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आँधी प्रेम की ……

परिवर्तन की ओर.......
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पिछले कई दिनों से इस मंच पर प्रेम की आँधी चल रही है…… प्रेम के अलग अलग रूप ओर प्रेम के बारे मे अलग अलग विचार चल रहे हैं…. प्रेम की अंधी मे सामाजिक लेख तिनकों की भांति उड़ जा रहे हैं………. कभी सार्वजनिक तौर पर प्रेम की बात करने वाले का हुक्का पानी बंद हो जाता था…… तो आज इस मंच पर यदि आपके लेख के बाद वेलेंटाइन कॉन्टेस्ट नहीं लिखा है तो उस लेख का हुक्का पानी बंद हो जाएगा…… इस लिए सामाजिक विषय पर भी लिखते समय शीर्षक के अंत मे वेलेंटाइन कॉन्टेस्ट जोड़ना शायद मजबूरी बन जाए……

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प्रेम के इस मंथन से कुछ अमृत निकलेगा इस की संभावना कम ही नजर आती है…… क्योकि यहाँ तो प्रेम को लेकर ही मतभेद होने लग गए हैं…….. हर किसी ने अपनी अपनी परिभाषा बना ली है……. कोई आत्मा के प्रेम के पक्ष मे है तो कोई खूबसूरती के …… तो कोई रिश्तों के…. तो कई लोग केवल एक स्त्री ओर पुरुष के अतिरिक्त अन्य लोगों के बीच के संबंध मे प्रेम को मानने को ही तैयार नहीं हैं……. उनके लिए उनके पास अलग अलग शब्द है……

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एक लेख पर मैंने पढ़ा था की प्रेम केवल प्रेमी एक माँ को अपने बच्चो से सिर्फ मोह होता है क्योंकि एक बच्चा अपनी माँ का पुत्र नही शरीर का एक अंग होता है…. पर इस ओर कोई इशारा नहीं था…… की पुत्र को अपनी माँ से जो होता है वो क्या है…….. कहते हैं की यदि अपनी जान बचाने के लिए शरीर के किसी अंग का बलिदान भी करना पड़े तो हसते हसते कर देना चाहिये……. तो फिर क्यों अपनी अंग (औलाद) के लिए माँ अपना ही बलिदान कर देती  है…….

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श्रवण कुमार का अपने माँ बाप के लिए भाव क्या था……. लगाव प्रेम अथवा अंधों के प्रति सहानुभूति ……. सबकुछ अपने पक्ष मे होने पर भी पिता के मान के लिए अपने राजवंश को त्याग कर वन जाने मे राम का क्या लोभ था…. अगर केवल ये कहा जाए की वो उनके लिए पूजनीय थे…… तो कृष्ण मीरा के लिए क्या थे…….? सच्चे दिल से किया गया प्रेम पुजा हो जाता है…… तो फिर वो चाहे किसी के भी प्रति हो क्या फर्क पड़ता है…..

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एक प्रश्न था की क्या कृष्ण को अपने माँ से प्रेम था? या राम-कौशल्या के बीच कोई प्रेम गाथा सुनी है आपने?… ये आपके ओर हमारे सोचने का तरीका है ….. वो शायद इस लिए है क्योकि हम प्रेम कथा के लिए एक नायक ओर एक नायिका ही खोजते हैं…… माँ बाप के प्रति प्रेम जो वास्तविक नायक भगवान श्री राम ओर श्रवण कुमार जैसे पुत्र दिखा गए है…. हमारे स्वयं के लिए अपने जीवन मे पालन करना मुश्किल है …. इसलिए हम उस प्रेम को वास्तविक बता देते हैं जो हमें रुचिकर लगता है……. ये बड़ा ही अद्भुद नजरिया है……. और जिसे प्रेम के नाम पर प्रस्तुत किया जा रहा है …….. ये प्रेम कैसा है जो शादी के बाद खत्म हो जा रहा है….

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दो प्रेमी प्रेमिकाओं की कहानी अभी कुछ समय पूर्व तक बड़ी चर्चा मे थी …….. जिसमे प्रेमी प्रेमिका विवाह करते हैं ओर फिर प्रेमी राजेश गुलाटी अपनी प्रेमिका (पत्नी) के 70 टुकड़े करके उनको ठिकाने लगा देता है……. जो प्रेम शादी के बंधन मे बधने से खत्म हो जाता है वो प्रेम नहीं है ……. वो अपनी स्वतन्त्रता को उचित ठहराने के तरीके हैं……

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जिन रिश्तों (माँ बेटा, पिता पुत्र, भाई बहिन ) मे इंसान हमेशा मिटने को तैयार रहता है ……… उसको कर्तव्य, लगाव, मोह जैसे शब्दों मे सीमित कर के यदि प्रेम पर चर्चा की जाए तो उसका कोई अर्थ नहीं है…….

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एक मित्र द्वारा कुछ इस ऐसा भी लिखा गया था की पहले मैं प्रेम के संदर्भ मे माता पिता भाई बहिन के साथ प्रेम पर लिखना चाह रहा था पर भी वेलेंटाइन कॉन्टेस्ट के कारण मैं केवल प्रेमी प्रेमिका के बारे मे भी लिख रहा हूँ………. आखिर ये कैसा प्रेम है जो प्रेमिका के बिना शुरू ही नहीं हो रहा……….

कुछ भ्रम जागरण जंक्शन की ओर से भी रहा …….  कॉन्टेस्ट के लिये लगाया गया चित्र ये है……….

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क्या प्यार यही है जो ऊपर है और नीचे अगले चित्र मे है ………….
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या फिर वो जो सबसे नीचे लगे चित्रों मे है………… अपने पिछले ब्लॉग प्रेम मेरी नजर मे, मे मैंने ये उदहारण दिया था की ………. कभी आप गौर करके देखें जब एक घर मे कोई संतान जन्म लेती है तो कैसे उस घर का माहौल बदलने लगता है……. एक नयी प्रेम की ऊर्जा उस घर मे दौड़ने लगती है…. सारा वातावरण प्रेममय होने लगता है……. और नीचे लगे चित्रों को आप देख लें तो आपको पता चलेगा की मातृत्व का सुख मिलने पर केवल स्त्री ही नहीं अपितु जानवर भी प्रेम से भर जाते है……….

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