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दोषी कौन ? फैसला करें………

परिवर्तन की ओर.......
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इस मंच पर कई बार ये विषय उठाया गया की आजकल की सन्तानें आपने माता पिता को अकेला या वृद्धा आश्रम मे छोड़ कर अपना जीवन अलग बसाने लगे हैं…….. और अक्सर इस बात की पूरी ज़िम्मेदारी या यूं कहें की बदनामी उस औलाद को दे दी जाती है……….. पर औलाद के दृष्टिकोण को कोई नहीं देखता………………


एक औलाद के दृष्टिकोण से मैंने इस समस्या को देखा तो मुझे कई मौके पर औलाद की तुलना मे माता पिता अधिक दोषी लगे………….. यहाँ पर स्पष्ट करना चाहता हूँ….. की हर बार नहीं पर कई बार इस बात के दोषी माता पिता भी होते है………. अपनी महत्वाकांक्षाएं अपनी संतान पर थोपने वाले ये माता पिता बुढ़ापे मे अपने अकेलेपन का दोष भी उनपर ही मढ़ देते हैं…………


आपको इन सबको समझने के लिए अपने भीतर झांकने का साहस करना होगा…….. आप अगर अपने माता पिता से दूर हैं तो सोचिए की क्या आप उनसे वास्तव मे दूर रहना चाहते हैं………… ओर यदि उनके ही साथ है तो क्या इसके पीछे उनके संस्कार या आपके प्रति उनका विश्वाश भरा रवैया नहीं था……………


जब भी इस विषय पर कोई बात होती है……… मुझे अपने एक मित्र की याद आ जाती है…….. मैं ओर मेरा मित्र ……. हमने साथ साथ पढ़ाई खत्म की ओर फिर दोनों साथ साथ दिल्ली नौकरी के लिए गए…….. मेरा वो मित्र शुरू से सरकारी नौकरी अपने घर के आसपास करना चाहता था…… ताकि वो अपने माता पिता के साथ रह सके……. पर उसके घर वालों ने उसे बी.एस.सी. न करवा कर व्यावसायिक कोर्स करवाया……….. मैं कभी भी घर से दूर नहीं रहा था…. तो मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था की मैं कहाँ नौकरी करूँ………


फिर कोर्स के दौरान ही उसके पिता ने सभी जगह ये प्रचार करना शुरू कर दिया था…. की अब मेरा लड़का बड़ा इंजीनियर बनेगा……. ओर इत्तफाक से कॉलेज ने प्रचार के लिए बच्चों को सस्ते मे बिना किसी अधिक औपचारिकता के पासपोर्ट बनवा दिया……. इस विचार से की शायद कभी इस की जरूरत पड़ ही जाए मेरे मित्र ने इसके लिए अप्लाई किया ….. पर मैं घर छोडने को ही बमुश्किल तैयार हुआ था……. तो देश छोडना तो दूर की बात थी……. तो मैंने अप्लाई नहीं किया…..


जब उसके पिता को पता चला की उनके पुत्र का पासपोर्ट बन गया है ओर मेरा नहीं……… तो उसके पिता ने ये प्रचार करना शुरू किया की मेरे लड़के पर कॉलेज को भरोसा है की वो विदेश जाएगा…… तो उसका पासपोर्ट उन्होने ही बनवा दिया…… अपने लड़के के प्रति उन्होने एक अजीब सा माहौल बना दिया……..


फिर कोर्स पूरा होने के बाद मैं भी दिल्ली गया ओर वो भी ओर दोनों ने ही अलग अलग जगह अच्छी कंपनी मे नौकरी शुरू की ………. पर मात्र एक माह बाद मुझे घुटन सी होने लगी…… मैं जब तक ऑफिस मे होता सब ठीक ……… जैसे ही कमरे पर जाता जहां मेरे एक दो मित्र ओर थे…….. तो लगता की ये क्या कर रहा हूँ मैं ……..? कब तक ….?



मैं अपने उस मित्र से अक्सर ये कहता था की मैं चाहे कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो जाऊ……. मेरे माता पिता मेरे साथ यहाँ नहीं आने वाले……. ओर अगर मुझे उनके बिना ही रहना है तो ये नौकरी किस काम की……. वो भी मेरी ही तरह भावुक होकर कहता की …… कुछ तो करना ही होगा………. मैं भी यहाँ नहीं रहना चाहता ………


फिर एक दिन मैंने अपने घर फोन किया ……. ओर सबके हाल समाचार पूछे …… सबने कहा ठीक हैं……. फिर उसी दिन मैंने अपने घर के पास रहने वाले अपने मित्र को फोन किया…. उसने कहा की तेरे पिताजी की तबीयत बीच मे खराब थी अब ठीक है….. तो बड़ी चोट लगी ….. फिर मैंने तय कर लिए की कुछ समय नौकरी करके मैं वापस घर चला जाऊंगा…… ओर कुछ वहीं करूंगा……. पर यहाँ नहीं रहूँगा………


जहां चाह वहाँ राह …….. एक दिन कुछ ऐसी घटना हुई की… मेरा सारा इरादा बदल गया………… मैंने तुरंत घर जाने की तैयारी कर ली………. ओर मैं घर लौट आया…….. घर वालों ने मुझसे कहा की कितने दिन के लिए आया है………. मैंने कहा हमेशा के लिए……. तो घर वालों ने पूछा….. तो आगे क्या करेगा…… मैंने कहा की वो मेरे ऊपर छोड़ दो…………


फिर जब मैं आपने उस मित्र के घर वालों से मिला तो मेरे उस मित्र के घर वालों ने मुझे कहा की तू अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है……… कल को रोएगा…….. माँ बाप का क्या है आज है कल नहीं है……. मगर कल को तू पछताएगा………….पर मैंने कहा की कल किस ने देखा है…….. कौन जानता है की कल कौन है ओर कौन नहीं….. माँ बाप की बात तो दूर है मेरा खुद का कोई पता नहीं की कल मैं हूँ की नहीं……… और मेरा मानना है की कल के लिए अपना आज गवाना मूर्खता है……….


मेरे उस मित्र को उसके घर वालों ने सख्त हिदायत दे दी की कुछ भी हो वहीं रहना……. ओर मेरा उदहारण दे कर समझाया गया की देखना एक दो महीने मे ही वापस आ जाएगा…….. ओर वो बेचारा वही रह गया……… वहाँ दिन भर कंपनी मे दिमाग खपाने के बाद कमरे पर आकर कमरा जब काटने को दौड़ता तो वो मुझे फोन करता…… ओर अपना दुख कहता……….


फिर वहीं कुछ ऐसे ही दो चार लोग उसे ओर मिल गए जो इधर उधर से घर वालों से दूर रहा करते थे……. फिर दिन भर ऑफिस मे काम करके वो लोग एक जगह जमा होते ओर सिगरेट ओर शराब चलती …….. धीरे धीरे वो उस दुनिया का आदि हो गया……… अब उसके मेरे लिए फोन कम आने लगे…… घर भी उसकी बात कम ही होती ….. ओर घर वाले भी कम बात करते ताकि कहीं वो भावनात्मक होकर घर न आ जाए…….. घर वाले उससे ओर वो घर वालों से काटने लगा……..


यहाँ मेरे घर वाले मेरे लिए चिंतित थे…….. सभी लोग कहते की आपका लड़का गलती कर रहा है……. यहाँ हल्द्वानी मे प्राइवेट जॉब हैं नहीं……… सरकारी मे निकालना मुश्किल है…….. करेगा क्या ? हालांकि वो ये कह तो देते की हमें पूरा भरोसा है की वो कुछ न कुछ तो अच्छा कर ही लेगा…….. पर अंदर ही अंदर घर वाले ओर घबरा जाते………. फिर मैंने पढाना शुरू किया….. ओर धीरे धीरे मैं इस क्षेत्र मे घुस गया ……… मैं दिन भर पढाता ओर फिर अपनी तैयारी करता………. ओर फिर मेरा चयन एलआईसी मे कैशियर पद के लिए हुआ……. तब उन्होने कहा था की 15 हजार रूपये ओर 1.5 लाख रुपये मासिक इतना अंतर ……… मेरे बेटे को 15 लाख रुपये सालाना का प्रस्ताव है । पर वहाँ 5 साल का अनुबंध था …. इस लिए मैंने उसे वहाँ जाने से मना कर दिया…….. पर उसका हाल मैं जानता था……….


मेरा वो मित्र मंदी के समय हुई छटनी मे बाहर हो गया……….. बड़ा संकट था…… आईटी इंडस्ट्री बाहर के लिए बनाये जाने वाले सॉफ्टवेरों के बूते ही खड़ी थी…….. जब विदेशी कंपनियाँ डूबी तो काम मंदा हो गया…… ओर उसको घर बैठा दिया गया…….. वो अब वापस आना चाहता था…… वो मेरी तुलना मे बहुत मेहनती था….. ओर जब मैं सरकारी जॉब पा गया तो उसको यकीन था की वो भी पा जाएगा……. पर उसके पिता ने कहा की नहीं वहीं रहो…….. तुम्हारे यहाँ वापस आने से मेरी नाक कट जाएगी…….
फिर उसके पिता ने यहाँ प्रचारित किया की मंदी मे काम कम होने के कारण बेटा दो चार दिन के लिए घर आने वाला है…… वो आया ओर उसने घर पर बात की पर पिता का अहं को चोट लगती थी………. जिस बेटे को विदेश जाने वाला बता दिया था वो वापस आकार सरकारी जॉब करे…….. बेटा फिर वापस चला गया……


नए सिरे से उसने संघर्ष किया ….. 8 महीने की बेरोजगारी के बाद वो फिर एक बार एक अच्छी कंपनी मे चुना गया……. पर अब उसका परिवार के प्रति मोह भंग हो गया था…. दूसरी ओर यहा जब कोई उसके पिता से पूछता की आप क्यों नहीं उसके साथ रहते तो उसके पिता यहाँ कहते की वो विदेश जाने वाला है…….. इस लिए कोई पक्का ठिकाना नहीं है……. एक बार वहाँ सेटल हो जाए तो फिर जाएंगे………


अब वो मित्र जो पहले किसी न किसी बहाने से हर महीने एक दिन आता था….. अब होली ओर दिवाली मे भी नहीं आता …….. पिछले 2 साल से मैं उसको केवल फोन पर ही या नेट पर ऑनलाइन ही मिला हूँ…….. एक बहुत ही भावुक ओर भले लड़के को उसके पिता के अहं ने अपने परिवार से दूर होने को मजबूर कर दिया ……….
कल को शायद जब उसके घर वाले अकेले हों………


यही वो घटना है जो मुझे तब खिन्न कर देती है……. जब कोई एक तरफा फैसला करके औलाद को दोषी करार देता है……… मैं नहीं मानता की मैं गलत हूँ….. ओर इसी कारण से मैंने अपना पिछला ब्लॉग लिखा था……….

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