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26 जनवरी गणतंत्र दिवस …….. यही वो दिन था जब 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज को अंतिम लक्ष्य माना गया और तब से 26 जनवरी को हर साल स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाये जाने का निर्णय किया गया…………किन्तु बाद में जब देश १५ अगस्त को आजाद हो गया… तो इस दिन को (२६ जनवरी को) यादगार बनाये रखने के लिए इस दिन संविधान को लागु किया गया……… और इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा….
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आजादी के बाद भी इस दिन का महत्व आजादी के दिन से कम नहीं रहा………. भारतीय संविधान जो की नवंबर माह मे ही निर्मित हो चुका था……… उसके कई अंशों को 26 जनवरी के लिए रोक कर रखा गया…… ताकि वो दिन जिसे स्वतन्त्रता से पूर्व ही स्वतन्त्रता दिवस के रूप मे मनाया जाता था वो हमेशा के लिए राष्ट्रिय पर्व बन जाए…….. आज भी हालत वही है……… आज के लोगों के लिए भी 26 जनवरी का महत्व ठीक 15 अगस्त की ही तरह है………. दोनों ही दिन राष्ट्रीय अवकाश के दिन…….
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हमारे नीति निर्धारकों ओर आंदोलनकारियों ने सोचा होगा की शायद ये राष्ट्रीय पर्व भारतीय संस्कृति के अलग अलग पर्वों की भांति अपने लिए एक विशेष स्थान बना लेंगे……. लोग इस दिन देश के संबंध मे कुछ सोचेंगे………. उन्हे कहीं भी ये आशा नहीं रही होगी की हम उनको याद करेंगे……. क्योकि इस तरह के बलिदान करने वाले इस तरह के खोखले सम्मान की आशा नहीं रखते…… पर उन्हे निश्चित ही ये भरोसा रहा होगा की उनके संघर्ष से मिली आजादी का तो हम कम से कम सम्मान करेंगे ही…….
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जिस तरह रोटी का महत्व भूखा ही समझ सकता है…… पानी का महत्व कोई प्यासा ही समझ सकता है…….. उसकी तरह आजादी का महत्व उन शहीदों की शहादत के साथ ही समाप्त हो गया……… अब आजादी का अर्थ बदल गया है… बच्चे के लिए स्कूल की छुट्टी आजादी है………. ओर कर्मचारी के लिए ऑफिस की छुट्टी………. कोई इस ओर सोचता ही नहीं की आखिर देश के लिए हमारा कोई कर्तव्य है भी की नहीं………..
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शहीद शब्द कई साल तक राजनीति का हिस्सा बना रहा ओर अब किताबों तक ही सीमित रह गया है…….. सीमा पर मरने वालों को भी लोग कोई तवज्जो नहीं देना चाहते ……… एक शहीद के परिजन सरकारी दफ्तरों मे कभी राहत राशि तो कभी पेंशन के लिए चक्कर काट काट कर थक जाते है….. पर कोई आगे बढ़ कर उनकी सहायता नहीं करता………. आज भी कई बार शहीद शब्द राजनीति मे भावनात्मक रूप से मतदाता को उलझाने के लिए प्रयोग किया जाता है……. परिवार विशेष की शहादत की दुहाई दी जाती है……….. पर वही पूरी की पूरी पार्टी मे से कोई भी शहीदों के परिवारों को मदद करने मे कभी आगे नहीं आता ……….
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शहीद शब्द राजनीति मे कहीं अपना वास्तविक अर्थ खो चुका है……… देशभक्ति पहले दिलों मे ……… फिर बातों मे ……… फिल्मों मे ……… गानो मे …….. नारों मे ……. किताबों मे ……. होते हुए……… अब लगभग लुप्त होती नजर आ रही है……. अब वैश्विक ग्राम का नारा प्रचलित हो रहा है…….. लोग सीमाओं को बंधन मानने लगे है……… सारा संसार उनको घर लगने लगा है……… जब कोई सीमा ही नहीं तो देश कैसा ओर जब देश नहीं तो देश भक्ति कैसी……………..
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आओ नव भारत का निर्माण करे……
हसते हस्ते जान लुटा गए जो उन शहीदों का सम्मान करे…
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अब समय आ गया है जब हमे नव भारत का निर्माण करने के लिए आगे आना पड़ेगा.. केवल लिखने और कहने से कुछ नहीं होगा. हर होते हुए अत्याचार को देख कर, फैलते हुए भय, भूख और भ्रष्ट्राचार को देख कर, चुपचाप घर आ कर उसपर नया लेख लिखने से नव भारत का निर्माण संभव नहीं है….. जरूरत है उस पर आगे बढ़ कर आवाज़ उठाने की.. कोई फर्क नहीं पड़ता की आपके साथ कितने लोग और है……
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नव निर्माण का बोझ अपने खुद के कन्धों पे उठाना होगा.
दुसरो के कंधो को जनाज़े उठाने के लिए छोड़ दो…
कियोकी भगत सिंह ने कहा है………
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ज़िन्दगी तो सिर्फ अपने दम पर ही जी जाती है….
दूसरों के कन्धों पे तो सिर्फ जनाज़े उठा करते हैं……..
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