Menu
blogid : 1372 postid : 1019

बूढ़े माता-पिता अकेले क्यों……..?

परिवर्तन की ओर.......
परिवर्तन की ओर.......
  • 117 Posts
  • 2690 Comments


कल एक ब्लॉग पढ़ा ……..कुछ तो शर्म करो …….……..  जिसमे वृद्ध आश्रमों मे कष्ट झेल रहे बूढ़े माता पिताओं के बारे मे उल्लेख था…….. खूबसूरत इस लेख को पढ़ कर मैंने भी प्रतिक्रिया मे शायद औलाद को कोस कर अपने दायित्व की पूर्ति कर लेनी थी…… किन्तु इस लेख को पढ़ते समय मुझे अपने एक मित्र की याद आई……. जो आज बाहर किसी कंपनी मे है…. ओर उसके अकेले माता पिता यहाँ है…….. तो इस लेख को एक बार मैंने उस की नज़र से पढ़ा ओर जो समझ आया वो लिख रहा हूँ………. लेख को स्पष्ट करने के लिए एक दो कहानिया भी इधर उधर से ली गयी हैं……………..


एक बार एक छोटा सा बालक अपनी माँ के साथ बैठा था……. उसकी माँ उसके मुख को देख कर रोने लगी…… उसने पूछा… माँ ! तू इस तरह मेरे मुख को देख कर रो क्यों रही है……. माँ ने कहा तू बड़ा होकर बहुत बड़ा राजा बन जाएगा और तब तू मुझे भूल जाएगा……… क्योकि एक राजा के लिए उसकी सारी प्रजा समान होती है……….
लड़के ने पूछा… माँ तुझे कैसे पता की मैं राजा बनूँगा……. ?


माँ बोली तेरे आगे के दो दाँतों मे राजा बनने के लक्षण हैं……. उन्हे देख कर आज एक विद्वान ने ये बताया…… और उसी ने कहा की एक दिन तू राजसी सुख प्राप्त करेगा……..



लड़के घर से बाहर निकाल गया…….और थोड़ी देर मे वापस अंदर आया….. माँ दरवाजे की ओर पीठ करके बैठी थी…. लड़के ने कहा माँ तेरी परेशानी का समाधान मैंने निकाल लिया है……… और माँ ने पलट कर लड़के की ओर देखा तो उसके मुह से खून निकाल रहा था……. माँ ने पुछा की ये तूने क्या किया……. लड़का बोला की माँ अब तू निश्चिंत हो जा, मैंने अपने वो दाँत ही तोड़ दिये जिनमे राजसी लक्षण थे…… अब न तो मैं राजा बनूँगा ओर न ही कभी तुझसे दूर होना पड़ेगा…………….. ये लड़का आचार्य चाणक्य था………



निश्चित ही ये बालक चाहे कोई भी होता और वो भले अपने दाँत न भी तोड़ता…. पर वो कभी भी अपनी माँ से दूर नहीं होता…….. क्योकि उसकी माँ ने उसको सबक दिया था की उस माँ के लिए एक सम्राट पुत्र की तुलना मे एक साधारण पुत्र ही श्रेष्ठ था………..



इसी तरह का एक प्रसंग आशुतोष मुखर्जी के संबंध मे भी है……… आशुतोष मुखर्जी कलकत्ता हाई कोर्ट के जज थे…….. बाद मे वो विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी बने…. वो विलायत जाने के इच्छुक थे …… पर उनकी माँ उनके विलायत जाने के पक्ष मे नहीं थी…… इसी लिए वो भी कभी इस ओर प्रयास नहीं करते थे……..



एक बार जब लार्ड कर्ज़न हिंदुस्तान के गवर्नर जनरल बन कर आए …….. तो उन्होने एक दिन आशुतोष मुखर्जी जी को विलायत जाने की सलाह दी……. मुखर्जी ने कहा, मेरी माँ की इच्छा नहीं हैं…….. और वो नहीं चाहती तो मैं भी नहीं जाऊंगा…………



लार्ड कर्ज़न सत्ता के मद मे चूर थे तो उन्होने कहा , जाकर अपनी माता जी से कहना की भारत के गवर्नर जनरल आपको विलायत जाने का हुक्म देते हैं………



तो इस पर आशुतोष मुखर्जी जी ने कहा की, अगर ये बात है, तो मैं माननीय गवर्नर जनरल से कहूँगा की आशुतोष अपनी माँ की आज्ञा के अतिरिक्त अन्य किसी का आदेश नहीं मानता …….. फिर चाहे वो गवर्नर जनरल हो या कोई सम्राट………..



ये दोनों कहानियाँ ये स्पष्ट करती है की संतान जीवन भर माता-पिता की सेवा के लिए तत्पर है…….. हमारा आपने माता पिता के प्रति प्रेम बदलता नहीं है…….. पर अक्सर कई माँ बाप अपने बच्चों पर अपनी महत्वाकांशा थोप देते हैं………… और माँ बाप द्वारा ही ये सिखाया जाने लगता है की, यार दोस्त, घर परिवार ये सब से अधिक महत्वपूर्ण तुम्हारा भविष्य है……. कल को कोई नहीं पूछेगा अगर ऐसे ही रहे…… जिसके पास पैसा है उसी की ये दुनिया है………..



उसको गलती से भी ये बताया ही नहीं जाता की बेटा हम तुझसे इतना स्नेह करते हैं की कल को यदि तू कुछ नहीं बन पाये तो हमारा सारा बुढ़ापा इसी दुख मे बीत जाएगा की हमारे कारण तू आगे नहीं बढ़ सका…….. क्या इस तरह से उसको नहीं समझाया जा सकता की ये संसार मे प्रेम ही सबसे बड़ा है…. और उन माता पिता का बुढ़ापा बहुत कष्ट मे बीतता है जिनको ये लगता है की उनके प्रेम के कारण उनके पुत्र का भविष्य अंधकारमय हुआ…….. तो हमारा ये प्रेम तेरी कमजोरी न होकर तेरी ताकत हो…..



पहले अपने बच्चों को माता पिता अच्छी पढ़ाई के लिए हॉस्टलस मे दाखिल कर देते हैं…….. और जब उसकी सारी संवेदनाएं मर जाती है…….. जब वो बचपन मे ही माँ के स्नेह और पिता के प्रेम का अर्थ ही नहीं समझ पाता है तो युवा अवस्था मे उसके भीतर उनके प्रति प्रेम का अंकुर कैसे फूट सकता है……… जब उसको बचपन मे ही ये पढ़ा दिया गया है की घर – परिवार, यार – दोस्त – रिश्तेदार सब से पहले भविष्य है…… तो फिर कैसे युवा होते ही वो माँ बाप कैसे ये सोचते हैं की बचपन से सिखाई ये बात वो भूल जाए…… जब एक बार कोई इस अंधी दौड़ मे दौड़ पड़ता है तो फिर अंत तक ये दौड़ खत्म नहीं होती…..



जब उसका कैरियर शुरू हो जाता है उसके बाद वो जैसा की उसको सिखाया गया है की बस आगे बढ़ते ही जाना है…….. कोई सीमा नहीं है ….. ओर फिर जब वो दौड़ना सीख जाता है तो फिर उसपर ज़िम्मेदारी (शादी) डाल दी जाती है…… अब दोहरी ज़िंदगी उसको दौड़ मे कुछ कमजोर कर देती है……. फिर उस पर माँ बाप को ला कर उसकी ज़िंदगी त्रिकोण बन जाती है ……. एक तरफ करियर की दौड़ …….. एक तरफ माँ बाप,…….. एक तरफ उसके बच्चे और वो लड़की (उसकी बीबी) जो उसके लिए सबकुछ छोड़ कर आ गयी……….. और अगर रेस मे जीतना हो तो वजन लेकर कभी नहीं दौड़ा जा सकता …….. जितना अतिरिक्त वजन होगा उतनी ही गति कम होगी…….. ओर थकान अधिक…. तो वो उन माँ बाप के वजन को कम कर देता है, जिनहोने खुद को पहले ही करियर से कमतर बताया था……… जिनहोने कहा था….. की घर – परिवार, यार – दोस्त – रिश्तेदार सब से पहले भविष्य है……



ये सब मैं अपने एक दोस्त के नज़र से देख कर कह रहा हूँ………… कभी वो भी मेरी तरह अपने घर वालों के साथ रहना चाहता था……….. पर उसको घर – परिवार, यार – दोस्त – रिश्तेदार सब से पहले भविष्य है……इस नारे के साथ घर से भेज दिया ओर अब वो खुद आना ही नहीं चाहता…. (इस पूरी कहानी को सुनकर शायद कुछ ओर समझ मे आए………… लंबी कहानी है अगली बार कहूँगा………..)


दूसरी ओर हमें शुरू से ये समझाया की जब सारे रास्ते बंद हो जाते है तो भगवान काम आते हैं ……. और एक औलाद के भगवान उसके माँ बाप होते हैं……….. तो इस संसार की हर चीज़ नश्वर है ……… कुछ शाश्वत है तो वो है औलाद का माँ बाप के प्रति प्रेम ………. जो एक औलाद से उसकी औलाद को संस्कारों के रूप मे मिलता रहेगा………. ओर हमेशा जिंदा रहेगा……………

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to Aakash TiwaariCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh