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आज आजादी की 63 वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या में मै ये सोचता हूँ की आखिर कैसा हो मेरा भारत, वर्तमान समय में हर इंसान अपनी पूरी ज़िन्दगी ये सोचते हुए बिता देता है की उसका घर कैसा हो. उसका जीवन स्तर कैसा हो. उसका भविष्य कैसा हो….. मगर पूरा जीवन बीत जाता है और वो कभी नहीं सोचता की उसका देश कैसा हो.
वो देश जिसके लिए न जाने कितने बेटो ने अपने माता पिता को कितने पिताओं ने अपने बच्चो को छोड़ कर आत्म बलिदान दिया, उस देश में आज हम अपने से अलग कुछ सोचने को तैयार नहीं है. हम अक्सर अपने देश के बारे में निराशाजनक टिप्पणी करते है, लेकिन जैसे ही कोई बदलाव की बात करता है. हम उसका साथ छोड़ देते है. वो अकेला रह जाता है. क्योकि हम चाहते है की बदलाव हो पर उसे करे कोई और. कुछ ऐसे लोग गुलाम भारत मे भी थे जो चाहते थे की देश आज़ाद हो और लोग उसे आज़ाद करा लें. अगर उस समय ये लोग भी आन्दोलन मे कूद पड़ते तो देश कुछ साल और पहले आजाद हो जाता……..
भारत के प्रति मेरे कल्पना है की ये एक ऐसा देश बने जहा केवल एक धर्म हो और वो हो राष्ट्र धर्म हो, देश के लिए आत्मोत्सोर्ग होने की भावना से भरने वाला धर्म. देश मे हिन्दू, मुस्लिम, सिख ईसाई सभी रहे. और वो अपने धर्म को राष्ट्रधर्म से जोड़ कर उन्नति के लिए कार्य करे. सभी काम शिष्टाचार से पुरे हो भ्रष्ट्राचार से नहीं. एक परिवार की भांति सब मिलजुल कर रहे. योग्य को उसकी योग्यता का पूरा पुरस्कार मिले. देश हित के लिए काम करने वाले लोगो को सम्मान मिले. भ्रष्टाचार फ़ैलाने वालो को देशद्रोह की सजा दी जाये.
देश में राजनीती अपनी जेबें भरने का जरिया न रहे. लोगो का पैसा संसद में हंगामे की भेट न चढ़े. हर मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष बैठ कर सर्वसम्मत राय बनायें. विपक्ष अपना योगदान दे योजनाएँ बनाने में. वो सदन में जिस बात पर कुर्सी फेक कर मार रहा है. उस बात को पहले ही बैठ कर सुना जाये और अगर वो काबिले गौर हो तो उसको अमल में लाया जाये. नहीं तो सदन में उसका उल्लेख कर के बताया जाये की अगले सदस्य की राय ये थी और इन इन कारणों से उसको नाकारा गया. योजनाये केवल इस लिए न बंद हो जाये की वो विपक्ष की राय है और इस से सत्ता पक्ष को नुक्सान हो सकता है. उसको पूरा किया जाये क्योकि निजी स्वार्थ से देश हित ऊपर होना चाहिए.
भाजपा के समय में नदियों को जोड़ने के सम्बन्ध में एक योजना बनायीं गयी थी. जिससे सुखा प्रभावित इलाको को पानी दिया जा सकता था और बाढ़ से हर साल प्रभावित होने वाले क्षेत्रों को बचाया जा सकता था किन्तु ये योजना दलगत राजनीती की भेट चढ़ गयी.
इस तरह इन योजनाओं को ठन्डे बसते में डालकर देश का विकास अवरुद्ध होता है. ये उस भारत में नहीं होना चाहिए जो विश्व समुदाय का प्रतिनिधित्व कर सकता है.
हम एक विश्व समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले भारत के लोग हैं ये भारत कही खो गया है. उसको नेताओं और भ्रष्ट्र सरकारी अधिकारी और कर्मचारिओं ने कही दबा दिया है इस भारत के समभंद में ये शेर कहा जा सकता है जो दुष्यंत कुमार जी ने लिखा है..
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मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे
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जय हिंद ………..
जय भारत……………
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