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उच्च कुलीन मानसिकता………

परिवर्तन की ओर.......
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उच्च कुलीन मानसिकता………
आज अचानक एक मित्र का वक्तव्य सुनकर हैरानी हुई. उसने कहा की कम से कम तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी. बड़ी हैरानी हुई. साधारणतः अपने निकटस्थ लोगो की उम्मीद के विरुद्ध कार्य करना मेरे लिए असंभव सा है. ऐसा कुछ मै यू ही नहीं करता जो मेरे आचरण के प्रतिकूल हो. मैंने बिना कारण जाने तर्क दिया की हो सकता है की उसके पीछे कोई ठोस कारण हो. उसने कहा नहीं …. इस के लिए कोई ठोस कारण का बहाना हो ही नहीं सकता है…… अब जिज्ञासा हुई की आखिर ऐसा मैने क्या कर दिया जिसकी मेरा मित्र मुझसे कल्पना भी नहीं कर सकता था.

काफी देर उलझाये रखने के बाद वो बोला की social networking site ऑरकुट पर तुने उच्च कुलीन ब्राह्मण नाम की कम्युनिटी को प्रोमोट किया है. तुम कब से उच्च कुलीन हो गए. मै थोडा हैरान था क्योकि इस नाम की कम्युनिटी का प्रोमोशन एक बार मेरे प्रोफाइल मै डिस्प्ले हुआ था और जिसने इसे बनाया था उसको मैंने इस विषय पर कमेन्ट भी किया था. मै अनभिज्ञ था की आखिर इस को मैंने प्रोमोट किया कब.

ऑरकुट में जब भी आप किसी प्रोमोशॉन को प्रोमोट करते है तो वो आपके सभी मित्रो के होम पेज पर डिस्प्ले होने लगता है. अब न चाहते हुए भी न जाने कैसे वो प्रोमोट हो गया. लेकिन अपने मित्र की बात से मुझे इस विषय पर लिखने का विचार आया. ये मात्र उन तथा कथित लोगो के लिए है जो हर जगह अपने उच्च कुलीन होने का दंभ भरते नजर आते है.

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ये विषय बड़ा हास्यास्पद है ….. उच्च कुलीन…. ये शब्द अहं का प्रतिक है…… इंसान का ह्रदय विरोधाभासो से भरा है. किसी संपन्न व्यक्ति की जोकि अपनी पैत्रिक संपत्ति से अमीर बना हो की चर्चा आने पर वो भी जब की वो अनिल अम्बानी या मुकेश अम्बानी जैसा कोई हो तो हमारी प्रतिक्रिया होती है की इसमें बड़ा क्या है खुद की मेहनत का तो है नहीं पैत्रक सम्पति है. खुद से कोई इतना बड़ा बने तो बात है. मगर जब कोई स्वयं से बड़ा बन जाता है तो हम उसकी मेहनत को किस्मत का नाम दे देते है. और कहते है की इसकी किस्मत थी जो इसे वहा तक ले गयी.

लेकिन जैसे ही धर्म की बात आती है तो ये तथाकथित उच्च कुलीन लोग कहते है की हमारे पूर्व जनम के कर्मो का फल है की हम इस कुल में जन्मे. अर्थात स्वयं ही सिद्ध कर दिया की हम पिछले जनम में कोई बहुत भले और सुकर्मी इंसान थे. ये अहं ही है जिसे अलग अलग रूप में संतुष्ट किया जा रहा है.

अपने को उच्च कुलीन सिद्ध करने की होड़ में हम भूल जाते है की वास्तव में जनम से खुद को उच्च कुलीन कह कर हम उस कुल की गरिमा को ख़तम करते है जिस में हम जन्मे. क्या जनम किसी की श्रेष्टता का मानक हो सकता है. ये तथाकथित जन्मजात ब्राह्मन अपने को उच्च कुलीन बताने में इतना व्यस्त है की जहा मौका मिले ये खुद को उच्च कुलीन बताने का मौका नहीं छोड़ते है. और दूसरी और कबीर, दादू, रैदास, चैतन्य, मीरा जैसे न जाने कई लोग खुद को हर संप्रदाय हर वर्ण से दूर रख कर सभी के लिए एक आदर्श बन जाते है.
दूसरी और उच्च ब्राह्मन कुल में जन्मा रावन हमेशा राक्षशो में गिना गया. जबकि रावन केवल जनम से ही ब्राहमण नहीं था उसने ब्रह्म को जाना भी था. उस समय कुछ गिने चुने ब्रह्म ज्ञानियो में उसका नाम था. लेकिन उसको उसके अहम् ने राक्षश बना दिया. और उसके अहम् के कारणों में उसकी माता के गुणों को जोकि रक्षशी थी को वजह बताया जाता है. तो जो लोग बिना ब्रह्म को जाने ब्राहमण बने है वो क्या रावन के उन राक्षशी गुणों से ही भरे नहीं है.

वास्तव में ब्राहमण जैसी कोई जाती है ही नहीं. जिस तरह बालक पढ़ते पढ़ते स्नातक, स्नातकोत्तर, चिकित्सक, इंजिनीयर आदि की उपाधि लेता है. उसी तरह ब्राहमण मात्र एक उपाधि है. जिसने ब्रह्म को जाना वो ब्राहमण. लेकिन हर बार इंसान अपने अहं को तृप्त करना चाहता है. तो जब ब्राहमणों के बच्चे उनकी ब्रह्म तक पहुचने की परंपरा को निभाने में समर्थ नहीं रहे तो उन्होंने इसे जाति का रूप दे दिया. अब जो ब्राह्मन का बच्चा वो ब्राहमण ये कटु सत्य है. की अगर चिकित्सक का बच्चा बिना चिकित्सा विज्ञानं को जाने चिकित्सक नहीं हो सकता है तो ब्रह्म को जाने बिना किसी का ब्राह्मन होना संभव नहीं है. और ब्रह्म को जानने के लिए जनम नहीं कर्म पर जोर होना आवश्यक होना है.

दधिची जैसे त्याग की कल्पना भी नहीं की जा सकती किन्तु किसी जरूरत मंद की मद्दत अपने किसी जरुरी काम को रोक कर अगर कोई गैर ब्राहमण भी करे तो उसे ब्राहमण कहलाने का अधिकार है. किन्तु जो ऐसा त्याग करता है उसे ब्रह्मण कहलाने में कोई दिलचस्पी नहीं रहती.

अपने अहम को तृप्त करने के लिए ये तथाकथित उच्च कुलीन लोग और आगे बढ़ जाते हैं. फिर एक ही घर मे भी बटवारा हो जाता हैं. बड़े भाई के अग्रगामी बड़े पंडित और छोटे भाई के छोटे पंडित. मगर नयी पीडी के लोगो से ये सुनना अजीब सा लगता हैं की जब एक लड़का जो जींस टी-शर्ट पहने घूमता हैं और खुद को ऊँची धोती वाला पंडित कहता हैं . पहले ये तो सीखो के धोती पहनी कैसे जाती हैं. और संभाली कैसे जाती हैं, एक रुमाल संभलने का ज्ञान नहीं और बात ऊँची धोती सँभालने की.

अब इस पुरे लेखन के बाद एक और बात में जोड़ना चाहता हु इसके बिना शायद मेरे शब्दों को अर्थहीन बताने के तर्क दिए जा सकते है. जब इस कम्युनिटी को प्रोमोट करने वालो से मैंने संपर्क किया तो उनका तर्क था की वो केवल उच्चकुलीन ब्राहमणों को एकजुट करना चाहते है. और इस पर मेरा तर्क था की ये एकजुट करना नहीं बिखराव लाना है. जब आप एक जैसे लोगो को एक जुट करते है तो इसका सीधा अर्थ है की आप बाकी लोगो से अलग होना चाहते है. जो आपको ओरो से अलग करे ऐसे एकजुटता का कोई अर्थ नहीं है. तब एक उत्तर मेरे पास आया था की i think you are not eligible for this community so you are making arguments . लेकिन क्या उस कम्युनिटी को ज्वाइन करने से में उच्च कुलीन ब्रह्मण हो जाता. यदि ऐसा हो सकता है तो फिर उच्च कुलीन निम्न कुलीन का अर्थ क्या सभी लोग आ आ कर ये कम्युनिटी ज्वाइन करे और उच्च कुलीन ब्रह्मण बन जाये.
अगर इस सोच को आप ब्राह्मण कहते है तो में ब्राह्मण नहीं हु. और अगर आपको लगता है की जनम से ब्राह्मण होना संभव है तो इस कम्युनिटी के बड़े बड़े ब्राह्मणों में मेरा नाम होना चाहिए कियो की जन्म से में उच्च कुलीन हु. किन्तु मेरा मानना है की में अभी कुछ नहीं हु और मुझे ब्राह्मण बनना है.

सभी लोग जो जनम से ब्राह्मण नहीं है वो ख्याल रखे की इन तथाकथित ब्राह्मणों की बातो को ध्यान न दे कर खुद को ब्राह्मण बनाने का प्रयास करे. ब्रह्म को पाने के लिए किसी योग्यता की जरूरत नहीं. वो सभी के अंतरतम में वियाप्त है. उसको पाने के लिए किसी कुल विशेष में जनम लेने की नहीं अपितु ह्रदय में भाव की जरूरत है. वो भाव भक्ति का हो तो उसके बनाये हर प्राणी में उसको पाया जा सकता है.

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