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आखिर पुलिस वाले भी तो इंसान ही हैं……….

परिवर्तन की ओर.......
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पुलिस ………. खौफ का पर्याय …………. भ्रष्टाचार का बीभत्स रूप………… और ना जाने क्या क्या……
इन सब के उलट उत्तराखंड में पुलिस को एक अलग नाम मिला…………… मित्र पुलिस..…….. जैसे ही उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड पुलिस को नाम दिया उत्तराखंड पुलिस मित्र पुलिस तो, तत्क्षण ये प्रश्न मेरे मस्तिष्क में ये आया की आखिर किस की मित्र…………..
बेइमानो की ………… अपराधियों की…. या किस की क्यों की हर किसी का ये मानना है की पुलिस इनकी ही मित्र है….. आम आदमी की पुलिस को कहाँ फ़िक्र है…….

पर पुलिस को कोसने से पहले हम ये बिलकुल भूल जाते हैं, की वो भी हमारी और आपकी तरह एक इंसान है…….
उसको कोसने से पहले हमें ये याद रखना चाहिए की क्या हम पाक साक हैं…….. क्या हमें हक़ है किसी को कोसने का…………
क्या कभी आपने सोचा है की क्यों एक अच्छा खासा आदमी पुलिस में जाते ही उपरोक्त श्रेणीओं में गिना जाने लगता है………..
आखिर कैसे वो भ्रष्टाचार का पर्याय बन जाता है…….. आखिर हम आमजन की जान माल की सुरक्षा करने वाले को क्यों इतना बुरा भला कहते हैं………

जरा अपने आपको उस अवस्था में रख कर देखिये………. उसका कार्यक्षेत्र, उसपर पड़ने वाला दबाव और अन्य परिस्थितयां …………………..

मैं आपको एक सरकारी कर्मचारी और एक पुलिस वाले के बीच तुलना कर के दिखता हूँ.. फिर आप खुद निर्णय लें की क्या ये पुलिस वाले वास्तव में गलत हैं……. क्या हम इनके साथ कोई न इंसाफी नहीं कर रहें हैं…………

एक सरकारी कर्मचारी का वार्षिक रिपोर्ट कार्ड ………………….

सुबह 11 बजे ऑफिस में प्रवेश ………………… मुह में पान भरा है………. आते ही पास की दिवार पर पान थूक कर चपरासी को चाय लाने का आर्डर दिया गया…………..
सामने एक बुढा  आदमी खड़ा है जो 10 बजने से 10 मिनट पहले आ गया था ताकि यहाँ से जल्दी निपट कर कुछ और काम भी निपटा ले……. अब वो  बुढा आदमी कर्मचारी से कहता है……
साहब थोडा काम से आया था. गरीबी रेखा से नीचे का राशन कार्ड बनवाना है……….
साहब :: अबे आते ही तू तो सर पे चढ़ गया……….. अभी काम शुरू होने में समय है…..
बुढा: पर साहब मैं सुबह 10 बजे से यहाँ आके खड़ा हूँ………….
साहब : अबे तू सुबह 7 बजे आ जाता तो क्या मैं 8 बजे से ही काम शुरू कर दूंगा………..तू तो खाली है…. मगर हमारे तो 50 काम हैं……. थोड़ी देर में आना तब तक दुसरे काम निपटा ले……………
बुढा : साहब दूसरा काम भी सरकारी ऑफिस में ही है……….
साहब: साले कहना क्या चाहता है, की सरकारी कर्मचारी काम नहीं करते……. जा अब नहीं करते तेरा काम …….. करले जो करना है….
बुढा: माफ़ी साहब, मैं ऐसा नहीं कह रहा था… साहब खेती बाड़ी रही नहीं ….. शरीर में मजदूरी लायक बल नहीं रहा है…. अगर गरीबी रेखा से नीचे का राशन कार्ड हो जाये तो मुफ्त आनाज से बुढा, बुढिया का बुढ़ापा कट जाये……….
साहब: एक बार बोल दिया न की अब नहीं करूँगा …….. साले ने सुबह सुबह पूरा मूड ख़राब कर दिया…. ये साला चपरासी पता नहीं चाय लेने कहा चला गया…………….
बुढा: साहब क्या आज हो नहीं पायेगा……….
साहब: साले एक बार बोल दिया न अबकी ज्यादा दिमाग खायेगा तो कभी नहीं होगा……..
बुढा चला गया…………..
अब साहब चले दूसरी मेज पर गप्प मारने ……………… फिर एक सूट पहने आदमी आया……..
आदमी : सर …… मुझे गरीबी रेखा से नीचे का राशन कार्ड चाहिए………..
साहब: आपकी वार्षिक कमाई कितनी है………
दमी: सर वो तो 3 लाख से ऊपर है………
साहब (दांत दिखाते हुए.) : पर वो कार्ड तो 22 हज़ार से कम सालाना कमाई वालों को ही मिलता है…………
आदमी: वो तो मुझे पता है पर आप अगर कुछ कर सकें तो वो जरा सरकारी नियम में गरीबी रेखा से नीचे वालों के बच्चों को डॉक्टर की पढाई में छुट मिल रही है तो ……….
साहब: नहीं ये तो सरकार ने नियम बनाया है उसको तो हमको मानना ही पड़ता है. आखिर हम सरकारी कर्मचारी जो हैं…….
आदमी: ये तो आप शर्मिंदा कर रहे हैं…… सरकार के नियम तो केवल बहाना ही हैं … सरकार तो आप ही है आप चाहिए तो रतन टाटा तक को गरीबी रेखा से नीचे का कार्ड बनवा दें….. आदमी 500 रुपए उसकी जेब में रखते हुए…….. बाकि सेवा कल कार्ड ले जाते समय कर दूंगा………..
साहब: ठीक है आप कल आइये.. अब आपके लिए तो करना ही पड़ेगा…… हम तो हैं ही लोगों की सेवा के लिए…… . …….
अब दुसरे दिन फिर वो बूढ़ा आदमी वही समय पर आया और 11 बजे आये साहब से बोला साहब आज तो बनवा दीजिये मेरा राशन कार्ड ……….
साहब : पहले अपने वार्ड मेम्बर से लिखवा कर लाओ की तुम उस वार्ड में रहते हो……….. जाओ अब ज्यादा सर मत खाओ……
दिन के 2 बजे बूढ़ा कागज़ ले कर आ गया……… और बोला साहब आपने जो आगाज़ कहे थे वो ले आया हूँ……….
साहब : अभी लंच हो रहा है ………. फिर आना …..
बूढ़ा: साहब आपको शायद कुछ गलत फहमी हो रही है…….. लंच तो 1 से 2 होता है. अब तो ढाई बज गया है……
साहब: अब तू हमको टाइम सिखाएगा…………. सालो लंच के समय पर अगर तुम्हारा काम करेंगे तो क्या उस दिन खाना नहीं खायेंगे. तुम लोगो का काम ही कर रहा था 1 से 2 के बीच इसलिए खाना नहीं खा पाया और अब तू मेरा सर खा रहा है …… जा कल आना………
तभी वो सूट पहने युवक का प्रवेश हुआ…………. वो साहब के पास आया और बोला
सर मेरा काम हुआ क्या……..
साहब: अरे सर आपके काम के लिए ही आज का लंच ब्रेक बर्बाद कर दिया है…….
आदमी: चलिए आज आपका खाने पीने का इंतजाम हमारी और से………………
और साहब चल दिए……… और जाते हुए चोकीदार को 10 का नोट देकर बोले सुन कोई पूछे तो बोलना की ऑफिस के काम से बाहर गए हैं…… और कुछ ज्यादा जरूरी काम हो तो फ़ोन कर लेना नहीं तो कल तो आऊंगा ही तब देख लेंगे……..
अगले दिन फिर बूढ़ा आया और फिर एक नए कागज़ बनाने के लिए उसको भेज दिया गया…………
ये क्रम कुछ माह तक चलता रहा ……… फिर कुछ समय बाद जब कई दिनों तक वो बूढ़ा नहीं आया तो साहब को जिज्ञासा हुई और उन्होंने चपरासी से पूछा की वो बूढ़ा आजकल आ नहीं रहा क्या बात है…………..
चपरासी: साहब उसकी और उसकी बीबी की लाश 5 दिन पहले उनके ही घर में मिली थी . सुना कई दिनों से कुछ खाने को नहीं मिला था….
साहब: साला बूढ़ा था ही इस लायक, अरे मैंने कहा था पुरे कागज़ कर दे तो तुझे गरीबी रेखा से नीचे का कार्ड दिलवा दूँ.. पर नहीं कागज़ जमा ही नहीं किये ………. चलो मुक्ति मिली साले को………….

अब एक पुलिस वाले का वार्षिक रिपोर्ट कार्ड ………………….

समय सुबह के 8 बजे…….. स्थान: पुलिस थाना……….

एक आदमी आता है और एक आदमी के खिलाफ मारपीट की शिकायत करता है……….
पुलिस वाला साथ चलता है………. पुलिस को अपने साथ लाते हुए देख कर दूसरा आदमी उसे जोर जोर से गाली देने लगता है………
अब पुलिस वाला उसको पकड़ कर ले जाने लगता है……. और तब वो पुलिस वाले से कहता है……. साले अपनी औकात में रह ……..2 मिनट में वर्दी उतरवा दूंगा तेरी…. जनता नहीं है कौन हूँ मैं……..
पुलिस वाले के अहं को ठेस लगी और पुलिस वाला उस आदमी को पकड़ कर थाने ले गया. उसको थाने ले जाने तक थाने का माहौल बदल चूका था. वह पहुचते ही कोतवाल ने उस पुलिस वाले को डांटा और बोला क्या तुम नहीं जानते तुम किसको पकड़ कर ले आये हो…… पुलिस वाला बोला सर ये चौराहे पर फसाद कर रहा था शराब पी कर लोगो से मार पीट कर रहा था. इसके मुह से अब भी शराब की बू आ रही हैं……….
कोतवाल लगभग चिल्लाते हुए बोला जानते हो ये कौन हैं…….. मंत्री जी का रिश्तेदार हैं ये…..
चलो माफ़ी मांगो इस से, कब से मंत्री जी के लगातार फ़ोन पे फ़ोन आ रहे हैं……. तुम्हे सस्पेंड करने के लिए कहा हैं उन्होंने………
पुलिस वाला बोला पर किस बात के लिए …….. कोतवाल बोला मुझ से इस तरह से सवाल जवाब करने के लिए भी तुम सस्पेंड किये जा सकते हो…..
अब वो पुलिस वाला चुपचाप बाहर चला आया . दुसरे दिन उसे पता चला की उसकी ड्यूटी उस मंत्री के घर पर लगा दी गयी हैं. अब सुबह शाम वो आदमी शराब पी पर उसको गाली देता हुआ अन्दर जाता और बाहर आता..
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क्या एक सरकारी कर्मचारी जो ऑफिस के समय में घर के सारे काम निपटा देता हैं.. और जिसकी ड्यूटी 10 से 5 की जगह 11 या 12 बजे से 3 या कभी कभी 4 बजे तक ही होती हैं……. और जो पुलिस की तरह जोकि उन लोगों से जो कुछ गलती करते हुए पकडे जाते हैं , घूस लेने की जगह उन लोगों से घूस मांगते हैं जो अपने साधारण काम को करवाना चाहते हैं. और उनसे भी सीधे सीधे घूस मांगने की जगह उनको प्रताड़ित कर कर के आखिर घूस देने को विवश कर देतें हैं…. और जो नहीं दे पता वो उस बूढ़े की तरह मारा जाता हैं…….
आप एक बार खुद को पुलिस की जगह रख कर तो देखें ………..

होली वाले दिन जब सब रंग खेलें तब लोगों को हुडदंग से रोकें…………… दिवाली पर जुआ खेलने व शराब पीकर हंगामा करने वालों पे नज़र रखो…….. नेताओं के दौरों पर रात रात भर नौकरी करो……………अपराधी को पकडे तो वो नेता का रिश्तेदार निकाल जाये…………. और फिर इनाम स्वरूप किसी मंत्री के गेट पर सन्तरी बनो…… न पकड़ो तो मीडिया कहे की पुलिस अपराधियों से मिल गयी हैं…….. इस सारे दवाब के बीच जो उनकी मानसिक हालत होती हैं, जो उनके अन्दर गुस्सा भरा होता हैं वो उस आम आदमी पे निकलता हैं जो ऐसे नेता और ऐसे सरकारें बनता हैं………………. क्या ये सब एक आदमी को जानवर बनाने के लिए काफी नहीं हैं………..

जब एक आदमी अपने अधिकारी का गुस्सा अपने बीबी बच्चों पर निकाल कर भी खुद को जस्टिफ़ाई कर लेता है तो आखिर पुलिस क्या करे,, उसे तो बीबी बच्चों के साथ समय बिताने का मौका तक नहीं मिलता है…

हम पुलिस वालो को गलियां देकर वास्तव में इस सिस्टम को और बिगाड़ रहें हैं… पुलिस वालों के प्रति लोगों की दुर्भावना के कारण ही एक अच्छा आदमी पुलिस में जाने से डरता है… क्योकि उसको पता है की अगर वो कुछ करता है तो नेताओं की गलियां सुनने को मिलेंगी , और नहीं करता है तो जनता तो है ही गाली देने के लिए…… और अगर वो सिस्टम को छोड़ कर कुछ मजबूत कदम उठाता है, जिससे अपराध व अपराधिओं की कमर टूटे तो, उसके खिलाफ नेता व अपराधी तो हो ही जायेंगे पर जनता भी उसका साथ देने से इंकार कर देगी……….. इन सारी परिस्थितियों के बीच जिस तरह एक पुलिस वाला अपनी पूरी नौकरी बिता देता है वो उस के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जानी चाहिए….

सभी पाठकों से मेरा निवेदन है की यदि आप मेरे इस लेख से सहमत न हों और आपको अभी भी लगे की पुलिस वास्तव में पुलिस ………. खौफ का पर्याय …………. भ्रष्टाचार का बीभत्स रूप………… और ना जाने क्या क्या….. है तो आपका स्वागत है….. एक मैत्री पूर्ण माहौल में विचारों का आदान प्रदान हो सकता है……… और यदि आप इस से सहमत हों तो पक्ष में जरूर कुछ लिखें ताकि उन लोगों को जो इस प्रकार पुलिस कर्मियों के प्रति दुर्भावना रखते हों उनको कुछ सीख मिले. और यदि आप वास्तव में पुलिस के प्रति अभी भी दुर्भावना से ग्रस्त हैं तो भी जरूर लिखें की क्यों… अलग अलग ब्लोग्स में पुलिस के प्रति काफी कुछ पढ़ा तो समझ में आये की ये केवल एक तरफ़ा सोच वालों का काम है. ………..
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उम्मीद है इस लेख पर कुछ सार्थक विचार व प्रतिक्रियां जरूर मिलेंगी….
शुभकामनाओं के साथ …………………………………..
पियूष कुमार पन्त………………………………………..
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