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जब मैं घर से भाग गया………….

परिवर्तन की ओर.......
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बात उन दिनों की है जब मैं कोई दस या ग्यारह साल का था……… हमारे आसपास के क्षेत्र मे एक अजीब सा माहौल था………. हर तीसरे दिन किसी न किसी लड़के के भागने की खबर सुनाई देती……….. बड़ा आश्चर्य होता की कैसे भाग गया वो लड़का……..

फिर घर पर और आस पड़ोस मे चर्चा होती की घरवाले उसको डाटते पीटते होंगे………. इसलिए भाग गया होगा…… अरे बच्चा है उसको प्यार से समझ बुझा कर रखना चाहिए…… मार पीट कर तो वो भागेगा ही…… फिर एक दिन मेरे एक रिश्तेदार का लड़का भी भाग गया…….. फिर जब वो लौट आया तो उसके कुछ दिन बाद उसकी माता जी हमारे घर आईं …….. तो हमारी माता जी ने समझाते हुए कहा की….. देखो अब वो आ गया है तो अब उसको कुछ मत कहना…….. उसको प्यार से समझाया बुझाया करो…… आखिर बच्चा ही तो है…….. अब डांटना मत ……….


ओर वो चली गयी……. फिर एक दिन उनके घर जाना हुआ …… तो वो लड़का बिलकुल राजा बेटा बना दिखाई दिया……. लगा है शरारतों मे ओर कोई कुछ नहीं कह रहा……. पिछली बार जब आया था तो इस से भी कम शरारतों मे उसकी कई बार सेवा खातिर हो गयी थी…. उसके बदले हालात देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा मानो कई गुरु मंत्र मिल गया………..


अब मैंने सोचा ये बड़ा सरल है ……….. जब भी घर वाले सताने लगें तो घर से भाग जाओ………. फिर तो सम्मान ही सम्मान है……. अब मैं तैयार था किसी भी झमेले के लिए……… जब किसी समस्या का समाधान आपको मिल जाता है तो आपके भीतर एक अजीब सा आत्मविश्वास आ जाता है…… फिर आप उस समस्या का इंतज़ार बेसब्री से करने लगते हैं…….. ऐसे ही मैं भी इंतज़ार मे था की अब मैं कब पिटूँ ओर कब घर से भाग जाऊँ………… ओर कब मैं घर का राज कुमार बन जाऊँ………..


ऐसा कोई मौका नहीं आया……. अब मैं परेशान होने लगा……. लगा ये बड़ा मुश्किल है…… किसी को तो रोज मौका मिले ओर किसी को एक भी नहीं…….. क्या है ये…..?


फिर अचानक एक दिन छूट्टी का दिन था…… सुबह सुबह मैंने अपने घर के बाहर लगे अमरूद के पेड़ पर पत्थर फेंक के मारा ओर वो पत्थर पडोसी के घर मे घुस गया……. ओर वो मुझे पिताजी के सामने ले जाकर डांटने लगे……..


हमारे पिताजी ने कई बार हमें पत्थर फेंकने पर डांटा था…….. फिर उसदिन फिर जम के डांट पड़ गयी…. मुझे पकड़ कर पिताजी भीतर ले गए ओर पढ़ने के लिए बैठा दिया…… जैसे ही पिताजी बाहर की ओर गए……… मैं घर से भाग लिया…….. करीब आधे घंटे तक मैं दौड़ा…….. फिर मैं मेन रोड पर पहुँच गया………… तो याद आया की पिताजी ने कहा था की मेन रोड की ओर अकेले कभी भी मत जाना…… तो फिर मैं दूसरी ओर दौड़ने लगा……… जब बहुत थक गया ……. तो घर की ओर वापस चल दिया…….


घर पहुंचा तो किसी ने कुछ खास ध्यान नहीं दिया…… मैं बड़ा आश्चर्यचकित हो गया …. की ये क्या है….. फिर मैंने अपनी माता जी से कहा की मैं अभी भाग कर वापस आ रहा हूँ………. मुझे कुछ तो तवज्जो दो….. सब लोग हसने लगे……… मैं झेप गया…… मेरी समझ मे नहीं आया की मैं इतनी दूर तक भागा ओर फिर भी मुझे कोई भाव नही दिया……… क्या मैं गलत भागा…….


अब मैंने सोचा की क्यों न उस लड़के से भागने का सही तरीका पूछूं…… ओर सही तरह से भागूँ………. फिर मैं उस लड़के से मिला……. मैंने बिना ये बताए की मैं एक बार भागने का असफल प्रयास कर चुका हूँ…… उससे पूछा की भाई तू भागा कैसे ……….?


तू उसने बताया की मैं बस अड्डे गया ओर एक बस मे चड़ गया…… फिर तीन चार दिन इधर उधर घूमता रहा फिर एक आदमी ने मुझे पकड़ा ओर घर वालों को बता दिया……… अब मेरी समझ मे आया की वीआईपी ट्रीटमेंट के लिए तीन चार दिन के लिए भागना पड़ेगा…….

अब घर जाते ही मैं बिलकुल सभ्य सा बर्ताव करने लगा…….. अभी तक जो अलादीन का चिराग घर से भागने का सूत्र मेरे हाथ लगा था …….. वो अचानक कहीं खो गया….. क्योंकि मैं अपने घर वालों से 4-5 घंटे दूर नहीं रह सकता था …. तो पूरा दिन दूर रहने का कोई सवाल ही नहीं था……… ओर फिर मैंने ये खयाल छोड़ दिया………….


इस बात का एक मात्र सबक यही है की किसी भी बुराई को किसी की ताकत न बनने दिया जाए……..समाज मे यही हो रहा है……… हम बच्चों को यही सीखा रहे है……. वो खेल कूद कर रहा है तो हम उसको डरते हैं…….. उससे नाराज हो जाते हैं……. पर जैसे ही वो बीमार होता है या कभी चोटिल हो जाता है….. या किसी भी तरह परेशान होता है…. तो हम उसको प्रेम से सराबोर कर देते हैं……… हम सब उसपर प्रेम की वर्षा करने को तत्पर हो जाते हैं….. कहीं उसके बाल मन मे ये धारणा न बस जाए की मुझे तभी प्रेम मिलेगा जब की मैं परेशान / दुखी / बीमार हुंगा…… ओर वो इन सबको अपनाने का आदि हो जाए…… हमें ध्यान देना होगा की बच्चों के सामने किसी बुराई को ताकत का रूप न लेने दें………

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