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जब मुझे भगवान् शिव का ठिकाना मिला………..

परिवर्तन की ओर.......
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भगवान हर कोई कहता है………. है…… पर पूछो की क्या आपने देखा है…… तो उत्तर होता है नहीं…………. पर फिर भी हम अपने बच्चों को सिखाते हैं………. की भगवान है और वो हम सबको ऊपर से देखता है…………… और हमारे सही गलत काम का वो वैसा ही फल देता है…….

सोचा जाये तो एक कानून थोप दिया जाता है…… भगवान के नाम पर ………. पर ये भगवान ही गलत राह पर जाते बच्चे को रोकने के लिए काम आ जाता है…….. और उसको गलत राह पर जानर\इ से रोकता है……………

अक्सर हमारे घरों में भगवान ही कहानियों के मुख्य पात्र होते हैं…………. क्योकि कहानी सुनाई ही रामायण और महाभारत से जाती है………. ताकि बच्चे राम और कृष्ण के आदर्शों को जीवन में उतर सकें…………….

ऐसे ही बचपन में राम, कृष्ण और शिव जी की कहानियां सुनी……….. दिल उमंगों से भर उठता था……. ह्रदय में राम की तरह पिता की आज्ञा से घर छोड़ कर चले जाने की इच्छा जाग उठती थी……. पर पिता जी ऐसा कहते नहीं थे………

और जो वो करने को कहते थे पढाई…….. उसको ये सोच कर करने का मन नहीं होता था …………. की न तो राम से उनके पिता ने ये करने को कहा और न उन्होंने किया……….. हाँ अगर वो कहते की धनुष चलाना सीखने के लिए गुरुकुल चले जाओ………. तो शायद तुरंत चरण स्पर्श कर के चल देते गुरुकुल की और …………

राम की हर बात को जीवन में उतरने की चाह मन में उठ जाती थी………… रामलीला में रावण का किरदार निभाने वाले से चिढ हो जाती थी………. की मेरे प्रभु राम से लड़ने चला था……….. बचपन में जब 4 या 5 साल का था तब भगवान श्री राम की कथा सुनी फिर कृष्ण भगवान का और फिर भगवान शिव जी का नंबर आया……. अब उम्र 5 साल थी ……. और बातों में बचपना होना स्वाभाविक था………..

अब ये तो समझ में आ चूका था……. की भगवान श्री राम परमधाम को चले गए……. और कृष्ण भी………. पर शिव की कथा में न तो उनके धरती पर आने के बारे में सुना ओर न परमधाम जाने के बारे में………

एक बार जब गंगा मैया के धरती पर अवतरण की कथा सुनाई जा रही थी……. तो बताया की भागीरथ ने अपने पुरखों को तारने के लिए स्वर्ग से गंगा को नीचे उतारा………. तो गंगा ने क्रोध के मारे अपना पूरा प्रवाह धरती की और छोड़ दिया……….

अब पृथ्वी गंगा में समा कर समाप्त होने को तैयार थी…. और तब शिव ने उसको अपनी जटाओं में उलझा लिया………. कई वर्षों तक भी गंगा शिव की जटाओं में ही घुमती रही …………. और तब उसका क्रोध शांत हुआ और उसने शिव से क्षमा मांगी…………… और शिव जी ने उसको क्षमा कर पृथ्वी पर उतार दिया………

बस ये कथा सुनते ही मैं झूम उठा ……………. सब घर वाले हैरान थे……….. की क्या हुआ………. मैंने कहा की बाकी किसी भगवान से तो अब पृथ्वी पर मिलना संभव नहीं है….. पर एक हैं जिनसे मिला जा सकता है………… सबने पूछा कौन है……… तो मैंने कहा … भगवान शिव………….. और मुझे पता है की वो कहाँ मिलेंगे……….

सबने एक स्वर मे पूछा कहाँ………… तो मैंने कहा की गंगा के साथ उसकी उलटी दिशा में चलते चले जाओ…………. जहाँ से गंगा निकलती होगी वहां शिव की जटाएं होंगी और जहाँ शिव की जटाएं वही शिव जी भी…………

अब सब हसने लगे और बोले गंगा तो गोमुख से निकलती है………… तो मैंने कहा की शिव भी गोमुख में ही रहते है………… तब घर वालों ने समझाया …….. की वो पृथ्वी पर उतरने से पहले शिव की जटाओं में रहती है… पृथ्वी पर गोमुख पर आती है…………….. शिव पृथ्वी से कहीं ऊपर से उसको संचालित किये हुए हैं………………

अब मेरी शकल देखने जैसी थी…………… जैसे जीती जीती बाज़ी हार कर कोई जा रहा हो……….. पर फिर लगा की हो सकता है की लोगों को दिखते न हों ……….. पर हो न हो शिव का ठिकाना है वहीँ कहीं……………. एक बार जा कर गोमुख को छू कर देखूंगा की कहीं कोई जटा जैसी संरचना है तो नहीं………………..

और तब से आज तक उस घटना को याद करता हूँ ………… और एक अजीब सी हलचल सी उठने लगती है………. अंतर्मन में कही…………….

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शुभकामनाओं के साथ
पियूष कुमार पन्त………………….
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