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ये कैसी आज़ादी…

परिवर्तन की ओर.......
परिवर्तन की ओर.......
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कुछ घंटो बाद तारीख बदल जाएगी. और वो तारीख आ जाएगी जिसे लाने के लिए न जाने कितने भारत माँ के सपूतों ने अपना बलिदान दिया. इस देश को आजाद हुए 63 साल हो जायेंगे. पर इसकी तस्वीर में कोई बदलाव नहीं आया. अपितु तस्वीर बदरंग ही हुई है. ये देश भ्रष्ट्राचार ने खोखला कर दिया है. अंग्रेजो के समय में हमको लुटा गया पर हमारा देश बदला भी. माहौल अब भी वही है बस लुटने वाले अब अपने है और वो केवल लुट ही रहे है. आज से 100 साल पहले अंग्रजो की बनायी इमारते, पुल सड़के आज भी शान से उनकी श्रेष्ठता का बखान कर रही है. और इन नेताओं के बनाये स्कूल,सड़क, अस्पताल हरदम भय देते है. क्या ये आजादी ही हमारे शहीदों का सपना थी. क्या भय, भूख और भ्रष्ट्राचार से भरा भारत उनका सपना था…..
क्या इन नेताओं की गुलामी उन अंग्रजो से बेहतर है. हर बार हम पुराने नेता को हटा कर सोचते है हमने बदलाव कर दिया. पर क्या वो नया नेता पहले से अधिक भ्रष्ट नहीं है……
दुष्यंत कुमार ने कभी अपने एक शेर में कहा था.
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कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए,
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है…
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तब से आज तक भी कोई बदलाव नहीं आया है. बेशक हमारी अर्थव्यवस्था के आकडे कुछ भी क्यों न कहते हो. पर कोमंवेल्थ खेलो में आने वाले देश यहाँ आयोजन की व्यवस्था देख कर दुष्यंत कुमार के कहे हिंदुस्तान को ही देखेंगे.
आज ये सवाल हमें अपने से पूछना होगा की ये आजादी ठीक है या वो गुलामी. क्योकि आज भी हम चंद नेताओं के बनाये नियमो को मान रहे है. बस फर्क इतना है की गुलामी के दिनों में ब्रिटिश सरकार हमारे ऊपर कुछ काबिल अंग्रजो को नियूक्त कर देती थी और अब हम खुद कुछ भ्रष्ट लोगो में से किसी एक अच्छे भ्रष्ट को अपना नेता चुन कर अपने ऊपर राज करने को भेज देते है.
ये हमारे देश का दुर्भाग्य है की यहाँ चपरासी बनने की लिए आपको परीक्षा पास करनी पड़ती है जहा आपको अपने से योग्य अभियार्थी को हरा कर जीतना पड़ता है. पर राजनीती में आपको अपने जैसे ही भ्रष्ट को हरा कर आगे आना पड़ता है. आपको भले ही अपने घर में अयोग्य माना जाये पर सत्ता में आते ही आप गृह मंत्री बन सकते है. आपको भले ही अपना घर खर्च चलाना न आता हो पर आप वित्त मंत्री बनकर पुरे देश का खर्च चलने के लिए बजट बना सकते हो. आप अपनी रक्षा कर पाने में असमर्थ हो पर आपको रक्षा मंत्री बनाया जा सकता है. आपको क़ानून का कुछ पता नहीं पर आप कोई भी क़ानून कभी भी बना सकते है.
भगवान न करे की कभी ऐसा हो की वे शहीद वापस इस भारत में आये जिन्होंने इसकी आजादी के लिए अपनी जान दे दी थी. यदि वो आ जाये तो वो भी अपनी बात कुछ ऐसे ही कहेंगे………….
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यों पहले भी अपना-सा यहाँ कुछ तो नहीं था
अब तो और भी नज़ारे हमें लगते हैं पराए.
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खैरात में मिली आजादी का हमने बहुत दुरुप्रयोग कर लिया है. अब तो जागना ही होगा. हमने तय करना होगा की हम वोट यूँ ही नहीं देंगे. न धर्म के नाम पर न जाति के नाम पर और न ही अपने निजी स्वार्थ के लिए. हम सभी हर उस जगह सामूहिक रूप से मतदान का बहिष्कार कर देंगे जहाँ कोई प्रत्याशी हमारा नेता बनने योग्य नहीं होगा. और यदि हो सके तो हम अपनी और से किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे हम योग्य समझते है की वो हमारे देश के विकास के लिए हमारी आवाज़ बन सकता है को अपने बीच से खड़ा करके जिताएंगे. जब तक ऐसी परंपरा शुरू नहीं होगी तब तक राजनैतिक दल हमे ऐसे ही नेता चुनने को देंगे जो 5 साल में अपनी 5 पुश्तो के लिए कम जायेंगे.
वे लोग जो दंभ से मेरा भारत महान कहते फिरते है उनके लिए दुष्यंत कुमार जी का एक और शेर याद आता है……………
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तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं
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अगर अब भी हम ने अपनी सोच नहीं बदली और इसी तरह अपने नेता चुनते रहे और इसी तरह व्यस्था को बदलने की जगह अपना काम चानले की सोचते रहे तो एक दिन यु भी आएगा जब हमको अपनी बात कुछ यूँ कहनी पड़ेगी………
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हमको पता नहीं था हमें अब पता चला
इस मुल्क में हमारी हक़ूमत नहीं रही
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