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ये कैसा गणतन्त्र …

परिवर्तन की ओर.......
परिवर्तन की ओर.......
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हिंदुस्तान मेरी शान………..

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ये हर एक सिपाही के लिए गायत्री मंत्र, कुरान की आयत ईसा के नानक के वचनों की तरह पवित्र और भावनात्मक शब्द है. इस के लिए सिपाही अपनी जान देने को तैयार है. वो कारगिल की मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में इस एक शब्द की लाज रखने की खातिर अपनी जान कुर्बान कर देता है. ये वो सिपाही है जो हमको भरोसा देता है की तुम चैन से अपना काम करो मैं यहाँ तुम्हारी हिफाज़त के लिए खड़ा हूँ.

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अपना घर परिवार छोड़ कर वो दिन रात तैनात है. की कही दुश्मन घर में न घुस जाये. शरीर का खून जमा देने वाली ठण्ड हो या पसीने के साथ खून भी सुखा देने वाली गर्मी. वो अपना काम पूरी ईमानदारी से कर रहा है. पर जैसे ही वो अपनी पूरी सेवा करके आता है तो उसको इस भ्रष्ट सिस्टम से लड़ना पड़ता है…… कभी अपने पेंशन के लिए तो कभी बच्चों के दाखिले के लिए तो कभी घर के कामों के लिए ……. इस भ्रष्ट व्यवस्था से दो चार होना पड़ता है……. ओर अफसोस इस बात का है की वो फौजी जिनकी परेड 26 जनवरी को हमारे देश की सेना के अनुशासन ओर मनोबल ताकत को प्रदर्शित करती है…….. उसी को सरकारी दफ्तरों मे कोई सम्मान न देकर केवल एक कमाई का साधन समझा जाता है……..

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एक सिपाही अपने घर से दूर हमारे देश के सम्मान के लिए लड़ता है…… मगर क्या हम उसको सम्मान दे रहे है. क्या सरकार कुछ ऐसा कर रही है की अगली पीढ़ी में कोई सेना से जुड़ने का साहस करे वास्तव में दुरूह हालातों में सैनिक जिस प्रकार काम कर रहे है और जो सरकार का रवैया है वो सैनिकों के मनोबल को तोड़ने वाला है. अगर सीमा पर ये प्रहरी न रहे तो शायद हम ये राष्ट्रिय महापर्व बहुत अधिक समय तक नहीं मना पाएंगे. वो दुश्मन से जान पर खेल कर लड़ रहे है और हमारी सरकारें कसाब और अफजल गुरु जैसे आतंकवादिओं पर करोरों खर्च कर रहे है. पडोसी मुल्को के प्रति जो हमारा रवैया है वो सेना के मनोबल को तोड़ने वाला है. हर इंसान फ़ौज में जाने से पहले सोचने लगा है के वह जा कर क्या होगा.

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वहां दुश्मन से लड़ते हुए सरहद पर दुश्मन को निशाना बनाते समय दुश्मन की गोली से मर गए तो घर वालो को एक लाख रुपए मिलेंगे और यहाँ ओलंपिक में निशाना लगाने पर ही करोडो मिल जाते है.

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भारतीय सेना का मनोबल कुछ इस तरह बयां किया जा सकता है. .

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हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया,
हम पर किसी ख़ुदा की इनायत नहीं रही
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