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आज उत्तराखंड की लोक संस्कृति के सन्दर्भ में लगी एक प्रदर्शनी में जाने का अवसर मिला….. हर जगह उत्तराखंड के सन्दर्भ में तरह तरह की जानकारी थी……… कहीं बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, हेमकुंड साहिब, नानकमत्ता साहिब आदि की तस्वीर लगी थी…. और उनके बारे में जानकारी लिखी थी……… तो कहीं गाँधी जी की उत्तराखंड यात्रा के चित्रों का संकलन लगा था………… तो कहीं कुषाण कालीन सिक्के … प्राचीन तलवार भी रखे थे…………
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हर तरफ भीड़ लगी थी…….. एक जगह भीड़ नहीं लगी थी…….. तो उत्सुकता जगी की आखिर वहां सूनापन क्यों है ………. आखिर वहां ऐसा क्या है जिसे कोई देख नहीं रहा………. तो वहां उस दीवार पर आजादी की लड़ाई में शहीद हुए उत्तराखंड के क्रांतिकारियों के नाम लगे थे और साथ में लगी थी कवी गुमानी की एक कविता………..तो याद आया की अरे हाँ ये गुमानी जी तो वही है जिनको कुमाउंनी भाषा का प्रथम कवि माना जाता है…..मेरे साथ गए मित्र ने पूछा की पन्त जी क्या बात गुमानी की कविता को लिख रहे हो………… तो मैंने मजाक में ही कहा की यार ये हमारे दादा जी के दादा जी थे……… पर अब इनको कौन जानता है… और वो यकीन कर बैठे क्योकि दोनों पन्त ही तो हैं………….. फिर सोचा की इनके बारे में क्यों न सबको बताने की कोशिश की जाये तो शुरुवात यहाँ से कर रहा हूँ………….
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गुमानी पन्त (लोकरत्न पन्त) जी को कुमाउंनी भाषा का प्रथम कवि माना जाता है………… इनके पूर्वज चंद्रवंशी राजाओं के राज्य वैद्य थे…….इनका जन्म 27 फरवरी 1790 में काशीपुर जिला उधम सिंह नगर में हुआ था………. इनका मूल निवास स्थान अल्मोड़ा का उपराड़ा गांव था…………… इनके पिता पंडित देवनिधि पंत और मां देवमंजरी थीं……… कवि गुमानी का असली नाम लोकरत्न पंत था………… किन्तु ये गुमानी नाम से मशहूर हुए………. इनका बचपन इनके दादाजी पुरूषोत्तम पंत के साथ उपराड़ा में और काशीपुर जिला उधम सिंह नगर में बीता……………..
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गुमानी संस्कृत के महापंडित थे……….. इसके अलावा कुमाउंनी, नेपाली, हिन्दी और उर्दू में भी इनका अच्छा अधिकार था………..राजकवि के रूप में गुमानी जी सर्वप्रथम काशीपुर नरेश गुमान सिंह देव की राजसभा में नियुक्त हुए………..ये तत्कालीन कई राजाओं से सम्मानित हुए………… पटियाला के राजा श्री कर्ण सिंह, अलवर के राजा श्री बनेसिंह देव और नहान के राजा फ़तेह प्रकाश आदि ने इनका विशेष सम्मान किया……….. टिहरी नरेश सुदर्शन शाह की सभा में वे मुरक कवी के रूप में रहे……………सन् 1846 में गुमानी जी का देहान्त हो गया………………..
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इनकी प्रमुख रचनायें हैं – राम महिमा वर्णन, गंगा शतक, कृष्णाष्टक, चित्र पद्यावली, रामाष्टक, ज्ञान भैषज्य मंजरी, शतोपदेश, नीतिशतक, रामनाम पञ्च पंचाशिका ………
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गुमानी ने अपनी कविताओं में उस समय की सामाजिक परिस्थितियों का भी वर्णन किया है……………… अंग्रेजों से पहले कुमाऊँ में गौरखा राज था उस समय गुमानी ने उनके द्वारा किये अत्याचारों को अपनी रचनाओं में इस प्रकार वर्णित किया………..
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दिन-दिन खजाना का भार का बोकिया ले,
शिव शिव चुलि में का बाल नैं एक कैका….
तदपि मुलुक तेरो छोड़ि नैं कोई भाजा….
इति वदति गुमानी धन्य गोरखालि राजा….
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अर्थात – रोज रोज खजाने का भार ढोते-ढोते प्रजा के सिर के बाल उड़ गये पर राज गोरखों का ही रहा। कोई भी उसका राज छोड़कर नहीं गया। अत: हे गोरखाली राजा तुम धन्य हो।
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इसी तरह अंग्रेजी शासन के समय गुमानी ने लिखा है –
(यही वो कविता है जो उस प्रदर्शनी में लोगों की उपेक्षा का शिकार हो रही थी……….)
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अजब टोप बन्नाती कुर्ती ना कपड़े ना कुछ लत्ते….
सारा हिन्दुस्तान किया सर बिना लड़ाई कर फत्ते….
कहत गुमानी कलयुग ने यो सुब्बा भेजा अलबत्ते….
विष्णु का देवाल उखाड़ा ऊपर बंगला बना खरा….
महाराज का महल ढवाया बेडी खाना तहां धरा….
मल्ले महल उड़ाई नंदा बंगलो से भी तहां भरा….
अंग्रजों ने अल्मोड़े का नक्षा ओरी और किया….
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कुरातियों के उपर भी गुमानी ने अपनी कलम कुछ इस तरह चलायी है और एक विधवा की दशा को इस तरह से व्यक्त किया –
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हलिया हाथ पड़ो कठिन लै है गेछ दिन धोपरी….
बांयो बल्द मिलो छू एक दिन ले काजूँ में देंणा हुराणी….
माणों एक गुरुंश को खिचड़ी पेंचो नी मिलो….
मैं ढोला सू काल हरांणों काजूं के धन्दा करूँ….
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अर्थात – बेचारी को मुश्किल से दोपहर के समय एक हलवाहा मिला ….और वो भी केवल बांयी ओर जोता जाने वाला बैल मिल पाया, दांया नहीं…. खिचड़ी का एक माणा (माप का एक बर्तन) भी उसे कहीं से उधार नहीं मिल पाया…. निराश होकर वह सोचती है कि कितनी बदनसीब हूं मैं ….कि मेरे लिये काल भी नहीं आता….
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गुमानी ने अपनी रचनायें बिना किसी लाग लपेट की सीधी और सरल भाषा में की हैं…. यही कारण है कि गुमानी की रचनायें कुमाऊँ में आज भी उतनी ही प्रसिद्ध हैं ….जितनी उनके समय में थी…. कुमाउंनी के प्रथम तथा लोकप्रिय कवि के रूप में गुमानी आज भी प्रसिद्ध हैं ….और उनका नाम इस साहित्य सेवा के लिये सदैव लिया जाता रहेगा….
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इस में से कुछ भाग सामान्य अध्ययन के लिए उपलब्ध पुस्तकों से लिया गया है ….और कुछ सामग्री प्रिंट आउट के रूप में हमारे मित्र ने ना जाने कहा से खोज कर दी है…………. वो सभी लोग जो इस जानकारी को उपलब्ध करने के लिए माध्यम बने है उनको इस रचना का सारा श्रेय जाता है…………..
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