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जन गन मन अधिनायक भारत भाग्य विधाता…………….
ये गीत भारत का राष्ट्रगान के रूप में गया जाता है.. इसके लिए हम आंदोलनों के लिए तैयार रहते है. किसी फिल्म में इस गाने को कुछ अलग तरह से फिल्माया जाये तो हम सडको पे उतर आते है या फिर अपने लेखो से एक आन्दोलन चलने का आहवान कर देते है. की ये राष्ट्रगान का अपमान है और इस की शान के लिए हम मरने मारने को तैयार है.
मुझे ये लगता है की खुद को देशभक्त सिद्ध करने का ये हमारे पास आसान तरीका है. की राष्ट्रगान का अपमान होने पर हम आन्दोलन कर दे. क्योकि तब हमको हर भारतीय का साथ मिल जाता है. इतने सस्ते में यदि ये सिद्ध हो जाये की आप देश भक्त है तो बुराई क्या है. ऊपर से इसमें विरोध की गुंजाईश भी नहीं है. कियुकी विरोध करने वाला देशद्रोही मन जायेगा और इतना जोखिम कोई लेगा नहीं.
हाँ अगर इस के स्थान पर आन्दोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाना होता तो शायद हम पीछे हट जाते.. क्योकि अपना नुक्सान कौन खुद करेगा.. अभी दो चार पैसे जो इस तरह से आ रहे है वो बंद हो जाये तो घर कैसे चलेगा. या फिर जो गैर कानूनी काम कुछ पैसे दे कर हो जा रहे है वो कैसे होंगे. घर बैठे हाई स्कूल और इंटर कैसे होगा. बच्चों की नौकरी कैसे लगेगी. घर पर बैठे बैठे राशन कार्ड वो भी गरीबी रेखा से नीचे का …… घर बैठे बैठे ड्राइविंग लाइसेंस वो भी 15 साल के लड़के का कहा से बनेगा…………….
मगर लोगो का क्या, जिसको खाने को नहीं मिला वो ही कहता है की भ्रष्ट लोग देशद्रोही है. तो कैसे अपने को देश भक्त कहें. तब एक मुद्दा मिलता है, फलानी फिल्म में राष्ट्रगान गया गया है एक और राष्ट्रगान चल रहा है और दूसरी और लोग चलते फिरते दिखाई दे रहे है. ये कैसे ये तो अपमान है देश के राष्ट्रगान का……….. राष्ट्रगान के समय तो सबको सीधे खड़ा होना होता है. जहा तक उसकी आवाज़ सुने दे………वहा तक…
फिर क्या निकल पड़े की देश का अपमान हुआ है और हम आवाज़ उठाएंगे….. कुछ संगठन जो कभी कुछ नहीं करते वो भी आन्दोलन में कूद पड़ते है…………
ये सब क्या है………… कब तक ये सब चलेगा…….. इस देश को हम बेचने पर तुले है. और चिंता हमे राष्ट्रगान की……… वो भी किस राष्ट्रगान की क्या कभी ये सोचा है…………
राष्ट्रगान 1911 में जार्ज पंचम के आगमन पर गाया गया था. उसकी स्तुति गान के रूप में… अगर आप इस के लिए बने नियम पर गौर करे तो आपको लगेगा की आजभी हम जार्ज पंचम के सम्मान में खड़े है. और उसको कह रहे है,, की तू भारत का भाग्य विधाता है और तेरे जय हे………….. भारतीय परंपरा में चाहे वो हिन्दुओं में हो चाहे मुस्लिमों में या अन्य किसी भी धर्म में, की जब उनका धर्म श्लोक गाया जाये या कुरआन का पाठ हो तो सब सीधे खड़े हो कर रुक जाये……… पर अगर आप गौर करे तो अंग्रजों में ये परम्परा है की जब राजा या रानी आये तो सब झुक कर अपनी अपनी जगह पर सीधे खड़े हो जाते है……
अपनी श्रधा या सम्मान प्रकट करने के लिए कान में शब्द पड़ते है. अपनी जगह पर खड़े होने से कुछ नहीं होता…… इसके लिए चलते चलते भी अगर आप अपने अन्दर देश प्रेम का भाव ले आयें तो राष्ट्रगान की सार्थकता पूर्ण हो जाये…………
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जय हिंद ………………….
जय भारत…………………..
शहीदों को शत शत नमन…………………
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