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ये प्रेम क्या है………

परिवर्तन की ओर.......
परिवर्तन की ओर.......
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प्रेम के संदर्भ मे कुछ कहने से पूर्व एक कहानी प्रस्तुत करना चाहता हूँ…………..
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एक लड़की को भगवान ने दर्शन दिये……… लड़की ने उनसे पूछा की भगवान प्रेम का क्या अर्थ है…… कृपया बताने की कृपा करें….. क्या है प्रेम …… इसका वास्तविक स्वरूप क्या है……
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भगवान ने कहा मूर्ख लड़की ……… तेरे सामने भगवान स्वयं खड़े हैं ओर तू भगवान को फूल चड़ाने की जगह व्यर्थ सवाल कर रही है…… जा पहले मेरे चरणो मे कोई सुंदर पुष्प चड़ा ……
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लड़की को अपनी भूल का एहसास हुआ…… वो दौड़ कर एक बगीचे मे गयी…….. जहां सुंदर सुंदर फूल लगे थे…….. एक सुंदर से फूल के पास वो पहुंची……. जैसे ही उसको तोड़ना चाहती थी….. तो उसको लगा की शायद इस फूल से सुंदर भी कोई फूल यहाँ मिल जाए……
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ओर वो चल पड़ी नए फूल की तलाश मे ……… यहाँ वहाँ सभी जगह घूमीं ओर कई सुंदर फूल देखे पर किसी भी फूल पर टिक नहीं पाई …. क्योकि वो पहले ही एक सुंदर फूल देख चुकी थी…. शाम हो चुकी थी….. अब बहुत देर हो रही थी……. अब उसको लगा की जो फूल उसने सबसे पहले देखा था… वो ही सबसे सुंदर था…..
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और वो दौड़ पड़ी उस फूल की ओर…….. पर जैसे ही वो उस फूल के पास पहुंची …… वो फूल मुरझा कर गिर चुका था…….. अब लड़की रोने लगी…… उसको रोते देख भगवान उसके पास आए ओर बोले की क्या हुआ….. ? क्यों रोती हो… ?
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लड़की बोली भगवान ये जो पंखुड़ियाँ बिखरी पड़ी हैं……. सुबह तक ये एक सुंदर पुष्प थी…….. इस सुंदर पुष्प के पास मैं सबसे पहले पहुंची…….. पर तब मैं इससे भी सुंदर पुष्प की तलाश मे चली गयी….. ओर वो मिला नहीं……. ओर जब मुझे ये एहसास हुआ की ये फूल ही सबसे सुंदर है …….. ओर मैं इस फूल को आपके चरणों मे अर्पित करने आई तो ये फूल इस दशा मे हैं……………
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भगवान मुस्कुराए…….. ओर बोले कुछ समझी ……… ? लड़की ने कहा नही……भगवान…….
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भगवान ने कहा यही प्रेम है…… जो हमारे सबसे पास होता हैं……. उसको हम कभी प्रेम कर ही नहीं पाते …….. हमे प्रेम की खोज कहीं बाहर रहती है……… ओर जब हम अपने पास की उस महत्वपुर्ण वस्तु / पात्र से हाथ धो बैठते हैं तो हमें उसके मूल्य का पता चलता हैं……..
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जिस प्रेम को तुम यहाँ बाहर तलाश रही हो….. उसको अपने घर मे अपने आस पास खोजो……. हर चीज से प्रेम होने लगेगा……. इंतज़ार मत करो उनके बिछुड़ने का……. की तब तुमको उनके प्रति प्रेम का एहसास हो………
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वास्तव मे इस संसार मे हो यही रहा है… जितने इस दुनिया मे प्रेमी हैं उस हिसाब से इस दुनिया मे शांति ओर खुशहाली होनी चाहिए थी……. पर ऐसा है नहीं……..
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हमने प्रेम के लिए कुछ कल्पनाएं कर ली हैं…………. अपने घर के भीतर हम प्रेम की खोज करने को तैयार ही नहीं है……. हमें यूं लगता है की प्रेम बाहर ही कहीं मिल सकता है…….. प्रेम व्यवहार है …….. प्रकृति है……… एक बार जब हम प्रेम करना अपने व्यवहार मे ले आते हैं…… तो फिर हमें हर वस्तु सुंदर लगने लगती है……… हमारे भीतर प्रेम का संचार होने लगता है………
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जरूरत है इस बात को समझने की कि किसी वस्तु को उसके अभाव मे जानने के स्थान पर उसका  महत्व उसके होने पर ही खोजें………. कभी आपने गौर किया है…….. हमारे मुह मे दाँत है ……. ये हमें पता है…. पर हम इस और कभी ध्यान नहीं देते ………… पर जैसे ही एक दाँत टूट जाता है तो हमारी जीभ उसको खोजने लगती है……….. ये हमारा स्वभाव है……….. जो हमारे पास है उसका मूल्यांकन हम कम करके आँकते है………. पर जैसे ही वो हमसे दूर हुई कि हमें उसकी याद आने लगती है………….
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एक छोटी सी घटना सुनना चाहता हूँ…. मुझसे एक मित्र ने कहा की अक्सर में लिखते समय में अपने पुरे लेख से भटक जाता हूँ………. उन्होंने मेरे एक लेख का उदहारण भी दिया ………. वो लेख प्रेम के सम्बन्ध में ही था….. वास्तव में मेरे कई लेखों में ऐसा हो सकता है……… मेरे कमरे में मेरा सारा सामान बिखरा रहता है………. जिसमे मेरे कई काम के कागज़ भी होते हैं…… तो ये कमरा बंद ही रहता है…… ऑफिस से आकर मैं इस कमरे में बैठता हूँ……. मैं यहाँ अपने ढाई साल से भतीजे के साथ कुछ देर खेलता हूँ…….. वो वर्किंग डेज में मुझसे 22 घंटे दूर रहता है…..
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शाम को लगभग 8 बजे ही हमारी मुलाकात होती है…… दस बजे वो सो जाता है……. और सुबह उसके उठने से पहले मैं जा चूका होता हूँ……… तो वो मेरे साथ मुश्किल से 10 मिनट खेलता है और फिर बाकि लोगों के पास चला जाता है……. जब वो चला जाता है तब मैं अपने कमरे में नेट पर आता हूँ…….. और फिर जब मैं यहाँ लिख रहा होता हूँ ओर मेरा भतीजा बाकी लोगो के साथ खेलने के बाद बोर हो जाता है ओर उसको फिर से मेरी याद आती है तो वो वापस मेरे कमरे मे आ जाता है ….. और मैं आधा लेख छोड़ कर ही उसके साथ खेलने लग जाता हूँ…………
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और फिर उसके जाने के बाद में फिर से आगे लिखता हूँ……… इसी लिए कई बार विचारों का क्रम टूट सा जाता है……… और मुझे उससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता …… क्योकि अगर एक छोटे से बच्चे के प्रेम को अनदेखा करके मैं यहाँ प्रेम पर बड़े बड़े लेख लिखूं ……… तो वो सब झूट ही होगा…… उन शब्दों से प्रेम की भावना नहीं आ सकती……….
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ये ही कुछ दिन होते हैं जब बच्चे आपका साथ चाहते हैं……. कल शायद मैं अपने इस भतीजे से बात करने को भी तरसूं क्योकि तब ये पढाई और अपने दोस्तों में ही मगन हो जायेगा….. अगर यूँ ही हम अपने प्रियजनों के साथ रहकर भी उनसे दूर रहकर प्रेम पर यहाँ बड़े बड़े लेख लिखें तो शायद ये कोरे शब्दों के अतरिक्त कुछ भी नहीं हों…………
इसे चाहे तो लेख में भटकाव का बहाना भी मान सकते हैं…….. और जो लोग बच्चों के भविष्य के नाम पर पैसे की अंधी दौड़ में लगे हैं……. उनके लिए एक सन्देश भी……. और संदेश ये है की अपने बच्चों को प्रेम दें………. पैसा प्रेम से बड़ा नहीं है…… प्रेम पत्थर को भगवान बना सकता है…… धन से केवल भगवान् के मंदिर और उनकी मूर्तियां ही बनती हैं……… जिनमे जान नहीं होती…….
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