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भिखारी (आदतन भी और मज़बूरी से भी)……..

परिवर्तन की ओर.......
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कुछ समय पूर्व एक ब्लॉग पढ़ा जिसमे भिखारियों के सन्दर्भ में बहुत बढ़िया ढंग से लिखा गया था…. हर बात बिलकुल सही थी…….. वास्तव में हम भीख देने के स्थान पर अगर उनको समर्थ बनाने का प्रयास करें तो कुछ सुधार जरूर होगा………. इस कथन से में शत प्रतिशत सहमत था….

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पर फिर एक घटना याद आ गई……. जो आपलोगों के साथ बाटना चाहता हूँ………

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शाम का समय था ……….. मैं पढ़ा कर घर की और लौट रहा था……और दो मिनट के लिए अपने मित्र की दूकान पर रुक गया जो की बाज़ार में ही थी……….. तभी सामने एक छोटा सा लड़का जिसकी उम्र बमुश्किल बारह साल रही होगी………. दिखा जो एक महिला से कह रहा था कुछ पैसे दे दो बहिन जी……………. माँ घायल है… इलाज करने को पैसा नहीं है…………. लड़के के कपडे साफ़ सुथरे थे……….. और उसके हाव भाव भी कुछ अलग से थे……. महिला ने कहा की स्कूल जाते हो……….छोटे से लड़के न कहा……. उससे क्या होगा…. ? उसने कहा पहले बताओ जाते हो………. लड़का बोला हां जाता हूँ……………..

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पढना लिखना जानते हो……. वो बोला हाँ……. फिर उसने एक अखबार का टुकड़ा उसको दिया और बोली पढो क्या लिखा है……….. और उसने पढ़ कर सुना दिया……….. और बोला तो अब तो पैसे दे दो…………. महिला फिर बोली की पढना लिखना जानते हो और इतना नहीं पता की भीख माँगना पाप है………….. अब लड़का बोला मैडम भीख नहीं सहायता चाहिए……… महिला बोली बहुत खूब भीख को सहायता का नाम दे दिया…….. चल भाग यहाँ से…………………

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मैंने अपने मित्र से पूछा कौन है ये लड़का……….. मित्र बोला पहली बार देखा है……….. फिर उसने उसको आवाज़ लगायी………. लड़का दौड़ कर आ गया………….. मैंने पूछा क्या हुआ….. वो बोला माँ काम से घर लौट रही थी तभी एक गाड़ी वाला टक्कर मार कर चला गया………… और माँ अस्पताल में भरती है…. उसकी आँखों में आंसू थे…….. मैंने पूछा कब से मांगता है भीख ………… वो बोला मैं भिखारी नहीं हूँ…………. माँ को बचाने के लिए मांग रहा हु………..

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अब दोस्त बोला भीख मांगने के बदले कोई काम करके क्यों नहीं कमाता……….. वो बोला की मेरी माँ के इलाज का पैसा अगर कोई दे तो मैं मुफ्त काम करूँगा उसके घर ……….

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मैंने कहा चल जाने दे यार ……….. और मैंने अपना पर्स बाहर निकाला और कशमकश में था की क्या दूँ……… कभी लगा की एक पांच रुपए का नोट थमा कर कहूँ की जा ऐश कर……… और कभी लगा की कहीं ये सच तो नहीं कह रहा………. तो कम से कम पचास रुपए तो दे ही दूँ……….

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मित्र बोला भाई दो रुपए दे दे……….. पता क्या यहाँ तेरे से मांगकर अगले मोड़ पर साला चाट खा रहा हो………… फिर मन बदल गया और ….एक भय भी था की कही वास्तव में ये मुझे मुर्ख तो नहीं बना रहा है………. मैंने एक दस का नोट उसके हाथ पर दिया और यूँ गर्व से फूला जैसे उसकी माँ को जीवन दे रहा हूँ……………. एक सहारा था की अगर ये मुर्ख बना रहा होगा तो कम से कम कल ये तो कह सकता हूँ की इतना तो लोग पान बीडी में रोज खर्च करते हैं ………… हम सोचेंगे की हम ने भी एक दिन इनका स्वाद ले लिया………..

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अब दुसरे दिन फिर जब मैं वापस आ रहा था………. तो एक जगह पर भीड़ सी दिखाई दी……. स्वभावश मैंने भी झांक कर देखा तो वही लड़का एक मृत महिला के शव के साथ बैठा था………….. और उसके अंतिम संस्कार के लिए पैसे मांग रहा था……… महिला के मुह पर मक्खियाँ मंडरा रही थी……….. और सभी लोग आज उस बच्चे को पैसे दे कर उसको सहयोग दे रहे थे…………

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मैं अपने मित्र की दुकान पर गया और वहीँ खड़ा होकर भीड़ के छटने का इंतजार कर रहा था……. एक ग्लानी सी महसूस कर रहा था………. भीड़ जब छट गयी तो मैं और मेरा मित्र दोनों वहां गए………… और उस लड़के से पूछा की कैसे हुआ ये सब………. तो वो बोला भैया जी डेढ़ सौ रुपए में फिल्म का टिकट आता है……… गरीब की जान नहीं बच सकती…… आप पूछते थे न की कौन सी क्लास में पढता हूँ…………. तो अब मैं किसी क्लास में नहीं पढना चाहता ……………

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सब गलत पढ़ता है…………….. टीचर बोलता है की जीवन सबसे कीमती है………… झूठ है सब जब कल अपनी माँ के जीवन ने लिए पैसे मांगे तो केवल डेढ़ सौ रुपए मिले……… और आज जब कफ़न के लिए मांगे तो देखो पंद्रह सौ से भी ज्यादा जमा हो गए……….. वो भी बिना किसी के सवाल का जवाब दिए……… तो क्या मतलब मौत कीमती या जीवन………..

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आज उसके सवालों का जवाब देने की सामर्थ्य नहीं थी……… पर कुछ सवाल अपने लिए ही उठ रहे थे……….. की क्या जब वो लड़के ने कहा था की उसकी माँ घायल हालत में सरकारी अस्पताल में पड़ी है………..और सरकारी अस्पताल जोकि बाज़ार में उस जगह के बिलकुल पास था जहाँ पर वो लड़का भीख मांग रहा था…………माफ़ कीजियेगा भीख नहीं सहायता मांग रहा था…….. भीख तो हमे बना दिया…… तो……………

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क्या मैं और मेरा मित्र एक बार अस्पताल लाकर देख नहीं सकते थे की वो सच्चा है या नहीं…………. जब आसपडोस में होने वाले रंगारंग कार्यक्रमों ने लिए हम चंदा जुटाते हैं……………… तो क्या उसकी माँ के इलाज के लिए नही जुटा सकते थे……….. पर अब ये सारे प्रश्न अपने मन को समझाने का बहाना ही थे की मैं तो नेक ही था पर कुछ लोगों के द्वारा भीख को आदत बनाने के कारन मैंने पैसे नहीं दिए…………

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पूर्व में हमारे धर्म में जब बालक शिक्षा दीक्षा हेतु आश्रम जाते थे………. तो उनका यज्ञोपवित कराया जाता था और वो भी भिक्षा मांगने जाते थे……… आज भी हमारे यहाँ को इस प्रथा को सांकेतिक रूप से चलाया जाता है….. की यज्ञोपवित के बाद बालक अपने घर के लोगों से भिक्षा मांगता है………..

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बोद्ध और जैन धर्म में व कई हिन्दू संतों व महात्माओं द्वारा भी भिक्षा मांग कर ही जीवन यापन किया जाता है……. इसका एक अपना महत्व है……. वास्तव में ज्ञान के मार्ग पर चलने वाले कभी अहंकार से ग्रसित न हो सकें इसलिए भिक्षा मांगकर जीवन यापन उनके लिए नियम बनाया गया……

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पर आज कई बार आज जिस को कमजोर समझ कर भिक्षा दे देतें हैं कई बार वो शाम को शराब पीकर इधर उधर झूमता दिखाई देता है………. कोशिश यूँ की जानी चाहिए की यदि कोई भूखा हो तो उसको रोटी दी जाये बीमार हो तो इलाज में सहायता की जाये (या अपने विवेक से कुछ सार्थक किया जाये.) ताकि ये आदत से हट कर केवल मजबूरी वालों के लिए ही रहे………..

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माफ़ी चाहूँगा ये किसी लेख के उत्तर में नहीं है…….. अपितु ये माना जा सकता है की उसी के आगे की कड़ी है……………
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