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दिन दीदी जाग जाग……..

परिवर्तन की ओर.......
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एक बार फिर एक लोककथा आपके बीच प्रस्तुत कर रहा हूँ……. क्योकि ये एक लोक कथा है.. तो इसके शीर्षक में लगा हुआ….. जाग-जाग हमारी कुमाउनी भाषा का एक शब्द है…… जिसका अर्थ जागने से नहीं अपितु रुकने से है…… तो इस शीर्षक को दिन दीदी रुक रुक …… भी कह सकते हैं…… पर जो भाव जाग जाग में है वो रुक रुक में नहीं आता…….. इसलिए मैंने शीर्षक से कोई बदलाव नहीं किया………………

कहानी कुछ इस प्रकार है……..
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पुराने समय में शादियाँ समय से कुछ जल्दी हो जाया करती थी……. इसी तरह एक छोटी सी लड़की जिसकी उम्र चौदह या पंद्रह साल थी……… की शादी हो गयी….. उसकी सास बहुत ही बुरे स्वाभाव की थी…… छोटी सी बहु के प्रति भी उसका बड़ा बुरा रवैया था…… बहु के मायके जाने सम्बन्धी बात से ही वो बौखला जाती…… तीज त्योहारों पर जब हर किसी का मन अपने घर वालों से मिलने को व्याकुल होता है……. तो उस समय वो छोटी सी लड़की भी अपने मायके वालों से मिलने को तरसती…………. हालाँकि अब ये घर ही उसका था…. पर अभी ये बात समझ सकने का बोध उसमे नहीं था………
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जब भी वो गाँव की अन्य लड़कियों को उनके मायके जाते हुए देखती तो वो मायूस हो जाती…….. उसकी आत्मा दुखती… वो भी अपने माता, पिता, भाई, बहिन, सखी सहेलियों से मिलने के सपने देखती पर कुछ नहीं कर सकती थी………..
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एक दिन सुबह सुबह डर डर के उसने अपनी सास से पूछ ही लिया…….. ” ईजा (माता जी) कल रात बड़ा बुरा सपना देखा……..तब से मइके की बड़ी याद आ रही है……. आज कल बड़े भैया छुट्टी आये हैं…. अगर दो चार दिन के लिए मुझे मायके भेज देती तो बड़े भैया से भी मिलना हो जाता………. और कब से मइके नहीं गयी ईजा-बौजू (माता-पिता) की भी बहुत याद आती है तो उन से भी मुलाकात हो जाती……….. चार दिन में मैं वापस भी आ जाती…….. सास चिड़कर बोली ……… हाँ यहाँ क्यों तेरा मन लगेगा…….आज कल फसल काटने का काम हो रहा है तो तू वहां काम करने चली जा और यहाँ में अकेली लगी रहूँ……….
बेचारी बहु ने कहा की नहीं ईजा,,,,, मैं सारा काम करके ही जाउंगी……. अब सास ने कहा की ठीक है तू आज शाम को चली जाना …….. लड़की ख़ुशी से उछल पड़ी……. फिर सास ने आगे कहा पर जाने से पहले गायों के गोठों से गोबर निकल लेना….धान कूटने हैं वो कूट जाना….. जंगल से चार दिनों के लिए घास काट के ले आना…………और फिर तू चली जाना…………..
लड़की बड़ी खुश हुई… उसको लगा की जिस सास को वो बुरा समझती थी वो उतनी बुरी नहीं थी……. अब वो सबसे पहले गोठ में गयी….. वहां ढेर सारा गोबर भरा था…….. पर गोबर उठाने की टोकरी सास ने छुपा दी थी……….. बेचारी लड़की अंजुली में गोबर भर भर कर बहार फेंकती रहती और रोती जाती……की कैसे शाम तक वो इतना सारा काम कर पायेगी……….. दोपहर का समय हो गया गोबर फेंकते फेंकते ……..
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अब अन्दर से वो धान निकल कर लायी कूटने के लिए ……….. और जैसे ही ओखल के पास गयी तो देखा की मुसल वहां था ही नहीं………. मुसल सास ने छुपा दिया था……. अब वो समझ गयी की अब कुछ भी नहीं हो सकता है…………. इंसान कितना ही निर्दयी क्यों न हो जाये पर पशु पक्षी और जानवर एक अपार करुना से भरे रहते हैं……… उस रोती हुई बहु के ठीक ऊपर एक पेड़ पर चिड़ियाँ बैठी थीं जब उन्होंने लड़की को यूँ रोते देखा तो वो सब आ गयी मदद को ………. सबने अपनी चोंच से धान तोड़कर चावल अलग कर लिए………
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वो अब सास के पास धान लेकर गयी……. सास ने नाली(आनाज तो मापने का पात्र) में चावल को माप कर देखा………. तो कुछ दाने कम निकले तो वो भड़क गयी की तुने चावल खा दिए…….वो रोती हुई आँगन में गयी तो वहां कुछ चिड़ियों के चोंच में दाने फंस गए थे तो उन्होंने निकल कर लड़की को दे दिए ……… लड़की ने वो सास को दिए और चावल पुरे हो गए……….

अब फिर बहु को हौसला आया और वो अब दौड़ी घास काटने के लिए….. सास ने घास काटने की दराती और रस्सी छुपा दी……….. बेचारी लड़की घास के पास बैठ कर रोने लगी……….. और इश्वर से प्रार्थना करने लगी की हे प्रभु आप न्यायी है मेरी विपत्ति टाल दो………. तभी चूहों का एक झुण्ड आकर अपने तेज दातों से घास काटने लगा अब दिन धीरे धीरे ढलने लगा था…… बेचारी लड़की “दिन दीदी जाग जाग” (रुक जा ओ दिन दीदी) कहती रहती………. चूहों ने घास काट कर ढेर लगा दिया और कहीं से सापों ने आकर गट्ठर बांध दिया……..
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लड़की गट्ठर उठाकर घर को ले जाती रहती और साथ ही “दिन दीदी जाग जाग” (रुक जा ओ दिन दीदी) का उच्चारण भी करती रहती……. जब सारा काम पूरा हो गया तो लड़की बड़े प्रसन्न मन से चल पड़ी अपने मायके की और……… वो दिन रहते रहते ही मायके पहुँच जाना चाहती थी इसी लिए रस्ते भर “दिन दीदी जाग जाग” (रुक जा ओ दिन दीदी) जप्ती रही……….. जब वो मायके पहुची तो सूर्य भगवान् पहाड़ की चोटी पर रुके थे……… उस छोटी सी लड़की के दुःख में वो इतनी देर तक रुके रहे की वो दिन बहुत लम्बा हो गया……

अब लड़की अपने मायके के दरवाजे पर पहुच गयी………. मायके पहुँचाने की ख़ुशी में वो दिन दीदी को विदा करना भूल ही गयी………. सूरज इस इंतजार में था की अब वो लड़की उसको विदा करेगी ……….. पर जब घर वालों के प्रेम में वो भूल ही गयी की दिन उसने रोका है तो सूर्य देव को क्रोध आ गया……… और उसने उस लड़की को अपने मायके की देली (दरवाजे) में ही दम तोड़ देने का श्राप दे दिया…………

और वो मायके वाले जिनसे मिलने के लिए वो लड़की व्याकुल थी उनको अंतिम बार देखे बिना ही वो लड़की अपने मायके की चौखट पर ही मर गयी………….

इस कहानी को पढ़ कर अपने कथा निर्माताओं की सोच पर कुछ दुःख हुआ……. कई लोग तो ये कहते हैं की ये सत्य है…… पर सोचने वाली बात ये है की क्या वो सूरज उस लड़की को मृत्यु दे सकता है….. जो उस लड़की की करुण पुकार पर रुका रहा…. वो उस लड़की को उस समय जबकि वो उस आँगन पर पहुच गयी थी जहाँ पहुँचाने के लिए ही वो सूर्य देवता से प्रार्थना कर रही थी मौत दे दे……….. यदि ये वास्तव में सही है तो क्या उस सूर्य को देवता कहना उचित होगा……….

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