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धृतराष्ट्र न बनें…

परिवर्तन की ओर.......
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हिन्दी फिल्म का एक दृश्य पुलिस की वर्दी में नायक के हाथ में रिवॉल्वर और सामने गैर कानूनी गतिविधियों में लिप्त उसका भाई और नायक की रिवॉल्वर की गोली नायक के भाई का सीना चीरते हुए निकलती है और उसका भाई वहीं ढेर…


हिन्दी फिल्मों मे कई बार माँ अपने उस बेटे, भाई अपने उस भाई (जो देश ओर समाज के विरुद्ध कृत्य करते हैं) को मौत के घाट उतार देते हैं। हम सारे दर्शक तालियाँ बजाते हैं. हम कहते हैं सही किया उसने….. ऐसे भाई या बेटे की यही सजा होनी चाहिए, देश और समाज से बड़ा कोई नहीं न भाई न माँ न बाप।


पर अगर ये बात हमारी रियल लाइफ मे घटे और हम उस फिल्मी माँ और भाई की जगह हों तो हम उस भाई या बेटे को गोली मारने के स्थान पर अपने भाई या बेटे के द्वारा किए गए हर गलत काम के लिए समाज को दोषी बता कर उसको बचा लेंगे. तब हम गाली देंगे इस सिस्टम को… और उसकी सारी गलतियों का दोषी सिस्टम को ठहरा कर खुद को और अपने भाई या बेटे को सही साबित करने का प्रयास करें। साथ ही हम ये साबित करने से भी नहीं चूकेंगे की हम वास्तव मे सबसे बड़े राष्ट्रभक्त हैं….


हम हर एक के कृत्य की अपनी सुविधा के अनुसार समीक्षा करने के अभ्यस्त हो चुके हैं। ये कुछ उसी तरह है की हम शीशे के सामने खड़े हैं और अपने चेहरे पर लगे किसी दाग को पोछने की जगह हम शीशे को पोछने मे लगे हैं.. और एक बार जब हम इस परंपरा के आदि हो जाते हैं तो फिर हमें हर वो कृत्य सही लगने लगता है जिसे की हम कर रहे हैं…. और जब एक बार ये भाव हमारे मन मे कहीं गहरे बैठ जाता है तो हम वास्तव मे न केवल अपने लिए अपितु सारे समाज के लिए एक खतरा बन जाते हैं…. क्योंकि ये समाज एक एक आदमी से ही बना है… और यदि सभी इस मानसिकता से ग्रसित हो जाएँ तो समाज का पतन निश्चित है……

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ये सारा संदेश 4 राज्यों मे होने वाले चुनावों के मद्देनजर है…. आज इस चुनाव की परीक्षा मे हम सभी मतदाता उस नायक की भूमिका मे हैं जिसके तन पर पुलिस की खाकी वर्दी है…. और रिवाल्वर के स्थान पर हमारे पास वोटिंग मशीन है…. ट्रिगर की जगह वोटिंग मशीन के बटन ने ले ली है…. और हमारे भाई या बेटे की जगह पर वो उम्मीदवार खड़ा है जिसे हम या तो जात के नाम पर, या धर्म के नाम पर, या किसी व्यक्ति के प्रति स्वामिभक्ति के कारण, या फिर किसी दल के प्रति निष्ठा के कारण वोट दे रहे हैं…. हमें मुद्दों का कोई भास नहीं है… यहाँ कई ऐसे मतदाता है जो किसी दल / परिवार या व्यक्ति के प्रति अंधी भक्ति से ग्रसित हैं…. कई मतदाता ये कहते पाये जाते हैं की फलां दल यदि किसी गधे को भी अपना टिकट दे तो वो उसे ही वोट देंगे….. और फिर वो ही व्यक्ति खुद को राष्ट्रभक्त भी कहेगा… अपने देश को गधों के हवाले करने की बात करने वालों को देशभक्त कहना शायद गधों का भी अपमान हो…



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कई लोग ऐसे भी हैं जो वर्षों से किसी एक दल या व्यक्ति को अपना समर्थन देते आए हैं…. तो उसके गलत होने पर भी उसको ही फिर वोट देने को तैयार हैं, क्योंकि उनको ये लगता है की अगर वो उस दल या व्यक्ति को छोड़ दें तो शायद इसमे उनकी नाक कट जाए…. क्योकि इसका सीधा अर्थ होगा की वो अब तक भी गलत थे…. और इस समाज का ये दोष भी है की यहाँ एक बार गलती करके सुधरने वाले को बार बार उसकी गलती की याद दिला कर उसका उपहास उड़ाया जाता है….

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पर इसमे कोई लज्जा वाली बात नहीं है…. क्योकि मतदान पूरी तरह से गुप्त है आपने अपना मत किसे दिया ये तब तक नहीं पता चलता है जब तक आप खुद किसी को न कहें तो फिर शर्म कैसी…..

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तो इस बार नायक की भूमिका मे रहते हुए वोटिंग मशीन रूपी रिवाल्वर से ट्रिगर रूपी बटन दबा कर किसी एक अच्छे उम्मीदवार को विजयी बना कर बाकी सभी को राजनैतिक मौत के घाट उतार दें……

ये देश किसी परिवार से किसी दल से या किसी व्यक्ति से बड़ा नहीं है…. हमारा किसी दल/ परिवार या व्यक्ति के प्रति प्रेम इसके विकास मे आड़े आए तो ये हमारा इस राष्ट्र के प्रति गैर जिम्मेदारना रुख ही स्पष्ट करेगा….

अतः वोट देने से पूर्व याद रखें की धृतराष्ट्र ने पुत्र मोह मे भले बुरे का अंतर न कर केवल पुत्र प्रेम को ही लक्ष्य बनाया… जिसने न केवल उसके पुत्रों को समाप्त किया अपितु एक बड़े जनमानस को युद्ध की अग्नि मे झोंक दिया…… अत: वोट देने से पूर्व अपने आंखो को हर और से साफ कर कोई स्पष्ट व सही निर्णय लें… ताकि हमेशा आप स्वयं पर गर्व कर सकें कि आपने हर पूर्वाग्रह को छोड़ कर एक सही निर्णय लिया….






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