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तेरा शुक्रिया..

परिवर्तन की ओर.......
परिवर्तन की ओर.......
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आज एक मित्र के सहयोग से एक कथा पढ़ने को मिली ……. जिसे आपके साथ बाटना चाहता हूँ….. ये कहानी एक यहूदी धनपति रथचाइल्‍ड के संबंध में है —


एक बार रथचाइल्‍ड एक भिखमँगे को अपनी ओर आते देख रहे थे ………  उसकी वेशभूषा दयनीय थी ………. उसको देख कर रथचाइल्‍ड ने मन मे कुछ सोचा और उस भिखारी को अपने पास पास बुलाया……….  भिखारी ने सोचा दाता खुद बुला रहा है तो जरूर कुछ अच्छा भीख में मिलेगा…………  रथचाइल्‍ड धन से ही नहीं अपितु दिल से भी बहुत अमीर था ………….  हजारों आदमीयों की मदद कर चुका था ओर अब भी करता था……….

उसने उस भिखमँगे को अपने बुलाया और अपना कार्ड जेब से निकाल कर कहा……………  ये मेरा कार्ड है………… जब भी जरूरत हो तुम मेरे दफ्तर आया करो……….. भिखारी बोला मालिक ये पेट हर रोज रोटी मांगता है………. तो रथचाइल्‍ड ने कहा ठीक है तुम हर महीने आ जाना …………  मैं हर महीने तुम्‍हें 100 डालर दिया करूंगा…….. तुम इस तरह भटकते हो तुम्हारी अवस्था इस योग्य नहीं की तुम दर दर भटक कर भीख मांगो ……………  भिखारी को तो विश्‍वास ही नहीं हुआ………..  उसे लगा ये आदमी या तो पागल है, या मेरा उपहास उड़ा रहा है…………….


भिखारी ने ये सोचा की जहां घर घर भटक कर भीख मांगता हूँ ………… तो एक बार इस दफ्तर मे जाकर भी देख लूँ क्या पता सच ही बोल रहा हो ………….  उसको रथचाइल्‍ड की बातों मे भरोसा नहीं था ……………………. लेकिन जब भिखारी रथचाइल्‍ड के दफ्तर पहुँचा तो सच ही उसे 100 डालर मिल गये…………….  अब तो वह हर महीने उसके ऑफिस जाता और अपने 100 डालर ऐसे लेता जैसे अपनी मेहनत का पैसा ले रहा हो……………

जैसे उसे उसके श्रम के फलस्वरूप ये वेतन मिल रहा हो …………  कभी अगर दो चार मिनट क्लर्क कुछ और काम में उलझ जाता……..  तो वह शोर मचाने लग जाता की उसे कितनी देर हो गई यहां पर आये हुए………………  कोई उस की और ध्‍यान नहीं देता है……………  वो कहता की जब तुम्‍हें पता है की आज पहली तारीख है………… ओर मैं पैसे लेने आऊँगा, तो सब बातों को इंतजाम पहले से ही क्‍यों नहीं करते…………….  कितना समय हमारा खराब होता है……….. मैं कोई फालतू तो नहीं हूँ……….. हमें भी बहुत काम करने होते है…………….  उसकी ये बाते सुनकर क्लर्क मन ही मन हंसता…………….


कोई 7-8 साल तक ऐसा चलता रहा………….  वह हर पहली तारीख को आता और अपने सौ डालर ले कर चला जाता…………. रथचाइल्‍ड ने बहुत धन बांटा, ऐसे और न जाने कितने ही भिखारी उसके यहां से यूं ही धन ले जाते थे…………. एक बार जब वह भिखारी आया तो क्‍लर्क ने कहा की इस महीने से तुम्‍हें पचास डालर ही मिलेंगे………….  क्‍योंकि मालिक को व्‍यवसाय कोई खास ठीक नहीं चल रहा है………….

तो उस भिखारी ने उस क्लर्क से पूछा ऐसा क्‍यों ? क्‍या तुम्‍हारी तनख्‍वाह में भी कुछ कमी हुई है…………. क्लर्क ने कहा नहीं…………. हमें तो पूरी ही मिलती है………….तब भिखारी ने उसकी और घूर कर देखा ………. तो ऐसा हमारे साथ ही क्‍यों हो रहा है…………. सालों से हमें सौ डालर मिल रहे है………….


क्‍लर्क ने कहां मालिक की लड़की की शादी है…………. उस में बहुत खर्च करना है…………. इस लिए उन्‍होंने दान को आधा कर दिया गया है…………. वह भिखारी तो एक दम आग बबूला हो गया और चिल्लाने लगा…………. उसने कहा बुलाओ मालिक को मैं बात करना चाहता हूं, मेरे पैसे को काट कर अपनी बेटी की शादी में लगाने वाला वह कौन होता है…………. एक गरीब आदमी के पैसे काटकर अपनी लड़की की शादी में मजे उड़ाने वाले गुलछर्रे उड़ाने वाला वह कौन होता है…………. बुलाओ, अपने मालिक को कहां है वो ?


रथचाइल्ड ने अपनी आत्‍म कथा में लिखा है, कि मैं गया और मुझे बड़ी हंसी आयी…………. लेकिन मुझे एक बात समझ में आयी कि यही तो हम परमात्मा के साथ करते है………….
यहीं तो हम सबने परमात्‍मा के साथ किया है। जो मिला है उसका धन्‍यवाद नहीं देते। उस भिखारी ने दस साल में कभी एक दिन भी रथचाइल्‍ड को धन्‍यवाद नहीं दिया। लेकिन पचास डालर कम हुए तो वह नाराज हो गया। शिकवा शिकायत की। आगबबूला हुआ। कि उसके पचास डालर क्‍यों काटे जा रहे है।

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वास्तव मे यह बिलकुल सही है…. हम सब यही कर रहे है…. फिर चाहे वो अपने माता पिता के साथ हो या फिर देश के प्रति हम यूं ही व्यवहार कर रहे हैं…….
हम जब भी अपने माता पिता, सगे संबंधियों या देश से जब तक प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से कुछ पा रहे होते हैं हम धन्यवाद नहीं कहते … किन्तु जब किसी मजबूरी या किसी कारणवश ये हमें कुछ दे पाने मे असमर्थ होते हैं तो हम शिकायतों का ढेर लगा देते हैं…… यहाँ तक की हमने भगवान को तक अपने इस व्यापार का अंग बना लिया है … हम प्रसाद ओर भोग का लोभ देकर अपने हित साधना चाहते हैं… ओर जब ऐसा हो जाता है तो हम इसे कर्मों का फल बता कर भगवान को इस से अलग कर लेते हैं… किन्तु जब ये नहीं होता है तो हम भगवान को निष्ठुर ओर निर्दयी बता कर अपनी असफलता उसके सर थोप देते हैं………..


तो आइये मिलकर शुक्रिया अदा करें उस परमात्मा का जो कई बार हमें इतनी खुशी तो देता है की लगे की बस इस एक पल मे ही जीवन सफल हो गया…….. पर कभी भी इतना गम नहीं देता की लगे बस अब अंत आ गया……….. ये हमारे ही नज़र का फेर है की छोटी सी असफलता को कई बार हम अंत मान लेते हैं…… जबकि वो ही नई शुरूवात का केंद्र होती है………..


आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें……… नव वर्ष आप सभी के जीवन मे नया उत्सव नया प्रकाश लाये….. भारत वर्ष इस नूतन वर्ष मे उच्चतम शिखरों को प्राप्त करे………. इन ही कामनाओं के साथ…………

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