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बोझ लगते ये बूढ़े….

परिवर्तन की ओर.......
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*-*-*-*-*-*- बुढ़ापा -*-*-*-*-*-
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बुढ़ापा किसी भी इंसान की सबसे दुखद अवस्था है ……… ये हर इंसान के जीवन में आता ही है…. और मेरी प्रभु से प्रार्थना भी है की ये हर किसी के जीवन में आये अर्थात कोई भी व्यक्ति बुढ़ापा देखे बिना इस दुनिया से विदा न हो………
हर नई पीढ़ी ने अपने समय में बूढों को कोसा ही है………… नयी पीढ़ी को हमेशा ये बूढ़े लोगों से शिकायत रही है………….. उनका मानना है की ये विकास व नए विचारों के क्रियान्वयन में बाधक बनते हैं……… इनका बार बार टोकना व हर विषय में अपनी राय प्रस्तुत करना युवाओं को खलता है………..
वो भूल जाते है की वो इस आधुनिक युग में बहुत देर से आये, लेकिन ये बूढ़े, इन के सामने तो ये युग शुरू ही हुआ है………. तो जो शुरू से इस युग को देख रहा है वो कैसे इस से अलग है………….
हर नयी पीढ़ी इस बूढी पीढ़ी से छुटकारा चाहती है………… छुटकारा का अर्थ इनका मौन रहना……… हम अक्सर अपने बुजुर्गों से ये कहते है की आपका समय और था और ये समय कुछ और है………….

क्यों नहीं हम इन बूढों के बारे में सोचते है……………….
हम बिलकुल नहीं सोचते की ये बूढ़े भी कभी युवा थे…… और हम भी कभी बूढ़े होंगे……… और ये ही वो बूढ़े हैं जो अपने युवा कन्धों पे इस नए युग को लेकर आये जिस पर हम इतरातें हैं………. अपने समय के हालातों को इन्होने बदल कर हमारे सामने इक नया दौर पेश किया और हम अब इन पर झुझलातें है. अब हम कहते है की आपका समय और था और हमारा समय कुछ और है…………………….
हम ये अक्सर कहतें हैं की ये आपके समय वालो का ही करा धरा है की देश को भ्रष्टाचार ने दीमग की तरह खोखला कर दिया है. ……. पर हम ये नहीं कहते के उस कागज़ कलम के दौर से आपने ही हमें सुचना प्रोद्योगिकी के इस अवसर से परिपूर्ण युग में पंहुचा दिया…….
न जाने उस दौर के कितने कवी, लेखक और विचारक अन्दर ही अन्दर ख़तम हो गए और उनके प्रयासों के कारण ही आज नयी पीढ़ी रोज ब्लॉग पर अपनी कविताएँ और विचार पोस्ट कर रही है……….

हम लोगो को उनसे आँख मिलाने में भी संकोच होना चाहिए……. की वो इस दौर में हमको अपनी राय दे रहें है और हम उनका अपमान कर रहे है………….. ये पूरी तरह ठीक है की आज उनके और हमारे बीच कोई तुलना हो ही नहीं सकती …………क्योकि वो उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहाँ वो शारीरिक रूप से हमसे तुलनात्मक रूप से कमजोर हो सकते हैं पर मानसिक रूप में वो हमसे कहीं आगे हो सकते हैं…………… बल्कि अगर ये कहा जाये की वे मानसिक तौर पर अक्सर आगे ही होते हैं……….. तो कोई अतिश्योक्ति नहीं है………

बुढ़ापे में अक्सर आदमी चिडचिडा हो जाता है, जैसे अक्सर बीमारी में हो जाता है….. इसका एक सीधा कारण ये है की बीमारी और बुढ़ापे में एक समानता है की दोनों अवस्थाओं में आदमी कमजोर हो जाता है और उसको अपने उन कामों के लिए जो उसके लिए बिलकुल साधारण हुआ करते थे. वे भी मुश्किल हो जाते है….

अपनी कमजोरी व दुसरे पर निर्भरता के चलते वो चिढ चिढ़े हो जाते है………. वो लोग जो जब छोटे छोटे थे और हर बात पर उसकी राय लिया करते थे… वो आज बड़े से बड़े पर फैसले लेने से पहले उसकी राय लेते नहीं हैं और यदि वो दे भी तो ये कह कर उसको ठुकरा देते हैं की ये आपके समय की बात नहीं है…… अब नया दौर है………….

इस तरह तिरस्कृत होकर बूढ़े अपनी इस अवस्था को कोसने लगते हैं…. वो अब एक प्रतीक बन कर रह गए……….. बूढ़े लोगो को बच्चों से विशेष लगाव रहता है……. क्योकि वो बिना तर्क किये उनकी राय मान लेते है……… उनकी उंगली पकड़ कर वो उस युग को भी पर कर जाते है जिस पर उसके माता- पिता चल रहे हैं……….

ये हमारा दुर्भाग्य है की हम बुजुर्गों के अनुभव और युवाओं के जोश का मिश्रण बनना नहीं जानते हैं. हो सकता है की इन पुराने लोगो की सभी बात सही न हों…….. मगर हम ये किसी कीमत पर नहीं कह सकते की ये पूरी तरह से गलत हैं…………………

तो सम्मान दे उन बुजुर्गों को जिन्होंने अपने आज में अपना सब कुछ झोंक कर हमें हमारा आज दिया है………………..

वर्ना मेरा एक लेख आगे की जली लकड़ी पीछे की और आती है……….. कुछ समझा सकती है………….

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