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एक बड़ी जटिल परिस्थिति से सामना करना पड़ा है……… जहां समझ से परे है की क्या उचित है ओर क्या अनुचित………. धर्म के बारे मे मैं लिखना ओर पढ़ना नहीं चाहता…….. मैं नहीं चाहता की रामायण ओर श्रीमदभागवद्गीता के होते हुए मैं किसी अन्य जगह से धर्म के बारे मे कुछ पढ़ूँ………. मैंने इन दोनों महाग्रंथों मे से किसी को भी नहीं पढ़ा……… फिर भी मैं अन्यत्र धर्म के संदर्भ मे कुछ भी अन्य पढ़ने से बचता हूँ……..
मुझे इस बात से कोई परेशानी नहीं की कोई मूर्तिपूजा का विरोध करे………. मुझे कोई ऐतराज नहीं की कोई मंदिरों मे जाने से इंकार करे………. मेरी नज़र मे झूठी आस्तिकता से कहीं बेहतर सच्ची नास्तिकता हैं……….. ढोंग करते संतों पर टिप्पणी से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता………… पर कोई जब धर्म पर या किसी अवतार के चरित्र पर प्रतिकूल टिप्पणी करता है…… तो बुरा लगता है……..
ये क्षोभ नहीं है……… या किसी व्यक्ति विशेष के प्रति कोई दुर्भावना से लिखा लेख नहीं है………… ये प्रश्न जो उठाए गए हैं वो किसी व्यक्ति विशेष के न होकर कई अन्य लोगों के भी हैं……. जिन्होने यदा कदा मौका मिलते ही इनको इस मंच मे कहीं भी उठा दिया है……. ये लेख भी टिप्पणी स्वरूप दिया जा सकता था…….. पर क्यों ? यहाँ लेख को पढ़ कर लोग प्रतिक्रिया तक नहीं देते तो लेख को दुबारा पढ़ने तो आने से रहे …….. तो ये लेख इस लिए है की वो सभी लोग जो इस लेख को पढ़ कर अपनी धारणा पक्की करके चले गए हैं उनको भी इन प्रश्नो का उत्तर मिले……………
यहाँ पर सबसे पहले मैं ये बात का स्मरण कराना चाहता हूँ की देशकाल ओर परिस्थितियों के अनुसार मूल्यों मे परिवर्तन होता रहता है………… जो 80 के दशक मे अंग प्रदर्शन कहा जाता था…… वो आज फैशन है………… जो तब फिल्मों मे दिखाया जाना प्रतिबंधित था………. वो आज सड़कों पर खुले आम आप देख सकते हैं……….. इसी तरह किसी भी घटना मे देशकाल ओर परिस्थितियों का असर पड़ता है…………. ओर तत्कालीन परंपरा ओर हालातों का ज्ञान हुए बिना हम आज के सापेक्ष्य कैसे किसी का मूल्यांकन कर सकते हैं…………
आज से 10 साल या 20 साल बाद हम बिना विवाह के पुरुष ओर स्त्री को एक साथ रहते देखेंगे………… ओर यही नहीं तब हम समलैंगिक सम्बन्धों को भी साधारण तौर पर ही देखेंगे………… ओर आज से 50 साल पहले ये सोचना भी पाप था………. ओर तब जब समलैंगिक संबंध आम हो जाएंगे तब शायद लोग राम ओर हनुमान के भक्त ओर भगवान के संबंध को दोस्तना के अभिषेक बच्चन ओर जॉन अब्राहिम से तुलना करने लगें……….. तब क्या फिर इसी तरह प्रश्न बदल बदल कर हर सदी मे नए रूप से खड़े होते रहेंगे……….
अब प्रश्न जो लोग इस मंच पर उठाते रहते हैं……वो प्रश्न ओर … उनका जवाब…………
एक प्रश्न के अनुसार जब रामचन्द्र जी वनवास जा रहे थे तो उन्होंने सीता जी को साथ न ले जा कर उनकी छाया ही अपने साथ वन में लेकर गए थे और जब छाया ही उनके साथ थी तो सवाल ही नहीं उठता सीता जी की पवित्रता और अपवित्रता का तो फिर क्यों अग्नि परीक्षा……?
इसके उत्तर मे मैं इतना ही कहना चाहता हूँ की हम हर बार इसको विषय बनाते हैं की श्री राम चन्द्र जी ने सीता माता की अग्नि परीक्षा ली…….. ओर तर्क की वो भी तब की जबकि वो छाया थी……….. तो यही तो प्रश्न का उत्तर है………… की छाया की क्या परीक्षा……. ओर छाया को किस तरह का अपमान या सम्मान………….जब छाया की कोई परीक्षा नहीं हो सकती तो उसी छाया की परीक्षा लेने पर उसका अपमान कैसे हो सकता है……..
एक अन्य प्रश्न के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम राम के काल की एक अन्य कथा के अनुसार अहिल्या को देवराज इंद्र व चंद्रमा ने छला। जब ऋषि गौतम, इंद्र और चंद्रमा का तो कुछ न बिगाड़ सके, तो बेचारी नारी पर ही अपना ऋषि ज्ञान-विज्ञान का प्रयोग कर डाला और क्रोध में अहिल्या को पाषाण मूर्ति बना दिया। आखिर स्वयं भगवान राम ने पाषाण मूर्ति बनी अहिल्या को अपने चरणों का स्पर्श दिया, तब वह पुनः पवित्र हो नारी रूप में परिवर्तित हुई। माता सीता तो कई वर्षों तक श्रीराम के साथ रही, तो सीता कैसे अपवित्र रह सकती थी।
गौतम ऋषि कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे ……… उनके इस कृत्य पर सवाल उठाना ठीक नहीं है……… हालांकि अहिल्या निर्दोष थी……… क्योकि इंद्र ने उनके साथ छल किया……… पर क्या कोई किसी का छद्म वेश धरण करके किसी को छल सकता है……. कैसे …….?
एक छोटे से बच्चे को आप जब वो रो रहा हो……… उठा कर गोद मे ले लें……… बच्चा चुप नहीं होता……… पर जैसे ही उसकी माँ उसको पकड़ती है वो चुप हो जाता है………. अब आप उसी बच्चे को उसकी माँ की सारी पहन कर पकड़ें …….. वो फिर भी रोता रहेगा……….. एक छोटा सा बालक अपनी माँ ओर पराई स्त्री मे फर्क करने मे सक्षम है तो अहिल्या कैसे धोखा खा गयी….? ये सवाल ही अहिल्या को दंड का कारण बना…………?
कलयुग मे आदमी ने अपनी चेतना खोई है………..उस युग मे आदमी के भीतर इतनी चेतना थी की वो स्वयं मौसम का पूर्वानुमान लगाने मे सक्षम था……. अभी भी कई जानवर ओर चिड़िया इस काम को बखूबी कर रहीं हैं……… तो अपनी उस चेतना के बाद भी इस भूल करने के कारण अहिल्या को ये कष्ट सहना पड़ा……..
ओर जहां तक चंद्रमा ओर इंद्र को माफ करने का सवाल है ये गौतम ने नहीं किया था……….. उस दिन मिले श्राप के बाद से ही चंद्रमा धीरे धीरे अपना प्रभाव खोते हुए अमावस्या को लुप्त हो जाता है…… ओर फिर धीरे धीरे पुनः पूरा होता है…….. ओर इंद्र …….? इसके लिए आप आपने आस पास नजर दौड़ाए तो पता चले की इंद्र की कहीं कोई मूर्ति नहीं मिलेगी…… क्योकि इन्द्र को उस दिन से श्राप है…… की उसकी मूर्तिपुजा नहीं की जाएगी…..
एक अन्य प्रश्न के अनुसार जब अग्नि परीक्षा में सीता जी की पवित्रता साबित हो गयी थी तो क्यूँ उनका त्याग किया गया , सीता जी को कितनी बार अपमान का घूंट पी कर अपनी पवित्रता को साबित करना था |
इसके उत्तर मे मैं केवल ये ही कहना चाहता हूँ……… आप पूर्व मे दिये उत्तर पर ध्यान दें इसका उत्तर भी वहीं है…………. तत्कालीन नियमों ओर परम्पराओं के संदर्भ मे बिना ज्ञान के हम किसी भी प्रकार की टिप्पणी नहीं कर सकते……..कुछ राष्ट्रद्रोही लोग भगत सिंह व अन्य क्रांतिकारियों की तुलना आतंकवादियों से करते हैं………… क्या इसमे कुछ गलत नहीं है………… आज के परिपेक्ष्य मे तो वो लोग आतंकवादी ही कहलाते…… नक्सली आतंकवादी अपने को क्रांतिकारियों से किसी भी क्षेत्र मे कम नहीं समझते…….. तो फिर क्यो सरकार उन्हे राष्ट्रभक्त मानने के स्थान पर आतंकवादी कहती है……….
क्योकि बदले हालातों मे परिस्थितियाँ भी बदल गयी हैं…………….. तब वो सही था………. पर आज ये सब गलत है……… तब उन्होने जो किया वो देश के निर्माण लिए किया ओर आज जो हो रहा है वो विखंडन के लिए हो रहा है…….. इतना अंतर तो स्पष्ट होना ही चाहिए…………..
अगला प्रश्न उन्होंने अपना पुत्र धर्म निभाया और वनवास काट के आये तो उनका ये धर्म नहीं था की वो अपनी गर्भवती पत्नी का ख्याल रखे अपने होने वाले पुत्रो का ख्याल रखें ये धर्म भी तो उन्ही का था |
नहीं……… राजा के लिए उसकी प्रजा उसकी संतान होती है…….. ओर उस संतान का भगवान श्री राम ने बखूबी ध्यान रखा……… किसी भी बहाने से सीता को अपने साथ रखने पर श्री राम का नाम धूमिल ही होता………. ओर वैसे भी जिस उम्र तक लव कुश वन मे रहे उस उम्र तक उस काल मे शिक्षा के लिए राजा वन जाते ही थे……….. ये कलयुग है जहां मजबूरी मे सत्ता का त्याग करने को महान त्याग कहा जाता है…….. ओर महान त्यागी भगवान श्री राम पर सवाल उठाए जाते हैं………..
इस मंच पर धार्मिक लोगों की श्रद्धा ओर आस्था से जुड़े विषयों पर सवाल खड़े करना किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता………. आप अपनी जगह स्वतंत्र हैं ओर अन्य लोग अपनी जगह……….. आशा है ये लेख इस तरह के लेखों की शृंखला मे अंतिम होगा…….. अन्यथा मुझ जैसे धर्म विरोधी के लिए इस मंच को छोडना ही अंतिम उपाय होगा…..
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