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कमी वस्त्रों मे या मानसिकता मे……….

परिवर्तन की ओर.......
परिवर्तन की ओर.......
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अक्सर हम अपने भाव लोगों के साथ ये सोच कर बाटते हैं की हमारे विचारों मे विस्तार हो………… अर्थात अगर हमारी सोच की दिशा सही है तो हम उसी ओर बढ़ें ……. अन्यथा अपनी सोच मे कुछ बदलाव लाये…. इस मंच का उद्देश्य भी यही है….. की हम नए नये विचारो से परिचित हों …. ओर अपने विचारों को भी रखें……… इस प्रयास मे जो मंथन होता है उससे कई तथ्य सामने आते हैं………  जो कई सवालों का उत्तर दे जाते हैं……. किसी भी ब्लोगर चाहे वो नया हो अथवा कोई पुराना कुछ भी ज्ञानवर्धक जानकारी दे सकता है……. तो इसी लिए सभी के ब्लॉग पढ़ कर उनपर अपनी सोच के अनुसार प्रतिक्रिया देना मैं उचित समझता हूँ…….  इसी क्रम मे इस मंच पर कुछ विचार मैंने पढे……..


जिनके अनुसार लड़कियां अश्लील कपड़े पहनती है… ओर इसी कारण लड़कों का रुझान उनकी तरफ बढ़ जाता है……. ओर इसी कारण उनके साथ दुर्व्यवहार की घटनाएँ बढ़ गयी हैं……….. ओर उस पर एक वाक्य अपनी बात को ज़ोर देने के लिए कहा गया की शेर के शामने माँस रखो और वो खाएं ना, ऐसा कैसे हो सकता है ।


इस पर प्रतिक्रिया स्वरूप मैंने एक प्रश्न रखा था …….. किन्तु मेरे प्रतिक्रिया से वो प्रश्न गायब था…. मेरा ये प्रश्न उस लेख को लिखने वाले के प्रति ही नहीं अपितु उन सभी के लिए था जो इसको वजह मानते हैं………. क्योंकि आवश्यक नहीं की ये उस ब्लोगर की राय हो…… हो सकता है की किसी ओर की राय पर वो हमसे सलाह चाह रहा हो……….. ओर मेरा प्रश्न ये है की क्या उन सभी से है जो ये कहे की केवल लड़कियां इस लिए तंग की जाती है क्योकि वो कपड़े ही उस तरह के पहनती है उसकी यही धारणा तब भी बनी रहती है जब वैसे ही कपड़ों मे वो अपनी बहन या किसी ओर रिश्तेदार को देखता है………. क्या वस्त्रों के साथ साथ उसके भाव अपने घर की महिलाओं के प्रति भी बदल जाते हैं……..


अब सोचना ये है की क्या ये सही है…… क्या वास्तव मे वस्त्रों ने आदमी की प्रवृति को बदला है…….. क्या ये कपड़े जो तन को ढकने के काम आते हैं वो मन को भी ढकते हैं…………. क्या तन से हटते कपड़े मन को भी नग्न कर देते हैं…….. नहीं वास्तव मे तन ओर मन दो बिलकुल अलग अलग हैं……… क्या तन को पूरी तरह से ढाकने वाले मन से नग्न नहीं होते …….? तन के छुपे ओर खुले होने का मन के भाव से कोई मेल नहीं……….. सारा गणित आपकी मनोदशा का है………. आपकी नज़र का है………….. कुछ लोग अजंता की गुफाओं मे नग्नता देखते हैं तो कुछ उसमे छुपी कला भावना………


हमे अपनी इस सोच को विकसित करना होगा की नग्नता हमारे विचारों पर न रहे………. फिर हमें शायद कुछ भी नग्न न लगे……….

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