केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार को आज महंगाई पर जनता के गुस्से का हिंसक अंदाज देखना पड़ा। महंगाई से नाराज एक युवक ने उन्हें जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। . देश भर मे इस घटना पर लोग हर्ष प्रकट कर रहे हैं … कई लोगों का कहना है की ये सरकार के प्रति जनता का आक्रोश है… और वो लोग इसे उचित भी ठहरा रहे हैं…… . पर वास्तव मे ये एक गंभीर मुद्दा है….. सभी भारतवासियों को इसकी निंदा करनी चाहिए….. क्योकि हम सभी केवल सतह पर प्रहार कर रहे हैं….. जड़ पर नहीं… . हम अपना वोट यूं ही जाति, धर्म या फिर किसी अन्य लोभ शराब या फिर नोट के बदले बेच रहे हैं…… जब तक ये चलेगा तब तक हमें इन नेताओं के दुश्चरित्र को झेलना ही होगा… . और अगर एक बार हम इसे आक्रोश की संज्ञा देकर शांत हो गए तो ये एक परंपरा बन जाएगी… और नेताओं से होकर ये आम जनता को भी झेलनी पड़ेगी……. जब बात बात पर लोग आक्रोशित होकर एक दूसरे पर प्रहार करेंगे….. . केवल आक्रोश कह कर किसी गलत बात को सही नहीं कहा जा सकता …. यदि आक्रोश की पारिणीती इस तरह की हिंसा को बना दिया जाए… वो भी तब जब की इसका उपाय जनता के ही पास है तो फिर आप उस बच्चे को कैसे समझाएँगे जो सक्षम होने पर अपने पिता पर ही प्रहार कर दे…… क्योकि वो बचपन से अपने पिता की मार व डांट से आक्रोश से भरा था….. और जनता की तरह उसके पास तो 5 साल बाद अपने बाप को वोट न देकर सबक सीखने का कोई अवसर भी न था…. . एक बार अगर आक्रोश के नाम पर इस तरह की हिंसा को न्यायोचित ठहराया जाने लगा तो वो दिन दूर नहीं की जब आप भी कभी भी किसी के आक्रोश का शिकार बन सकते हैं……. क्योकि आक्रोश की कोई व्याख्या नहीं है……. न सकारात्मक न नकारात्मक …. . एक विद्यार्थी के भीतर अपने शिक्षक के प्रति आक्रोश होता है….. क्योकि वो नहीं समझता की उसका शिक्षक उसकी भलाई के लिए उसको दंडित करता है…. तब क्या होगा शिक्षक का….. . इस परंपरा को बढ्ने दिया तो वो दिन दूर नहीं जब सरकारी संपत्ति केवल आक्रोश के नाम पर जला दी जाएगी….. जब आक्रोश के नाम पर हर रोज हिंसा आम हो जाएगी…… . हमें आवश्यकता है की हम अपने वोट की ताकत को समझें …. और उसका सही प्रयोग करें… हम इन नेताओं की नौटंकी को अपने वोट की ताकत से जवाब दें…..
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