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मौत से मुलाकात………..

परिवर्तन की ओर.......
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याद नहीं की वो दिन कौनसा था…………पर इतना याद है की वो मेरे बेरोजगारी के दौर की बात है……….. शायद दिन रविवार का रहा होगा…….. क्योकि लोग उस दिन घर पर ही थे……..

सुबह के आठ बजे थे…………बड़े भाई साहब का एक मित्र घर पर आया…….. उसने कहा की उसके घर के पास वाले खेत में बीती रात बाघ आया था……… बड़े भाई साहब ने कहा नहीं यार कोई और जानवर खेत में चला होगा और तुमको बाघ के होने का भ्रम हो गया …….. यहाँ शहर में बाघ कहाँ से आएगा………

पर जब उन्होंने कहा की बाघ ने एक महिला पर हमला कर उसको घायल कर दिया है…… तो भाई को लगा शायद बात सच हो……… और वो उनके साथ उस जगह पर गए जहाँ तथाकथित बाघ देखा गया था……. घर आकर भाई ने कहा की पंजे के निशान से लगता है की गुलदार है……….. बड़े भाई साहब WWF जो की जानवरों (जंगली) के लिए काम करने वाली NGO है में काम करते हैं.. तो वो पग मार्क देख कर बाघ समूह के सभी जानवरों की पहचान कर लेते है….. बाघ और बाघिन में तो मैं भी फर्क बता देता हूँ …… पर पुरे समूह के लिए नहीं बता पाता………

तो जैसे ही पता चला की हमारे आस पास बाघ के परिवार का एक सदस्य गुलदार है……. तो उसको बिलकुल समीप से देखने की जिज्ञासा हुई………. और मैं भी चल पड़ा उसको खोजने ……. तभी मंदिर से एक आंटी जी जो की हमारे माता जी के साथ वह गयी थी उनका फोन आया की बाघ यहाँ मंदिर के पास है और अपने सभी दरवाज़े बंद कर के घर में ही रहो…. और उसने यहाँ एक बाइक सवार पर हमला किया है…………

मैंने तुरंत पिताजी और अन्य घर वालों से अन्दर रहने को कहा और खुद बाहर चला उस मंदिर की और……. वहां आस पास के घरों की छतों पर लोग खड़े होकर एक खली प्लाट की और घूर रहे थे.. तो लगा की शायद यहीं है वो गुलदार……….. मैं जैसे ही उस और जाने लगा एक पुलिस वाले ने रोक लिया और बोला झपट जा रहा है वो. ………… मैंने कहा कुछ नहीं होता है……………. वो बोला नहीं जाना है वहां…………….

फिर मैं भी एक छत पर चढ़ गया जहाँ कई और लोग भी छाडे थे…………. अब गुलदार झाड़ी से बाहर आने को तैयार नहीं था…….. वही उस प्लाट की चार दीवारी के पास वो बाइक गिरी थी जिसके सवार पर हमला किया गया था…… और पास कड़ी 108 में वो लड़का पड़ा था जो घायल हुआ था…….. अब एक बार उस गुलदार को देखने की इच्छा हो गयी………. पुलिस भी दूर दूर खड़ी थी…… पुलिस ने अब हमको उस छत से हटा दिया…… और हम मैदान में जमा हो गए……..

फिर थोड़े देर में पता नहीं पुलिस ने पत्थर मारा या क्या किया की वो गुलदार झाड़ी से बाहर निकला और 8 – 8 फिट की दिवार को फांद कर दौड़ गया …. आगे आगे वो पीछे हम….. अब वो एक खेत में हरी घास जोकि जानवरों के लिए लगाये जाती है….. जिसे चरी कहते है.. जो लगभग 3 फिट लम्बी थी……. में जा कर घुस गया…… अब एक तो घास का हरापन दूसरी और से उसका कलर वो बिलकुल गायब सा हो गया………

अब वन विभाग से अधिकारी गुलदार को बिहोश करने के इंजक्शन ले कर पहुच गए…….. पर जब तक गुलदार न दिखे गन कैसे चलायें… अब एक गेंद उस खेत की और फेकी गयी और गुलदार ने एक शानदार छलांग से उसको लपक लिया…दिल और प्रफ्फुल्लित हो उठा……. एक बार उसको करीब से देखने की लालसा और जाग उठी…. और साथ ही ट्रंकुलाइज़र गन ने उस पर प्रहार किया……… और गुलदार घास में ही पहुच गया……

अब जिप्सी को खेत के अन्दर ले जाया गया जहाँ पर गुलदार था………. वन कर्मियों को विश्वाश था की गुलदार बेहोश हो चूका है……… जैसे ही जिप्सी आगे गयी……. गुलदार झपटा……… और इस से पहले की कोई कुछ समझ सकता वो वापस घास में घुस गया……. अब वन कर्मियों का अंदाज़ था की अभी कुछ समय और लेगा गुलदार बेहोश होने में क्योकि ये इंजक्शन 5 से 7 मिनट लेता है…………. फिर गाड़ी अन्दर गयी और गुलदार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी……..

अब ये यकीन हो गया की गुलदार बेहोश हो गया है……… अब कोई शक नहीं था केवल जाकर उसको उठाना था……. अब में अपनी जिज्ञासा को रोक नहीं पाया और कुछ आगे जा रहे लोगो 5 -7 लोगों की भीड़ के साथ साथ आगे बढने लगा…. मेरे और उस गुलदार के बीच करीब 50 मीटर की दुरी थी.. और वो 5 -7 लोग मेरे आगे ही थे… ……. अचानक गुलदार उछला और हमारी और को दौड़ा ……….

जब मौत आपके पीछे हो तो आपके अन्दर फुर्ती आ जाती है और आपका जंग लगा दिमाग भी दौड़ने लगता है…….. मैं तेज़ी से दौड़ा और खेत के बीच में बनी गूल (करीब 3 फिट चोडी नाली जो सिचाई के लिए पानी जाने के लिए बनायीं जाती है….) उस में लेट गया…….. जो 5 -7 लोग मेरे आगे थे वो सीधे दौड़ते रहे….. उन में से एक पर वो झपटा और उसको गिरा दिया…… और दौड़ पड़ा……….

नेशनल हाइवे की और वो दौड़ा एक बाइक सवार पर कूदा और उसको गिरा पास कड़ी वैगन R के निचे घुस गया ……….. फिर जैसा होता है चारों और से भीड़ ने घेर कर उसको डंडों और पत्थरों से मारा…. फिर पुलिस ने लोगों को दूर हटाया……..वन विभाग वालों ने लगातार कई इंजक्शन मारे ….

फिर कुछ देर में उसको पिंजरे में डाल दिया गया…… और जैसा की तय था कई इंजक्शन दिए जाने के कारण वो निर्दोष जीव मारा गया…………. कहीं न कहीं उसकी मौत के जिम्मेदार हम लोग भी थे………… यदि वो भीड़ उस गुलदार को चौकाती नहीं तो वो हिंसक नहीं होता.. और आसानी से पकड़ में आ सकता था… कुल मिलकर एक निर्दोष की मौत का तमाशा देखकर मैं घर पंहुचा…….. पिता जी का सवाल था क्यों गया था वहां ………. वो अगर झपट जाता तो…………. मैंने कहा की मैं बहुत दूर से देख रहा था……….. तब पिता जी ने कहा की तेरे से 200 मीटर दूर खड़ा मैं सब कुछ देख रहा था… ……. मैं निरुत्तर था……… पर मन में ये बात थी की यदि मैं उस दिन उस शानदार जीव के हाथों मारा भी जाता तो उसको बड़ा हर्ष मानता ………… क्योकि उस जीव को हक़ है……….. मारने का यूँ मरने का नहीं…….


इस शानदार जीव के बारे मैं जानकारी बाटने के लिए मैं अपने अगले ब्लॉग में कुछ लिखूंगा………….. और इस गुलदार के खेत में दिखाए गए करतबों के विडियो भी आपके साथ बाटूंगा…….

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