बाबा रामदेव एक आंदोलन चलाने के लिए रामलीला मैदान पहुंचे……… आंदोलन का एक मात्र उद्देश्य राष्ट्रहित के कुछ मुद्दों पर सरकार को नियम बनाने के लिए मजबूर करना था… सरकार ने इसे एक प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था….
क्योकि आखिर कैसे एक साधारण सा सन्यासी और उसके अनुयायी इटली मे पली बढ़ी सोनिया जी द्वारा चलाई जा रही कांग्रेस सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर सकता हैं… भारतीय संस्कृति का ये सबसे दुखद पक्ष ये ही रहा है की देश विदेशों से लोग यहाँ इन संतों से ज्ञान लेने आते रहे हैं …. और हम भारतीय लोग इन्हें बाबा (ढोंगी) जैसे अलंकारों से इनकी उपेक्षा करते रहे हैं…….. बाबा की विरोधियों के लिए कुछ कहना ठीक नहीं है….. क्योकि विरोध करने वाला ये वर्ग तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग है….. जो कोट पैंट पहने लोगों द्वारा ठगे जाने पर खुश है पर एक भगवा धोती धारण करने वाले की बात सुनने से भी इंकार करना चाहता है…. जो महंगे अस्पतालों मे इलाज करा कर खुद को सम्मानित महसूस करता है पर योग से बीमारी भागना उसकी शान के खिलाफ है… बाबा रामदेव का विरोध कोई नया नहीं है… पूर्व मे भी सरकारें उनके पतंजलि योगपीठ पर कई आरोप लगा चुकी है… वास्तव मे सरकारें संतों को निर्णायक भूमिका मे देखना नहीं चाहती है….. और हमारा इतिहास भी उनको ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है ….. जहां चाणक्य जैसा ब्राह्मण एक साधारण से बालक को चन्द्रगुप्त मौर्य बना कर एक महान नन्द वंश का अंत कर देता है…… पर यहाँ पर भारतीय जनता का भी उल्लेख करना अनिवार्य है….. जनता दो खेमों मे बटी थी कुछ लोग भीड़ के रूप मे बाबा रामदेव के साथ मौजूद थे तो कुछ लोग बाबा के इस आंदोलन की आलोचना मे व्यस्त थे….. ये हमारे देश का सौभाग्य है की वे लोग जो बाबा के अभियान के खिलाफ है वो आज़ादी से पूर्व पैदा नही हुए थे….. अन्यथा इस देश को आजाद होने मे कई और वर्ष लगते…. क्योकि ये लोग बाबा के मुद्दों के आधार पर उनका समर्थन करने के स्थान पर पर नहीं बाबा के प्रति अपने दुराग्रह के चलते इस राष्ट्रहित के मुद्दे को ही गलत बता रहे हैं…… द्रोणाचार्य ने अर्जुन की प्रतिभा का अंदाज़ उसके उस वक्तव्य से लगा लिया था जिसमे उसने चिड़िया की आँख ही दिखाई देने की बात कही थी…. पर ये जनता जो रामदेव का विरोध कर रही है उसकी नज़र चिड़िया की आँख पर नहीं अपितु धनुष के निर्माण मे प्रयुक्त सामग्री पर है…. वो उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयुक्त होने वाले साधनो के कारण उससे दूर है…. ये बात ही स्पष्ट कर देती है की उनके लिए अपने देश से बड़ा उनका व्यक्तिगत अहं है….. इस मुहिम के विरोध के पीछे एक और कारण ये भी हो सकता है की अब तक सुविधा शुल्क देकर अथवा लेकर अपने काम करने और करवाने की अपनी आदत के चलते भ्रष्टाचार रहित समाज की कल्पना से ही कुछ लोग भयभीत हो रहे हों…… एक शांति पूर्ण आंदोलन कर रहे एक साधू को जिस तरह से खदेड़ा जाता है वो वास्तव मे इस देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है….. संतों की संस्कृति वाले इस देश मे संत का इस तरह से अपमान निंदनीय है……. इस पर काँग्रेस प्रवक्ता दिग्विजय सिंह का कथन है की बाबा ने जनता से धोखा किया है इस लिए इस ठगी के आंदोलन को समाप्त किया गया…. अब यहाँ पर कॉंग्रेस की नियत पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लगता है……. की यदि धोखा बाबा रामदेव ने किया और अपने उन अनुयायियों के साथ किया जो उस सभा मे थे … तो फिर उस जनता जोकि पहले ही बाबा रामदेव के द्वारा ठगी जा चुकी थी उसपर लाठी बरसने की क्या जरूरुत थी…. वो भी तब जब की उसमे सर्वाधिक लोग बुजुर्ग और महिलाएं थी…… इस लिए बाबा राम देव को ये समझना चाहिए की उन्होने एक जघन्य अपराध किया है। और उस अपराध की सजा उनको मिलनी ही चाहिए… ये मालूम होने के बाद भी की इस देश मे मूर्ति और पुतलों की पुजा की प्रथा है … ये जानते हुए भी की यहाँ जनता बातों से ही खुश होती है …….. और नारों मे ही देश भक्ति उसको पसंद है……. जहां हर दूसरा आदमी तथाकथित बुद्धिजीवियों की सभा मे ये कहते हुए नहीं चूकता है की इस देश मे आर्मी शासन लगा देना चाहिए …… तभी कुछ हो सकता है ……. जबकि वो खुद अंदर से ऐसा नहीं चाहता ……. क्योकि अनुशासन मे वो भी नहीं रह सकता है…… ये जान कर भी बाबा ने इतना बड़ा आंदोलन चलाया…. ये अपराध है… और वो भी कम से कम ऐसे देश मे तो है ही जहां बुद्ध और महावीर जीते जी इस उपेक्षित रहे…. (अन्यथा इन संप्रदायों के लोगो की देश मे संख्या सर्वाधिक होती……. ) किन्तु मृत्यु के बाद इनके लिए राष्ट्रीय अवकाश की व्यवस्था की गई…. ये वही देश है जहां विवेकानंद ने कहा था की तुम मुझे 50 लोग दो तो मैं राष्ट्र बदल सकता हूँ… और विवेकानंद जी के पीछे कितने लोग गए वो सर्वविदित है….. और आज हर कोई ये कहता है की काश मे विवेकानंद के समय होता तो मैं उनके साथ जाता … शायद कल को यही हमारी पीढ़ी भी कहे की काश मैं बाबा रामदेव के समय मे होता तो भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम मे उनके साथ होता…….. क्योकि जिंदा क्रांतिकारी विचारों से भरे लोगो के साथ न हमारे पूर्वज रहे और न हम रहने को तैयार है……. मुर्दों के साथ चलने मे एक विशेष सुविधा होती है…. उनकी कही बातों को अपनी सुविधा के अनुसार प्रयोग किया जा सकता है ……. पर जिंदा आदमी गलत व्याख्या होने पर टोक सकता है… तो बाबा तुम केवल योग ही करो…. तुम्हारा योग शरीर को तो ठीक कर सकता है पर यहाँ लोगों का जमीर ही बीमार है….. और आपका योग जमीर को नहीं ठीक कर सकता …….. पर फिर भी मुझे यकीन है की बदलाव होके रहेगा……. रावी की रवानी बदलेगी, सतलुज का मुहाना बदलेगा गर शौक में तेरे जोश रहा, तस्वीर का जामा बदलेगा, बेज़ार न हो, बेज़ार न हो, सारा फसाना बदलेगा कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें, तब तो यह ज़माना बदलेगा। तो अगर आप सच्चे राष्ट्रभक्त हैं और बाबा रामदेव के इस आंदोलन से आपको परहेज है तो एक बार अपनी राष्ट्रभक्ति का आत्ममूल्यांकन अवश्य करें…….
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