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सुख ओर दुख………. जीवन ओर मृत्यु ……….. लगभग एक से ही युग्म है……… दोनों युग्म विलोम शब्दों से बने है………… सुख का विलोम दुख ओर जीवन का मृत्यु………. पर क्या दोनों युग्मों को ठीक ठीक परिभाषित किया जा सकता है……… लगता है की हाँ पर नहीं ये संभव नहीं है……….. सुख ओर दुख पर कुछ हद तक सटीक लेख लिखा जा सकता है…….. क्योकि लोगों के इस संदर्भ मे अपने अपने कुछ अनुभव हैं……… जिनको कलमबद्ध किया जा सकता है…….
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पर जीवन ओर मृत्यु मे केवल जीवन के संदर्भ मे ही कुछ कहा जा सकता है……… मृत्यु एक सत्य है पर मृत्यु के बाद क्या होता है ये सब केवल अनुमान हैं…… क्यूंकी जो जान चूके वो वापस नहीं आते ओर बिना मारे इसको जाना नहीं केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है………. ये कुछ उसी तरह है की दो लोग समुद्र के किनारे खड़े हो कर उसकी गहराई का आकलन कर रहे हों…………. ओर जब एक उसकी गहराई नापने को कूदा तो उस असीम सागर मे ही खो गया………. ओर बाहर खड़े दूसरे व्यक्ति ने अनुमान लगाया की एक आदमी डूब कर मर जाए सागर इतना गहरा तो है ही……..
सुख दुख पर मैंने काफी कुछ पढ़ा पर कुछ निजी अनुभवों के कारण मैं कभी उनसे पूर्णत: सहमत नहीं हुआ…………
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क्या है सुख ओर क्या है दुख ……… यदि कभी इस बात पर गंभीरता से विचार किया जाए तो पता चले की वास्तव मे दुख जैसी कोई चीज़ है ही नहीं…….. ये केवल मानसिक अवस्था है……….. जो हमें किसी घटना को दुख के रूप मे प्रकट करती है…… संभवतः कोई इस बात को माने नहीं पर सोच कर देखें तो………… एक बार आप अपने सभी वर्तमान के दुखों की एक सूची बनाएँ……… ओर फिर उसको एक कोने मे रख दे……… अब आप अपने पुराने दुखों की सूची बनाए……. अब आज तुलना करें की क्या वो दुख दुख थे…………..
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मैं इसे उदहारण की सहायता से समझता हूँ………
जब भी हम उदास हों तो अपने पुराने दिनो को याद कर आनंदित होते है…….. पर क्या उन पुराने दिनो मे हम आनंदित थे ? नहीं……… बचपन को हम भविष्य के लिए खतम कर देते है ओर जब बड़े हो जाते हैं तो बचपन को याद करते हैं………… ओर जब बुढ़ापा आ जाता है तो हम जवानी के दिनो को याद करते हैं………… अब अगर बचपन मे दुख था तो जवानी मे बचपन की याद क्यों आई………. ओर जब जवानी मे दुख था तो बुढ़ापे मे जवानी की याद क्यों आती है………
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बचपन मे हम जल्दी बड़ा होने की सोचते है……….. हमें बच्चा होने पर दुख है…. मुह मे सिगरेट के अंदाज़ मे बच्चे पेन या कागज़ मोड कर बदते है … क्योकि उनको लगता है की शायद सिगरेट पीना ही बड़ा होना है…. तो कभी शीशे के सामने खड़े होकर दाड़ी बनाने का अभिनय……. और जब जवान हो गए तो जवानी मे वापस बच्चा होने को तैयार हैं……….. क्योकि आगे भयानक बुढ़ापा है…….. ऐसे ही सारी उम्र बीत जाती है ओर हम कहते है की सुख मिला ही नहीं कभी………..
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एक साधारण आदमी के लिए सुख पैसे मे गाड़ी मे ओर सम्मान ओर प्रतिष्ठा मे है…….. पर जिसके पास ये सब है क्या वो सुखी है………. सुख साधन मे नहीं होता है…….. सुख सोच मे होता है……… निर्धन दुखी है पेट के लिए……… ओर सम्पन्न भी दुखी है पेट के लिए…………. एक खाली पेट के लिए है तो दूसरा फैलते हुए विशाल पेट के लिए………… निर्धन वस्त्र न होने के कारण दुखी है ओर सम्पन्न लोगों की निशानी ही अल्पवस्त्र बन गए है……….. गाड़ी वाला रोज पैदल चल रहा है क्योकि डॉक्टर ने इलाज बताया है की पैदल चलो……….. ओर पैदल चलने वाला गाड़ियों को देख कर पैदल चलने मे दुखी हो रहा है………….
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एक आदमी के पास 1 करोड़ रुपये थे……….. किन्तु व्यापार मे घाटा होने के कारण उसके पास मात्र 75 लाख रुपये बचे…………. वही दूसरी ओर एक आदमी के पास 70 लाख रुपये थे जो की उसको व्यापार मे हुए लाभ के बाद 75 लाख हो गए…….. अब जिसे हानी हुई वो दुखी है ओर जिसे लाभ हुआ वो सुखी ………. पैसा दोनों के पास बराबर ही है…….. फिर भी एक खुश है ओर एक दुखी…………. इसका यही अर्थ है की सुख उस 75 लाख मे नहीं है………..
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कुछ समय पूर्व कौन बनेगा करोड़पति मे एक सज्जन एक करोड़ रुपए जीत गए……. किन्तु उन्होने 5 करोड़ का सवाल लिया ओर हार कर गए…….. उनको 5 करोड़ के स्थान पर मात्र 3 लाख 20 हज़ार से संतोष करना पड़ा……….. अब उनकी ये छोटी सी गलती उनके जीवन भर के दुख का कारण बन सकती है……..
अगर वो ये सोचे की उनकी एक गलती ने उनको 1 करोड़ रूपये जोकि वो जीत चुके थे पाने से रोक दिया……….. पर इसी का एक पहलू ये भी है की वो यूं भी सोच सकते हैं की वो खाली हाथ आए थे ओर कुछ ही घंटो मे वो 3 लाख रूपये जीत गए………. वो तो फिर भी लाभ मे ही गए…….. पर नहीं शायद उनको उस धन के आने का की खुशी नहीं होगी जितना उस धन के जाने का गम होगा……..
पर क्या अगर कोई आदमी रात सपने मे किसी राज्य का राजा बन जाए ओर सुबह जब नीद खुले तो वापस वही आम आदमी हो जाए तो क्या उसको कोई दुख होगा……………… तो ये भी एक सपने जैसा ही था……… की आप बातों ही बातों मे 1 करोड़ रुपया जीते ओर फिर हार गए……..
यूं ही हम भी कुछ लेकर आए नहीं ओर न ही कुछ लेकर जाना है……… तो किस लिए किसी भी तरह के दुख को संचित करें………. वो भी अर्थहीन दुख…….. आज जो दुख है कल वो महान मूर्खता लगेगी………
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10वी मे फेल मेरा मित्र जहर खाने को तैयार था……. उसके लिए वो उसके जीवन का सबसे बड़ा दुख था……. फिर उसने अगले वर्ष सामान्य अंको से परीक्षा उत्तीर्ण की ………. आज वो एक सरकारी विभाग मे अच्छे पद पर है……… ओर साथ के कई उच्च अंक प्राप्त किये लड़के आज भी यूं ही साधारण जॉब कर रहे हैं…………. जोकि उनकी योग्यता के अनुरूप नहीं है……..
आज जब मेरा मित्र उस दिन को याद करता है तो उसको हंसी आ जाती है…… ओर मैं अक्सर उसको मज़ाक मे कहता हूँ की अगर उस दिन तू जहर खा लेता तो सरकार को एक महान भ्रष्ट कर्मचारी नहीं मिल पाता………….
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बेरोजगार अपनी बेरोजगारी तो नौकरीपेशा अपनी नौकरी से परेशान है………… कोई अपनी जीत से दुखी है तो कोई अपनी हार से……….. जो लोग घर से दूर रह कर लाखों कमा रहे है वो अपने परिजनो से दूरी के दुख से परेशान है………. ओर जो उनके साथ रह कर कम कमा रहे हैं……. उस कमी से परेशान है ……… ये नहीं है की उनको कम मिल रहा है……. बात ये है की उन्हे अपने से ज्यादा भी किसी के पास दिख रहा है……….
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कुवांरे शादी न होने से परेशान है ओर शादीशुदा…….. शादी के बाद………. आखिर ये गणित कैसा है……. लोगों को धन मे या सत्ता मे सुख नजर आता है पर वो भूल जाते हैं की धन या सत्ता मे अगर सुख होता तो सिकंदर सबसे सुखी व्यक्ति होता……… जबकि सिकंदर के संदर्भ मे मैंने सुना था की जब सिकंदर मरने वाला था तो उसने कहा था की जब मेरे जनाजे को ले जाया जाए तो मेरे दोनों हाथ बाहर को निकले हों………. ताकि लोगों को पता चले की सिकंदर भी अंत मे खाली हाथ जाते हैं………ओर गौतम बुद्ध ओर महावीर ने राजपाट ओर घर परिवार छोड़ कर सन्यास न लिया होता………. यदि इसमे सुख होता………. संतों के पास जाकर शांति की खोज लोग कई वर्षों से कर रहे है पर ये शांति उनके अंदर ही है…..जैसे कस्तुरी हिरण के नाभि मे कस्तुरी होती है ओर वो खोजता हर जगह है……….. उसी तरह शांति हमारे अंदर है है ओर हम वहीं नहीं खोज रहे हैं……………
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तो आखिर हम किसको दुख कहते हैं………… क्या वास्तव मे दुख जैसी कोई भावना है…? या व्यर्थ की कामनाओ के लिए हम खुद ही दुख निर्मित कर रहे है……………..
फोटो खिचवाते समय कुछ सेकेंडो की मुस्कान से आपकी तस्वीर हमेशा के लिए खूबसूरत हो जाती है…….. तो क्यों नही हम इस मुस्कान को हमेशा के लिए अपने चेहरे पर रख कर पूरे जीवन को सुंदर बना लें……….
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