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कुछ समय पूर्व एक पुराने मित्र से मिलना हुआ………….. बड़ा अजीब सा लगा उस से मिलकर……. वो काफी परेशान सा लग रहा था……. बिलकुल चुपचाप सा …… मैंने पूछा क्या हुआ भाई……. तू तो बिलकुल बदल गया है…..
मित्र ने कहा :: हां……. यार . पर तू बिलकुल नहीं बदला…….. सही है भाई……… तुम्हारे जीवन में कोई कष्ट नहीं आया न इसलिए………. मैंने उसको पूछा ……की क्यों तेरे जीवन में ऐसा कौन सा कष्ट है………
वो बोला कुछ नहीं यार रोज दस घंटे की नौकरी फिर……… वही हर जा कर खाओ पियो और सो जाओ…… कोई रस नहीं है जीवन में…….. एक परेशानी ये है की तनख्वाह कम है…… दूसरा ये है की शादी नहीं होती……. अब क्या क्या बताऊँ………… तेरे मजे हैं यार….
फिर मैंने उसको पूछा ………. कैसे …
तो वो बोला आराम की नौकरी है……… कोई झंझट नहीं…….. मजेदार सरकारी पोस्ट है…… और क्या चाहिए……
अब मैं थोडा बदल गया…….. और मैंने उसको पूछा ……. कितना हिस्सा बचत कर पाता है अपनी तनख्वाह का ……… वो बोला कुछ नहीं यार क्या बचता है…….. इतने कम में……..
फिर मैंने कहा न तेरे से बचता है न मेरे से तो अंतर क्या है………… न तेरे शौक रईसो के न मेरे शौक रईसो के ………. तो कुल जमा तो दोनों बराबर ही हैं…….. पर उसको लगा की ये झूठी सांत्वना है…….
फिर एक कहानी मैंने उसको सुनाई …….जो मैं आपके साथ बाटना चाहता हूँ………
एक बार एक आदमी बहुत दुखी था……… उसको यूँ लगता था मानो सारी दुनिया का दुःख उसके ही सर पर है…… हर दूसरा आदमी उसको अपने से अधिक सुखी लगता…….
एक दिन वो मंदिर में भगवान् के पास गया और उसने भगवान् से कहा की किसी का भी दुःख दे दे पर मेरा ये दुःख ख़त्म कर दे……….. उस दिन शायद कोई त्यौहार रहा होगा….. की भगवान् तुरंत प्रसन्न हो गए….. और बोले ठीक है….. आज शाम को सभी लोग अपने अपने दुःख एक पोटली में ले कर आ रहे है तू भी ला वही किसी से बदल लेना……..
वो आदमी ख़ुशी ख़ुशी मंदिर से चला गया……… शाम को वो एक मैदान में पंहुचा …… जहाँ कई लोग पोटलियाँ लेकर जमा थे…… अब सबने अपनी अपनी पोटली एक जगह जमा कर दी …….. और अब आकाशवाणी हुई की जिसकी जो मर्जी वो उस पोटली को उठा कर ले जाये…
अब तो भगदड़ मच गयी…… हर कोई दौड़ा जा रहा था…. थोड़ी देर बाद जब सारी पोटली ख़तम हो गयी……. तो सबने देखा की हर एक ने अपनी पोटली को ही उठाया है…….. अब भगवान् ने फिर आकाशवाणी के माध्यम से पूछा की ……. क्यों नहीं तुमने मौका मिलने पर भी अपने दुःख दूसरों के साथ बदल लिए…….
तो सब बोले की प्रभु जैसे भी है.. ये दुःख मेरे अपने है…….. और इनकी अब हमको आदत है…. हम सदियों से इनको झेलने का तरीका खोजे हुए है …….. पर नए दुःख के साथ फिर नए सिरे से कौन मेहनत करे………
हम तो यूँ सोचते थे की बाकी लोगों को कोई दुःख नहीं है .. जब सब ही दुखी है……. तो सब अपना अपना दुःख संभालें………..
अब ये कहानी ख़तम हुए….. और मेरा मित्र मुझे देख कर बोला बता क्या परेशानी है तुझे……. अपनी परेशानियाँ सुनाने में मैं तुझसे ये पूछना तो भूल ही गया…….. और मैंने कहा की जैसे भी है मेरी परेशानिया बस मेरी हैं……….
और हम दोनों दोस्त हसने लगे……… आज की इस मुलाकात ने कई बाते याद करा दी……. कुछ शरारतें याद आ गई……… जो कभी की थी और जिनको याद कर आज भी कभी भावुक तो कभी लोटपोट हो जाता हूँ………. आगे आपके साथ उनको भी बाटना चाहूँगा………
धन्यवाद………….
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