीद जो इस देश के और हमारे आज के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर गए…..
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