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ले मशालें चल पड़े है लोग हिंदुस्तान के…………

परिवर्तन की ओर.......
परिवर्तन की ओर.......
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ले मशालें चल पड़े है लोग हिंदुस्तान के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग हिंदुस्तान के

कह रही है झोपड़ी और पूछते है खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे लोग हिंदुस्तान के

बिन लड़े कुछ भी नहीं मिलता यहाँ ये जानकर
अब लड़ाई लड़ रहे है लोग हिंदुस्तान के

चीखती है हर रुकावट ठोकरों की मार से
बेड़िया खनका रहे है लोग हिंदुस्तान के

लाल सूरज अब उगेगा देश के हर गांव में
अब इकटठे हो रहे है लोग हिंदुस्तान के

कफ़न बाँधे हैं सिरों पर हाथ में तलवार है
ढूँढने निकले हैं दुश्मन लोग हिंदुस्तान के

दे रहे हैं देख लो अब वो सदा -ए-इंक़लाब
हाथ में परचम लिए हैं लोग हिंदुस्तान के

एकता से बल मिला है झोपडी की साँस को
आँधियों से लड़ रहे हैं लोग हिंदुस्तान के

देख ‘बल्ली’जो सुबह फीकी दिखे है आजकल
लाल रंग उसमें भरेंगे लोग हिंदुस्तान के

ले मशालें चल पड़े है लोग हिंदुस्तान के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग हिंदुस्तान के
—-

ले मशालें चल पड़ें है …लोग मेरे गाँव के …
कुछ इस तरह से थी बल्ली सिंह जी की ये रचना ….. किन्तु वर्तमान परिदृश्य के अनुसार मैंने इस मे मेरे गाँव के की जगह हिंदुस्तान के कर दिया है……..

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