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शर्तों पर प्रेम ……

परिवर्तन की ओर.......
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जागरण जंक्शन ने वेलेंटाइन डे प्रेमियों के महापर्व के लिए प्रतियोगिता का आयोजन कर एक मौका दिया है की लोग अपने विचार प्रेम के प्रति दें………. इस मंच पर मेरे भीतर जितना भी प्रेम था वो मैं पूर्व मे ही कुछ लेखों पर उड़ेल चुका हूँ……… अब कुछ विचार है ओर न ही खाली समय है…… तो मजबूर हूँ की उनही अपने तरह के प्रेम से सराबोर लेखों को दुबारा प्रस्तुत करूँ…….. चुकि वेलेंटाइन डे जैसे महापर्व मुझ जैसे मूढ़ों के लिए नहीं है…….. इसलिए इस महापर्व के अनुसार हमारा लिखना बहुत मुश्किल है….. तो कुछ पुराने लेख दुबारा इस महापर्व पर इस मंच को समर्पित कर रहा हूँ…………


एक बार एक जंगल मे एक भँवरा ओर एक तितली रहा करते थे । दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे । भँवरे के मन मे एक दिन विचार आया की क्या तितली भी मुझे उतना ही प्रेम करती है जितना की मैं । भँवरा जानता था की तितली उसको बहुत प्रेम करती है । पर वो ये जानने को उत्सुक था की आखिर कितना प्रेम वो उसको करती है ।


उस जंगल मे एक फूल का पेड़ था । इस पेड़ पर एक बड़ा ही सुंदर पुष्प लगता था जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक खिला रहता था ओर ज्यों ही अंधेरा होने लगता वो मुरझा जाता । ओर फिर अगले दिन वो सूर्य की किरणों के साथ फिर खिल उठता । दोनों अक्सर उस फूल के पेड़ के पास मिलते । भँवरा रोज सुबह जल्दी पहुँच जाता ओर तितली का इंतज़ार करता ।


अब जब भँवरे ने तितली की परीक्षा लेने का फैसला कर लिया था तो उसने सुबह सुबह देर से आई तितली से कहा की क्या तुम भी मुझे उतना ही प्रेम करती हो जितना की मैं तुम्हें । तितली ने कहा मुझे नहीं पता की तुम मुझे कितना प्रेम करते हो पर मेरे प्रेम की कोई सीमा नहीं है । ये मापने के योग्य नहीं है । ये परिमाप की सीमा से परे है ।

भँवरा इतने से संतुष्ट नहीं था । वो ठान चुका था की वो जान कर रहेगा की आखिर तितली उसको कितना प्रेम करती है ।


उसने तितली से कहा की हम दोनों मे से कौन किसको अधिक प्रेम करता है इसका पता लगाने का एक तरीका मेरे पास है । तितली ये सुनकर हैरान थी । उसने कहा की वो क्या । भँवरा बोला की कल जो भी इस पुष्प पर पहले बैठा होगा वो ही दूसरे को अधिक प्रेम करता होगा । तितली ने भँवरे को समझाया की प्रेम परीक्षा से नहीं विश्वाश से बढ़ता है ओर इसकी माप किसी भी तरह नहीं की जा सकती है । किन्तु अब भँवरे को लागने लगा की तितली बहाने बनाने का प्रयास कर रही है। उसने कहा की परीक्षा देने मे संकोच क्यों । तितली को मजबूर होकर मानना पड़ा ।


दूसरे दिन भँवरा सूर्योदय से पूर्व पुष्प के पास आकर बैठ गया । किन्तु तितली का कोई पता नहीं था । धीरे धीरे सूर्य के उगने का समय नजदीक आ गया । किन्तु तितली का कोई पता नही था । भँवरे को लगा की शायद तितली को उससे प्रेम नहीं इसी लिए वो नहीं आ रही है ।


किन्तु शर्त के अनुसार तय था की जो पहले पुष्प पर बैठेगा वो ही दूसरे से अधिक प्रेम करता है तो भँवरा बुझे मन से पुष्प पर बैठने को जाने लगा । जैसे ही वो पुष्प के पास पहुंचा, सूर्य के प्रकाश के साथ पुष्प पूरा खुला ओर उसके अंदर मरी हुई तितली पड़ी थी । भँवरा अवाक रह गया । उसकी कूछ समझ मे नही आया की ये क्या हुआ ओर कैसे हुआ । वो वहीं पर रोने लगा । ओर रोते रोते उसने उस पुष्प से पूछा की प्यारे पुष्प इस तितली की ये दशा कैसे हुई ।


पुष्प बोला कल सूर्यास्त के समय ये तितली मेरे पास आई ओर मेरे ऊपर बैठ गयी । मैंने इसको कहा की सूर्यास्त होने को है ओर मेरी ये पंखुड़ियाँ सूर्यास्त के साथ ही बंद हो जाएगी ओर तू इनके बीच दब कर मर जाएगी । पर ये नहीं मानी इसने कहा की मैं जानती हूँ की भँवरा मुझे बहुत प्रेम करता है ओर वो भोर होने से पूर्व ही यहाँ आ जाएगा । ओर तब शायद वो मुझसे पहले तुम पर बैठ जाए । ओर मैं प्रेम की इस शर्त को नहीं हारना चाहती हूँ । ओर तब मैंने उसको कहा की लेकिन तू इस तरह तो मर जाएगी । तब तितली बोली की मैं भले मर जाऊँ लेकिन शर्तों ओर मापों से परे मेरा ये प्रेम सदा जिंदा रहेगा ।


ये सारी बात सुनकर भँवरा बहुत दुखी हुआ । आज उसको ये एहसास हुआ की प्रेम मे कोई बंधन कोई शर्त कोई माप नही हो सकती । प्रेम इस सब से परे की अनुभूति है । पर अब बहुत देर हो चुकी थी उसने उससे अनंत प्रेम करने वाली उस तितली को अपनी शर्त के लिए मरने को विवश कर दिया था … उसी शाम उसी पुष्प के ऊपर बैठ कर उस भँवरे ने भी आपनी जान दे दी …. अगली सुबह भँवरा ओर तितली दोनों की मृत देह उस पुष्प के अंदर पडी थी……. दोनों एक सुदर जीवन जी सकते थे किन्तु मात्र परखने के फेर मे दोनों को जान देनी पड़ी….

ओर ठीक उसी भँवरे की तरह हम भी शर्तों पर प्रेम, मित्रता ओर न जाने कैसे कैसे सम्बन्धों को परख रहे हैं….. अगर आप मेरी शर्तों पर खरे उतरे तो आप मेरे परम मित्र अन्यथा नहीं । अगर पिता ने पुत्र की मांग पूरी की तो संबंध नहीं तो नहीं ?

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