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आगे की जली लकड़ी पीछे की ओर आती है………..(लोक कथा )

परिवर्तन की ओर.......
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एक ओर लोककथा आपके सम्मुख प्रस्तुत करना चाहता हूँ…………….

इस कथा पर पूर्व में भी कई कथाएं लिखी जा चुकी हैं……….. और उनके शीर्षक अलग अलग रहे होंगे………….. जैसे जैसी करनी वैसी भरनी…………. बोये पेड़ बबूल का……………और न जाने कितनी………..

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पर हमारे यहाँ सुनाई जाने वाली कथा को ये शीर्षक दिया गया है………..

इसकी कथा कुछ इस प्रकार है………….

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एक गांव में कहीं एक बूढी महिला अपने एकलौते पुत्र के साथ रहती थी………… माँ बेटा दोनों एक दुसरे का सहारा थे………… बेटे की अपनी माता के प्रति बड़ी श्रद्धा थी………. बेटा जैसा की उत्तराखंड में आम है ………………. और जैसे की एक कहावत भी है की उत्तराखंड का पानी और उत्तराखंड की जवानी यहाँ नहीं रहती…………………..
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यहाँ के नब्बे प्रतिशत लड़के युवा होते ही फ़ौज में चले जाते है………… और जो फ़ौज में नहीं जा पते वो रोजगार की तलाश में बड़े महानगरों में चले जाते हैं………………… तो उस बूढी महिला का लड़का फ़ौज में चला गया ………. फिर कुछ समय बाद जब वो महिला अकेली पड़ गयी तो उसने लड़के की शादी कर दी…………….

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उस बूढी महिला की बहु बहुत सुन्दर थी……… लेकिन उसको इस बात का घमंड भी बहुत था………. वो अपने पति का उसकी माँ के प्रति प्रेम देख कर जल उठती……….. कुछ समय बूढी महिला की बहु ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया…………… अब अपने नाती के प्रेम में बूढी महिला अपने सारे दुःख और बहु के दुर्व्यहार को भूल जाती…………..

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पर बहु को अपनी सास का अपने नाती के प्रति प्रेम भी पसंद नहीं था…….वो इस से और परेशान होती……….. समय बीतता रहा…… बूढी महिला अब अपने अंतिम पड़ाव में थी…… पर बहु के भीतर उसके प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी……….

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एक बार बूढी महिला को बड़े जोर से पीठ पर खुजली लगी………… उसने अपनी बहु से कहा……… बहु जरा पीठ तो खुजला दे……….. बहु बोली माता जी….. आप बहुत दूर बैठी हैं ………… मेरे हाथ तो वहां तक नहीं पहुच सकते पर पैर पहुचते हैं……….. आप कहो तो पैर से ही खुजला दूँ………… बूढी महिला कुछ न बोल सकी………….

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फिर कुछ समय बाद वो बूढी महिला मर गयी………… और कालचक्र घूमता रहा और अब …….. उस बुढ़िया का पोता बड़ा हो गया और बहु बूढी हो गयी………. अब उस बहु की भी बहु आ गयी थी………. जो हर पल उसको उसके द्वरा उसकी सास के साथ किये दुर्व्यहार का नया रूपांतरण दिखाती ………….

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अब उस बूढी महिला के स्थान पर उसकी बहु और उस बहु के स्थान पर बहु की बहु आ चुकी थी…….. फिर एक दिन उस बहु ने अपनी बहु से वही कहा जो उसकी सास ने एक बार कहा था………. की बहु पीठ पर बड़ी जोर से खुजली लगी है…………. थोडा खुजला दे……… और बहु ने जवाब दिया …………. सासू माँ मेरे हाथों में मेहंदी लगी है……….. कहो तो पैर से खुजला दूँ…………

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तब वो बहु बोली ……… इस में तेरा कोई दोष नहीं है बहु…………. क्यों की आगे के जली लकड़ी पीछे को ही आती है……………….

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पर तू सावधान रहना क्योकि कल को तेरी भी बहु आएगी………… और जैसे मुझे सबक मिला वैसे ही तुझे भी मिलेगा…………

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