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सड़क पर न्यायमूर्ति……..

परिवर्तन की ओर.......
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सुबह आठ बजे का समय था….. और मैं दफ्तर के लिए निकल पड़ा था……. जहाँ से मैं ऑफिस के लिए गाड़ी में बैठता था वहां तक घर से ऑटो में जाना होता है…….. जैसे ही मैं ऑटो से उतरा तो देखा वहां बनी पुलिस बीट (बीट : कुछ स्थानों पर छोटे छोटे डब्बे रखे है जिसके अन्दर केवल दो पुलिस वाले बैठ सकते हैं…… चित्र संलग्न है…) पर भीड़ लगी है…….

पुलिस बीट पर मेरे ऑफिस जाते समय पुलिस तो कभी दिखती नहीं……हो सकता है की शायद इस के पीछे ये कारन हो की सुबह पुलिस और अपराधी दोनों के सोने का समय होता है……… ये दोनों ही निशाचर है……. अर्थात रात्रि में भ्रमण करने वाले……….. यहाँ इस चौराहे पर खड़े होकर मैं हर रोज अपनी गाड़ी के आने का इंतजार करता हूँ और उस दिन भी कर रहा था……..

beet.
एक बार फिर रोने चिल्लाने की आवाजें आने लगी……. अब गाड़ी तो दिख नहीं रही थी….. मैंने सोचा एक बार देख तो लूँ की माजरा क्या है….. दूर से ही मैंने देखा की. वहां बीट के भीतर एक लड़का बैठा था …… और गला फाड़ कर रो रहा था….. उसको ही चारों और से लोगों ने घेर रखा था…… और उसकी शकल बता रही थी की बुरी तरह से उसकी पिटाई हो चुकी है…… वो चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था की बाबु जी मैंने कुछ नहीं किया बाबु जी…… और लोग चर्चा में लगे थे……..

तभी एक लड़का भी दौड़ता हुआ आया और उसने भी बहती गंगा में हाथ धो ही डाला …. और दो चार झापड़ जड़ दिए………… फिर बोला क्या किया इस साले ने………. फिर भीड़ भी उसकी हरकत से थोडा सा दवाब में आ गयी…….. और उस भीड़ में से एक आदमी बोला …………

अरे भाई साहब चोरी कर रहा था……..साला…….. वो भी मंदिर से………….

मंदिर से चोरी ………….साले तेरी तो……… .का उद्घोष करके वो फिर चढ़ गया ………. और फिर दे दाना दान……… चार पांच हाथ धर दिए……….और बोला बुलाओ पुलिस को साला चोरी करता है…….. छोड़ना नहीं इस साले को………..

और वो पीछे की और मुड़ा और कुटिल मुस्कान चेहरे पे ले कर अपनी मित्र मंडली जो अपने हाथो में किताबें लेकर मेरे नजदीक ही खड़ी थी …….. में घुस गया और बोला साला सुबह ट्यूशन में मास्टर जी ने मुझे पेल दिया था……….. तब से मुड ख़राब था…. अभी हाथ साफ़ किया तो थोडा सुकून मिल गया……… नहीं तो साला पूरा दिन काला हो जाता….. उस मास्टर का चेहरा याद कर कर के मारे उसको झापड़…………
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फिर मैंने थोडा नजदीक जा कर उस बीत के अन्दर देखा ……..तो उसके पास कोई सामान नहीं था…. फिर मेरा माथा ठनक गया……… मैंने भीड़ के नेता से पूछ लिया…… की इसने चोरा क्या ये तो खाली हाथ है…….. और पता कैसे चला की ये चोर है………

अब नेता जी बोले……… अरे भाई साहब …. मैं वहां मंदिर के गेट पर ठेला लगता हूँ…… फल का…… अब ये सुबह सुबह ये मंदिर में घुसा ….. साला खाली हाथ मंदिर में गया और वापसी में थैला भरा जैसा लगा……… तभी मुझे शक हो गया ………

मैंने कहा की ये तो एक दम सही बात है यार………… अब अगर मंदिर कोई भरा थैला ले कर जाये और खाली हाथ आये तो तो समझ आता है …………… पर कोई खाली हाथ जाये और झोली भर के ले आये तो शक हो क्या यकीन हो जाना चाहिए की वो चोर है………

वो बोला तो और क्या……… ऐसे कैसे भर सकता है किसी का झोला……….. बस फिर क्या था…….. मैंने वहीँ से जो इसको पीटना शुरू किया तो मारते मारते हीयां बीट तक ले आया………. फिर वो छोटू चाय की दुकान वाला फिर उसने भी दे दना दन जो मारा इस साले को………. तब से रो रिया है………..

तो मैंने कहा की यार तो सीधे पुलिस को बुला लेते ……… तो वो बोला अरे अभी तो मंदिर वालों ने कोई मारा है……..अभी तो वो भी आंगे….. जभी वो मार लेंगे…….. तब जाकी पुलिस को बुलांगे……… इसका न्याय तो हमहीं कर देंगे…..

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इस घटना को सुनते ही मुझे एक और घटना की याद आ गयी……….. जब एक चोर कुछ चुराते हुए पकड़ा गया……….. और भीड़ में से एक लड़का बार बार आगे निकल कर उसको पीटता…… फिर भीड़ उसको जैसे ही पीछे हटाती वो फिर आगे आ जाता……… अब भीड़ से रहा नहीं गया ……. उन लोगों ने पूछ ही लिया यार इतना गुस्सा क्यों हो रहे हो………. तो वो बोला साला चोरी कैसे करने आया………….

फिर वो चोर ने कहा की मैं बताता हूँ…… तो वो लड़का बोला चुपकर साले तू क्या बताएगा………. दो चार जड़े और चल दिया……..तब वो चोर बोला की ये चोरी का प्लान उसका था…….. मुझे लगा अकेले ही चुरा लूँगा…… इस लिए साला भड़क रहा था………

फिर उस चोर को लोगों ने पुलिस को दिया और पुलिस ने उससे पैसे मांगे वो गरीब था इसलिए ही चोरी की तो वो कुछ दे नहीं पाया………. तो उसको जेल भेज दिया गया …………..
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तब मैंने भी ख्याल किया की यहाँ भी उस लड़के को मारने वाले लोग जो न्याय की प्रतिमूर्ति बने थे……. जो उस लड़के की चोरी को देख कर मार पीट पर उतर आये थे……… उन की आँखों के ठीक सामने न जाने कितने बार पुलिस वालों ने उस बीट पर चालान का डर दिखा कर लोगों से पैसे लिए हैं…… वो फल वाला न जाने कितने मंदिर जाते भक्तों को कम तोल कर और अधिक दामों पर फल बेचता है………

आखिर कौन इन्हें न्याय करने का अधिकार दे देता है……….. और क्यों ये न्यायमूर्ति उस समय आँखों पर पट्टी बांध लेते है जब ये सारे काम कोई पुलिस वाला और कोई बड़ा आदमी कर रहा होता है……… क्यों वो मौन हो जाते हैं जब उनसे ठेला लगाने का हफ्ता लिया जाता है………

गरीब क्यों हर बार कभी पेट और भूख के हाथों और कभी इन तथाकथित न्यायमूर्तियों के हाथों मारा जाये……… हर बार भीड़ गरीब अपराधी को मारती है क्योकि उसको पता है की पुलिस उसको पैसा लेकर छोड़ देगी……. तो वो भीड़ ही क्यों नहीं पुलिस के खिलाफ कुछ करती है जब वो उसको छोड़ देती है…………

इन सवालों के पीछे और उस गरीब चोर लड़के के प्रति सहानुभूति रखने के पीछे एक छोटी सी घटना है जो बताना चाहता हूँ…….. एक बार एक लड़का जिसकी उम्र कोई 15-16 साल रही होगी…. एक गली से जा रहा था….. लड़का ही था और गरीब भी…… तभी उस गली के मोड़ पर वो भी मुड़ा और वही से एक लड़का कुछ चुरा कर भगा….. भीड़ अक्सर अंधी होती है………
दुर्भाग्यवश जैसा की उस लड़के ने बताया की उसके पीछे के मैदान से एक गेंद तेज़ी से उसके आगे को गयी …… और वो उसको लेने के लिए दौड़ा …….. उसका दौड़ना और उस चोर का उस गली में मुड़ना एक साथ हुआ….. चोर न जाने कहाँ को मुड़ गया……. भीड़ को वो लड़का दौड़ता दिखा और उस भीड़ ने जैसे ही वो लड़का गेंद उठाने के लिए झुका उसको गिरा कर पीटना शुरू कर दिया……….

ये उस लड़के का सौभाग्य था की वो आदमी जिसके यहाँ से वो चोर लड़का सामान चोर कर भाग रहा था… वो भी पीछे पीछे आ रहा था………और उसने उस लड़के को ध्यान से देख रखा था…….. फिर जब उसने कहा की ये वो लड़का नहीं है ……..तो भीड़ वापस अपने अपने काम पर चली गयी…. और उस गरीब का इन्साफ नहीं हो पाया……….. क्योकि अंधे न्यायमूर्तियों ने उस गरीब के जो कपडे फाड़े जो उसको जख्म दिए ……… उनका उसको कोई मुवावजा नहीं मिल सका………..

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कई बार भीड़ यूँ ही किसी को भी अपने अपने भीतर भरे गुस्से को निकलने के लिए मामूली सी बात पर बुरी तरह से मार जाती है….. और बाद में पता चलता है की उसका कोई कसूर ही नहीं……… कानून कहता ही की भले ही दस कसूरवार छुट जाएँ पर एक बेक़सूर को सजा नहीं होनी चाहिए………. पर भीड़ कहती है की भले 10 बेकसूर पिट जाएँ पर एक कसूरवार छूटना नहीं चाहिए……….
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तो क्या भीड़ का इन्साफ सही है…… बड़े बड़े कसाब और अफजल गुरु जैसे आतंकवादियों (जिनके अपराध के सारे सबूत उपलब्ध हैं और जिनको हमारे देश की अदालतों के न्यायमूर्ति इन सबूतों के आधार पर सजा दे चुके हैं… ) को पालने वाली सरकारों के खिलाफ हम खामोश है और जो हमारे हाथ में आया…….. उसको हम बिना अपराध जाने ही मारने को तैयार हैं………
क्या हमे सोचने की जरूरत नहीं है…………..

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