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जरा याद करो क़ुरबानी……..

परिवर्तन की ओर.......
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गाँधी राजनेता या महात्मा.

महात्मा गाँधी, एक ऐसा व्यक्तित्व जो न केवल अपने जीवन काल में अपितु अपनी मौत के कई सालो के बाद भी लोगो के बीच अपनी शशक्त उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. भले ही कुछ लोग गाँधी को महान कहे लेकिन गाँधी को कोसने वालो की भी कोई कमी नहीं हैं.

Mahatma.Gandhi

गांधी को भले ही सारा संसार महान कहे, लेकिन उनके विरोधियो के तर्कों को नकार पाना भी मुमकिन नहीं हैं. हर सिक्के के दो पहलु होते हैं…… विपक्ष की बुनियाद ही पक्ष पर टिकी हैं………. यदि पक्ष नहीं होगा तो विपक्ष के होने की कोई गुंजाईश नहीं हैं…………… असत्य इसी लिए हैं क्यों की सत्य का अस्तित्व हैं……….. पुण्य इसी लिए हैं क्यों की पाप भी है…………….. अन्धकार का होना ही प्रकाश की सार्थकता है……….. गाँधी द्वारा दिया गया अहिंसा सा नारा हिंसा का अस्तित्व न होने पर संभव ही नहीं था.

किसी के कृत्यों की समीक्षा करना बड़ा सरल काम है. दुसरो शब्दों मैं कहे तो संसार में इससे सरल कोई कार्य नहीं हैं……….. गाँधी के विचारो से जितना एक आम आदमी असहमत होगा उससे कई गुना मैं स्वयं था. मेरा विचार था की कमजोर व्यक्ति के पास अपने कमजोरी को छुपाने के लिए भला अहिंसा से सरल साधन क्या हो सकता हैं………….. निःशक्त आदमी भला कैसे हथियार उठा सकता है. और अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए अगर वो अहिंसक होने का दावा करता हैं तो वो पूरी तरह खोखला हैं……………

मगर हर इंसान के भीतर इक अंतरात्मा भी होती है. जो कभी कभी उसको झकझोड़ती है और कई बार वो इंसान की मुर्दा इंसानियत के साथ रहते रहते मर जाती है…………… सोने से पहले कभी कभी इंसान की अंतरात्मा कुछ सवाल कर उठती हैं………… जो उसके खुद के भीतर चल रहे होते हैं……… तब इंसान को सही गलत का बोध होता है………….. महात्मा बुद्ध जिनको की इंसान की तीनो अवस्थाओ का तक ज्ञान नहीं था………….. वो पेड़ के नीचे बैठे बैठे परमज्ञान प्राप्त कर गए…………. कैसे. ?

वास्तव मैं अंतरात्मा का ज्ञान ही परमज्ञान है………. कल सोने से पूर्व मैंने गाँधी पर एक फिल्म देखी लगे रहो मुन्ना भाई…………….. फिल्म बहुत अच्छी लगी लेकिन गाँधी के प्रति जो बुरे विचार थे वो जरा भी कम नहीं हुए……………..

वास्तव में फिल्म में देखी आम सच्चाई को भी हम भुला देना चाहते है………. और उसके लिए हमारे पास एक साधारण सा बहाना है की फिल्म ही तो थी………. लेकिन सोने से पूर्व मेरी अंतरात्मा नाम की चीज़ ने सवाल खड़ा किया की………
क्या वास्तव मैं गाँधी महान था. ?……………..

दिमाग ने तुरंत कहा……….नहीं.

किसी से डर कर अगर आप शांत हो जाओ तो ये अहिंसा नहीं हैं……….. ये कायरता हैं.

तभी अंतरात्मा ने पूछा………….

क्या तू ऐसा कर सकता हैं……………..
दिमाग का जवाब था नहीं……………

और इस के पीछे तर्क था …………क्यों की मैं कमजोर नहीं हु……………… और न ही मैं कायर हु…………..

अब अंतरात्मा का प्रतियूत्तर में नया सवाल था की जो काम एक बच्चा भी कर ले वो सरल है या जो बड़े से बड़ा न कर पाए वो. …………….

अब अंतरात्मा पर हंसी सी आने लगी, लगा इतना छोटा सा सवाल पूछने वाली अंतरात्मा मेरी ही हैं…………….

फिर भी उत्तर दिया.. जो काम बड़े से बड़ा न कर पाए वो ही मुश्किल होगा.

अब फिर अंतरात्मा ने हसते हुए कहा कभी किसे बच्चे को अहिंसा का पालन करते देखा हैं..

सामन फेक कर मारना तो बाल सुलभ है……….. एक साल का बच्चा भी किसी पर भी हाथ उठा देता हैं. तो फिर हिंसा कहा से मुश्किल कार्य हैं. क्रिया पर प्रतिक्रिया तो प्रकृति का नियम हैं. तो इसको तो यु ही किया जा सकता हैं. हिंसा पशु भी कर सकता हैं. तो फिर इंसान उससे अलग कैसे.

जो आदमी सहारे के लिए लाठी ले सकता हैं. क्या वो उससे प्रहार नहीं कर सकता हैं.लेकिन गाँधी ने कभी ऐसा नहीं किया. आन्दोलन के दृष्टिकोण से सशस्त्र क्रन्तिकारी होना आसान हैं. लेकिन भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव या सुभाष चन्द्र बोस या ऐसे अन्य कई प्राचीन क्रान्तिकारियो सा होना सरल कार्य नहीं हैं………….. क्योकि इनकी एक विचारधारा थी वो इनकी हिंसा को सार्थक साबित करती है………. अन्यथा इन महापुरषों के उदहारण दे कर ही कई लोगों को आतंकवाद के रास्ते पर डाल दिया जाता है……….. ये अलग अलग मुद्दों पर हथियार लेकर लड़ने वाले…. खुद को भगत सिंह और आजाद से कम नहीं आंकते है………..लेकिन उनके जैसा क्रन्तिकारी आन्दोलन, और महात्मा गाँधी जैसा अहिंसा का प्रणेता दुबारा होना नामुमकिन हैं.

ये हमारे देश का सौभाग्य हैं की ये प्रारंभ से दर्शन और आध्यात्म का देश रहा है.. इस देश ने कभी भी न्यूटन, फ्लेमिंग, आइन्सटाइन, नोबेल या और भी कई वैज्ञानिक जैसे वैज्ञानिक नहीं दिए….. क्योकी जब ये लोग नयी नयी खोज कर रहे थे तब भारतीय लोग ब्रहमांड की सबसे बड़ी खोज आत्मा की खोज मैं व्यस्त थे………….
न्यूटन गुरुत्वाकर्षण की खोज कर रहा था, जो की भारत मैं कभी के की जा चुकी थी. ये बड़े दुर्भाग्य की बात है की न्यूटन की खोज को हम महान मान कर अपने भावी यूवाओं को उसकी प्रेरणा देते है. और न्यूटन या उस जैसे कई वैज्ञानिक अपनी ऐसे ही किसी खोज के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर लेते है. किन्तु हम कभी ये प्रश्न नहीं करते की न्यूटन ने आखिर खोजा क्या. एक बल जो हर चीज़ को अपनी और खीचता है………… उसको गुरुत्वाकर्षण का नाम दे दिया. लेकिन वो ये तो बता ही नहीं सका की ये बल लगाता कौन है. ये बल आखिर है क्या……………
ये हमारा दुर्भाग्य है की पश्चिम में गुरुत्वाकर्षण की खोज करने वाले न्यूटन को महान कहा जाता है और इन सब बलों का कारण परमात्मा और संसार का सबसे अधिक उर्जा का केंद्र आत्मा की खोज करने वालो को हमारे देश में बाबा कहा जाता है……………. और उस पर भी छोटे छोटे बच्चो को उस बाबा का भय दिखाया जाता है……………… न्यूटन को बच्चो को आदर्श के रूप में और परम ज्ञान को प्राप्त कर चुके साधू को बाबा बना दिया जाता है…… वो भूल जाते है की न्यूटन के द्वारा खोजा गया बल अब उस बच्चे के लिए किसी काम का नहीं है. वो अब उसको दुबारा नहीं खोज सकता है. किन्तु उस तथा कथित बाबा द्वारा की गयी खोज उसके लिए अपनी हो सकती है…………… क्यों की ये खोज सबको अपने स्वयं के लिए करनी है. सबसे बड़ी खोज करने वालो को वैज्ञानिक इसलिए नहीं कहा जाता है क्योकि की आत्मा और परमात्मा को खोजने वालो की खोज केवल उनके लिए ही हो. और हर खोज पूर्ण होने के बाद सिधांत बन जाती है. और अन्य कोई उसको पुनः खोजे तो उसका कोई अर्थ नहीं रह जाता है. किन्तु आत्मा की खोज हर किसी के लिए एक नयी खोज है. जो उसको खोजता है वो उसके लिए प्रथम हो जाता है.
ये भारत का सौभाग्य है की सांसारिक साधनों की खोज से भारतीयों को कभी कोई मतलब नहीं रहा. वो जानते थे की किसी की खोज करने से पूर्व ये जानलेना ज़रूरी हैं की वो खुद क्या हैं. स्वयम की खोज मैं भारतीयों ने हमेशा बाज़ी मारी हैं. ऐसे लोग जिन्होंने स्वयं पे विजय प्राप्त कर ली वो ही महात्मा बन सके. कबीर, नानक, दादू, रैदास और न जाने कितने लोगों ने स्वयं को विजय कर के दिखाया………. और विवेकानंद इस क्षेत्र में कही आगे बढ़ गए और उन्होंने भारतीय आध्यात्म को देश के बाहर भी शिखर पर पंहुचा दिया….. विवेकानंद के सन्दर्भ में मैंने पढ़ा था की उनका भाषण सुनने वे वैज्ञानिक भी आते थे जो अक्सर अपने प्रयोगशाला से बाहर नहीं निकलते थे………… क्योकि वो इस जगत में खोज रहे थे और विवेकानंद इस जगत से परे जहाँ से इन सब का संचालन हो रहा है……. उस जग की बात बता रहे थे…………

लेकिन हमारे देश की ये बहुत बड़ी विडम्बना हैं की यहाँ शराब या ओर कोई नशा करने के बाद आदमी बड़ा दार्शनिक हो जाता हैं. रम अन्दर जाती हैं………. तो राम अपने आप बाहर आ जाते हैं. वास्तव मैं ये भारतीय दर्शन है…………… जो हर इंसान के अचेतन मन मैं कही न कही घर कर बैठा हैं. जब इंसान नशे मैं होता हैं तो उसके अंदर की सारी बातें बाहर आ जाती हैं. सबसे बड़ा दुर्भाग्य इस देश का ये ही है की आध्यात्म की राह पर चलने वाले की हमेशा उपेक्षा की गयी है और उसको आलोचना का पात्र बनना पड़ा है.

लेकिन गाँधी की तरह जब इंसान काम, क्रोध, लोभ, मोह छोड़ देता हैं……….. तो फिर वो आलोचना समालोचना की सीमाओं से बाहर हो जाता है……… क्योकि वो इसको अपने तक सीमित न रख कर देश हित से जोड़ देते हैं…………..गाँधी की आलोचना करने से पूर्व हमको सोचना होगा की क्या हम केवल एक दिन अहिंसात्मक रुख अपना कर रह सकते हैं. एक दिन जब हम पूरा समय किसी बात क्रोध नहीं करेंगे. जब हम सब कुछ सेहन कर लेंगे. और अगर एक दिन ऐसा कर के आप को लगता हैं के आप इस अहिंसा वाले दिन को हर रोज पूरा कर सकता हैं. और आपको तब भी लगता हैं. की गाँधी जी की भूमिका एक कमजोर आदमी जैसे थी तो फिर आप स्वतंत्र हैं उनको कोसने को. क्यों की आप भी महात्मा बन ने की यौग्यता रखते हैं.

…….”मत कहो आकाश मैं कोहरा घना हैं.
………ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना हैं.”

इन पंक्तियों मैं दुष्यंत कुमार साहब कोहरे की आलोचना से भी गुरेज कर रहे हैं. और हम गाँधी जी तक को नहीं बख्शते…………

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