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खत्म होती नैतिकता……

परिवर्तन की ओर.......
परिवर्तन की ओर.......
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इस मंच पर एक लंबे समय बाद कुछ लिख रहा हूँ.. कुछ वक्त की कमी और कुछ इस बात का रंज की यहाँ लिखने से भी कुछ नहीं होता… क्योकि कहीं न कहीं हम स्वकेंद्रित हो गए है… हम निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी रमाय पढ़ते पढ़ाते तो हैं…… पर इसके भाव को नहीं पकड़ते हैं…. कबीर दास जी ने यहाँ निंदक की बड़ी सुंदर व्याख्या की थी उन्होने कहा था की निंदक की निंदा को सकारात्मक रूप मे लेकर हम अपनी कमियों को दूर कर सकते हैं…पर वास्तविक जीवन मे हम निंदक को सकारात्मक रूप मे लेने को तैयार ही नहीं है..
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यहाँ भी हम कुछ विशेष नहीं कर रहे…. साहित्य समाज का आईना होता है…. वो समाज का प्रहरी है…. उसके शब्द समाज को दिशा देने के योग्य होने चाहिए पर यहाँ हम राजनीति कर रहे हैं…… हम गलत देखकर भी मूक हैं क्योकि हम अपने वोट (कमेन्ट) नहीं काटना चाहते हैं….. पर याद रखें आपका अपना सच्चा हितैषी वही होता है जो आपको आईना दिखाता है….. आपकी हर बात पर प्रसंसा से आपको कमजोर बनाने वाले से कहीं बेहतर वो व्यक्ति है जो आपको उलाहना देकर आपको सक्षम बनाने की कोशिश करता है….
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इस मंच पर हमेशा से ही राजकमल जी ने हर छोटी बड़ी खामी के खिलाफ अपना पक्ष रखा है…. एक बार फिर यही देखने को मिला जब आदरणीय बाजपई जी को भी यहाँ कमेन्टों मे हो रही बदतमीजी के लिए लिखना पड़ा….. क्योकि हमने पहली बार जब इस तरह की घटना हुई तो उसे यूं ही जाने दिया होगा….
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फेसबुक पर एक शेर पढ़ा …….
दोस्तों से बिछड़ कर ये हकीकत खुली गालिब…
बेशक कमीने थे मगर रौनक उनही से थी……
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फिर मैंने अपने फेसबुक स्टेटस पर अपडेट किया …..
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दोस्ती पर दो पंक्तियाँ………
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जो दोस्त कमीने नहीं होते……..
वो कमीने दोस्त नहीं होते……..
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कई लोगों ने इसे लाइक किया और कई लोग अनदेखा कर गए….. पर विरोध किसी ने नहीं किया… हालांकि कुछ से मुझे बड़ी आशा थी की वो शायद इस पर मुझे कुछ कहें… पर कोई कुछ नहीं बोला….. क्योकि शायद उन्हे ये आशंका थी की कहीं मैं बुरा न मान जाऊँ…. पर किसी ने ये नहीं सोचा की इसका एक असर ये भी होगा की वो सभी लोग जो इसे मौन स्वीकृति मान लेंगे वो आगे इसका लगातार प्रयोग करेंगे……..
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कई लोगों ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया क्योकि वास्तव मे हमने कमीने शब्द को इस तरह से अपनी बोलचाल की भाषा मे अपना लिया है की अब ये गाली सी लगती नहीं….. इस शब्द को लेकर फिल्म बना दी गई है….. और हमने उसे एक फिल्म की ही तरह देख कर ये पुष्टि की कि ये शीर्षक हमें स्वीकार है….. और उस एक स्वीकृति ने इसे एक हिन्दी शब्द की मान्यता दे दी…. और अब हालत ये है की आप किसी बच्चे को भी ये नहीं कह सकते की ये शब्द एक गाली है….
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कुछ ऐसा ही इस देश मे घट रहा है…. जिसे हम मौन स्वीकृति दे रहे हैं…और जिसके भयानक दूरगामी परिणाम होंगे…….. किसी चैनल पर एक शो प्रसारित किया जा रहा है बिग बॉस…. जिसके बारे मे कई अशोभनीय तथ्य अखबारों और अलग अलग लेखों पर प्रकाशित होते रहे पर कोई फर्क नहीं पड़ा….
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पहले राखी सावंत ने इसमे अश्लीलता का प्रारम्भ किया फिर कुछ और महिलाओं को इसमे शामिल किया गया… पर क्योंकि हम इसे यूं ही देखते रहे इस लिए अबकी बार इसमे पूनम पांडे को शामिल करने को लेकर चर्चा बनाई गई… पूनम पांडे जो की अपने अश्लील बयानो व चित्रों को लेकर चर्चा मे रहीं है…. को इसका हिस्सा बनाया जा रहा था… पर फिर किसी अन्य भारतीय मूल की विदेशी महिला को इसका हिस्सा बनाने का फैसला लिए जाने संबंधी खबर प्रकाश मे आई…… ये महिला कोई आम महिला नहीं है…. इन्हे अश्लील फिल्मों की स्टार का रुतबा हासिल है…
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अब मुख्य विषय ये है की क्या इस तरह टीआरपी बढ़ाने के नाम पर परोसी जा रही अश्लीलता को हम यूं ही स्वीकारते रहें…….. अगर हम इसे स्वीकार कर लेते हैं तो कल इस आधार पर हम अपनी भावी पीढ़ी को ये समझा पाएंगे की ये संस्कृति के विरुद्ध है..
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शालीनता नारी का आभूषण है ये बात कैसे उनके गले उतरेगी जब की हम अश्लीलता को स्वीकार कर रहे हैं….. इसी तरह हम सब कुछ यूं ही चुपचाप स्वीकार करते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब नग्नता नारी का आभूषण बन जाए….. इस से पहले की सीता, सती सावित्री, अपाला, गार्गी जैसी महिलाओं को आदर्श मानने वालों के देश मे राखी सावंत और पूनम पांडे जैसी महिलाओं का वर्चस्व हो जाए…. विरोध करना होगा..
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अगर आप किसी बात का खुल कर विरोध नहीं करते हैं तो इसका एक मात्र अर्थ ये है की आप उसे स्वीकार करते हैं…. आप ये कहकर बच नहीं सकते की मैंने कभी इसके समर्थन मे कुछ नहीं कहा….. क्योकि अगर आप मौन रहे तो इसका सीधा सा अर्थ है की आप समाज के भय से इसका खुल कर समर्थन नहीं कर पाये….
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आशा है नकली दोस्त बनने के स्थान पर सच्चे हितैषी बनकर सही राय दें……
ताकि आवश्यकतानुसार अपने विचारों को बदला जाए……

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