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कैसा हो वेलेंटाइन डे …….

परिवर्तन की ओर.......
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इस दिन के बारे मे भले ही कुछ भी कहा जाए…. पर एक बात से इंकार नही किया जा सकता…. की कम से कम एक दिन आधी से अधिक दुनिया… दिन को एक ही तरह से मनाती है….. अन्यथा किसी भी विषय पर दुनिया के इतने लोग एक मत हों ऐसा सुनाई नहीं देता…….
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कई लोग है जो जानते भी नही की आखिर इस दिन को मनाया क्यों जाता है….. उनके लिए बस ये एक दिन है जिस दिन उन्हें अपने ह्रदय मे उमड़ रहे अपार प्रेम को पार्कों, बगीचों, पिक्चर हॉल की कोर्नर की सीटों मे बिखेरना है…. एक दिन जब अपने साल भर के प्रेम का हिसाब किया जाए….. एक बड़ा ही जटिल दिन बना दिया है….
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इस दिन माता पिता घर से बाहर जाने वाली अपनी पुत्री के बारे मे ये सोचने को विवश हो गए है की कहीं आज कोई मनचला इस बालिका को कोई कार्ड या अन्य गिफ्ट न थमा दे….. या कई यूं भी सोचते है की कहीं आज क्लास किसी पार्क मे न लग रही हो……. घर से इत्र छिड़क कर बाहर निकलते पुत्र से पिता पूछ लेता है की कहाँ है आज का कार्यक्रम …….. और बेटा जब कहता है की कॉलेज तो पिता कहता है…….. की आज तक तो इतने समय से और इस उत्साह से कॉलेज जाते हुए नहीं देखा… पापा आज हमारी प्रैक्टिकल क्लास है… ओर पिता जी बोलते हैं ….. चुपचाप अंदर बैठो….. हम जानते नहीं है क्या की आज किस का प्रैक्टिकल है…… (ये हमारे कॉलेज टाइम मे मेरे एक मित्र के साथ हुआ हादसा है…..)
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वास्तव मे किसी भी पर्व को मनाए जाने के पीछे कुछ विशेष कारण होते हैं….और उनका एक महत्व भी होता है…. वेलेंटाइन डे मनाए जाने के पीछे भी कुछ कारण हैं……. प्राचीन काल में इस दिन को जूनों देवी की उपासना से जोड़ा जाता था………… जूनों प्रेम और सौंदर्य की देवी थी और रोमन नागरिकों का विचार था कि वे युवतियों को जीवन मे प्रेम का आशीर्वाद देती हैं….. ये प्रेम केवल अपने पति के प्रति ही नहीं …. अपितु नारी के एक गुण के रूप मे सभी के प्रति प्रेम का आशीर्वाद…. इस अवसर पर देवी की पूजा होती, उत्सव मनाया जाता था ……. और युवक युवतियाँ देवी से अपने प्रिय व्यक्ति को पति या पत्नी के रूप में माँगते….. और विवाहित लोग अपने जीवन मे प्रेम को बढ़ाने के लिए प्रार्थना करते….
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बाद में इसका स्वरूप बदला और इसे संत वेलेंटाइन से संबंधित कर दिया गया… क्लाडीयस द्वितीय के शासनकाल में संत वेलेंटाइन नामक लोकप्रिय बिशप थे , जिसका देहांत १४ फरवरी २७० ईस्वी को हुआ तो इस पर्व को उनकी याद में १४ फरवरी को ही मनाया जाने लगा….. वर्तमान मे इस दिवस को केवल प्रेमी ओर प्रेमिका के लिए ही माना जाने लगा…….
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वास्तव मे ये पर्व हमारे लिए भी है …….. हमारे भारतीय साहित्य में बसंत को प्रेम की ऋतु कहा गया है……… प्राचीन भारत में बसंत पंचमी के अवसर पर होने वाली कामदेव की पूजा भी वसंत और प्रेम के घनिष्ठ संबंधों को स्पष्ट करती है…….. शायद यही एक प्रमुख कारण पश्चिम में संत वेलेंटाइन डे मनाने का भी हो……. प्यार के पर्व का प्यार के मौसम से संबंध होना स्वाभाविक भी है……. यूरोप और एशिया के अधिकतर देशों में इस समय तक कड़क सर्दी का अंत हो जाता है…….. और अच्छे मौसम का प्रारंभ हो जाता है……. बर्फ़ पिघलने लगती है, ठंडी हवाएँ बहना बंद हो जाती हैं……. और गुनगुने मौसम की सवारी दिखाई देने लगती है, यानी या तो बसंत आ जाता है……. या आनेवाला होता है……. चारों तरफ़ हरियाली फैली होती हो, रंग-बिरंगे फूलों से बगीचे भरे हों तो प्रियजनों की याद स्वाभाविक है……..
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कुछ मौसम ऐसे होते हैं जब की प्रेम प्रकृति मे घुल सा जाता है…… शायद इसी लिए हमारे यहाँ शादी के लिए लग्न भी कुछ महीने विशेषों मे ही होते है……… जब की मौसम मे ही प्रेम भर जाता हो……… जब प्रेम बढ़ाने मे प्रकृति स्वयं सहायता करती है……. इसी लिए इस मौसम को अनुकूल जान कर ही इस समय को इस तरह मनाया जाता होगा…. हमने बेशक ये त्योहार बाहर से उधार लिया है पर इसके स्वरूप को हम अपने देश की संस्कृति के अनुसार मना सकते हैं…….
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किसी देश, धर्म या संप्रदाय की अच्छाइयों को ग्रहण करने मे कोई बुराई नहीं है……… पर उसकी वर्तमान कमजोरियों के साथ ग्रहण करने के स्थान पर उसको नयी अच्छाइयों के साथ ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए………. ताकि वो अपने नए स्वरूप के साथ सामाजिक बदलाव का जरिया बने और सभी लोग उस परंपरा से जुड़ सकें…….
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हमने इस पर्व को प्रेमी प्रेमिका का दिन बना दिया है…….. जबकि हमें ये प्रयास करना चाहिए था की कम से कम इस एक दिन हम सभी मिलने वालों से प्रेम पूर्वक व्यवहार करेंगे…….. ये साल का एक दिन होगा जब हम अपने आपस के गिले शिकवे भूल कर एक नयी शुरुवात करेंगे ………. जैसा पहले तक होली के पर्व पर होता है……. किन्तु अब होली का दिन ही सबसे अधिक झगड़े ओर फसाद का दिन बन गया है….. तो हम सभी को इस दिन को एक पवित्र दिन बनाने का प्रयास करना चाहिए…… क्योकि इस दिन का विरोध इस लिए नहीं है की ये त्योहार विदेशी है……. अपितु इस लिए है की इस त्योहार को मनाने के नाम पर हम एक दिन पाश्चात्य संस्कृति का आनंद लेने को आतुर है……
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भारतीय प्रेम और पाश्चात्य प्रेम का अंतर समझें….. यहाँ प्रेम को एक पवित्र स्थान प्राप्त है…. यहाँ प्रेम को भक्ति का ही एक रूप माना जाता है…… यहाँ कृष्ण के प्रेम मे मीरा भगवान को पा जाती है……….. पर पश्चिम मे प्रेम कुछ दिनों का साथ जैसा है……. पश्चिम के प्रेम ने यहाँ भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है…….. यहाँ भी लिव इन रिलेशन को अपनाने की होड मच रही है………… जोकि प्रेम के मूल स्वरूप का विनाश है………..

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