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भारतीय राजनीति में सुधार…..

परिवर्तन की ओर.......
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वर्तमान दौर भारतीय राजनीति के पतन का दौर है। भारतीय राजनीति अपने निम्नतम स्तर पर पहुँच चुकी है। अफसोस इस बात का है की हम सभी इस बात को उद्घोषित तो करते हैं और राजनैतिक स्तर पर इसमे सुधार की बात भी करते हैं पर अपने स्तर पर ही कोई बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं।

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इस देश मे एक वर्ग ऐसा भी है जो केवल ये कह कर ही आत्म संतुष्टि कर लेता है की राजनीति मे सभी लोग अपराधी है, तो किसी को भी जीता कर या हरा कर कोई लाभ नहीं। ये वो वर्ग है जो हर बार हर सरकार के प्रति नाखुश है। जो नाखुशी मे ही अपना बड़प्पन समझता है। जो प्रत्याशी को परखे बिना उसके प्रति इस लिए दुर्भावना पाल लेता है क्योकी वोट देना उसे समय की बरबादी लगती है। और यही वर्ग हर बात पर लोकतन्त्र की दुहाई भी देता पाया जाता है।

भारतीय राजनीति अगर सुधारों की प्रक्रिया से दूर हट गई है तो इसका कारण कहीं न कहीं हम मतदाता हैं। जो आज भी किसी परिवार या किसी दल विशेष के सम्मुख झुकने मे ही सहज महसूस करते हैं।

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आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने कहा है की जैसी जनता , वैसा राजा । प्रजातन्त्र का यही तकाजा।

तो अगर हमारे नेता अपराधी है तो हम भी अपराधी हैं. क्योकि हम ही उस नेता को चुनने की प्रक्रिया का महत्वपूर्ण अंग हैं। कई बार हम चाह कर भी किसी उम्मीदवार को वोट इस लिए नहीं दे पाते क्योकि हम उसका या उसके दल के पूर्व मे विरोधी रहे होते हैं… और अब हमें ये लगता है की इसका समर्थन करना शायद खुद को गलत साबित करना सिद्ध हो… तब हमारी बुद्धि पर अहंकार का पर्दा पड़ जाता है जो ये भी याद नहीं रखता की खुद को मतदान करते हुए केवल आप ही देख रहे होते हैं….. और अपनी नज़रों मे गिरकर किसी की नज़रों मे ऊंचा उठना सबसे बड़ा पतन है…. गलती करना सबसे आसान कार्य है और उसको स्वीकार करना सबसे साहसिक प्रयास…

और हम साहस नहीं कर पाते हैं किसी एक योग्य नेतृत्व को चुनने का ……

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भारतीय राजनीति मे तब तक कोई सुधार नहीं हो पाएगा जब तक की हम लोग निजी हित को राष्ट्र हित से ऊपर रखेंगे… जब तक हम पैसे, शराब या कंबल के बदले वोट देंगे…. जब तक हम अपना आक्रोश ईवीएम के बटन दबाकर नहीं अपितु नेताओं पर जूते या थप्पड़ मार कर उतारेंगे….. हमारा लोकतन्त्र एक ऐसे लोकतंत्र मे बदल रहा है, जहाँ धनवान, नियम पर शासन करते हैं और नियम, निर्धनों पर… क्योंकि हम इन धनवानों को अपना वोट सहजता से बेच कर प्रसन्न हैं…..



राजनीति मे सुधार के लिए जनमानस की सोच मे सुधार की आवश्यकता है….. हमें ये समझना होगा की सरहद पर सिपाही खून जमा देने वाली ठंड और सूखा देने वाली गर्मी मे निरंतर हमारे लिए खड़ा है… हम वहाँ जा कर अपने देश के लिए खड़े नहीं हो सकते पर हम यहाँ इस ओर खड़े होकर एक सक्षम या योग्य नेतृत्व को चुन कर देश सेवा कर सकते हैं…. हम प्रण करें की हमारा वोट जाति, धर्म, धन आदि के नाम पर न बिक कर राष्ट्र के नाम पर दिया जाएगा… और जिस दें हम केवल राष्ट्र हित को सर्वोपरि बना लेंगे उसदिन राजनीति अपने से खुद सुधर जाएगी….

क्योकि हम तब वैसा ही प्रतिनिधि चुनेंगे जैसे की हम खुद हैं…………

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जागिए लोकतन्त्र की रक्षा के लिए आगे आयें………

आँखों का खुलना ही जागना नहीं होता.…. इसलिए अपने विवेक के स्तर से जागिए…..

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