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राजनीति में जातिवाद……..

परिवर्तन की ओर.......
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किसी भी लोकतन्त्र मे मतदान अन्य किसी भी दान से महान है… भारतीय संस्कृति मे कन्यादान को महादान कहा जाता है… पर मतदान इस से भी बड़ा दान है… जहां एक ओर कन्यादान मे पिता अपनी कन्या को किसी नए परिवार के साथ जोड़ कर उसको एक नए जीवन से परिचित करवाता है…. वहीं लोकतन्त्र मे एक मतदाता अपने मत से अपनी मातृभूमि अपने राष्ट्र के लिए नीति निर्धारकों का चयन करता है…

पिता अपनी पुत्री के विवाह के लिए सदैव लड़के के चयन से पूर्व पूरी तरह स्वयं को आश्वस्त कर लेता है की वास्तव मे ये लड़का उनकी पुत्री के लिए योग्य है… तभी वह अपनी पुत्री का हाथ उस व्यक्ति के हाथों मे सौपता है….. उसी तरह एक मतदाता को भी अपना मत दान करने से पूर्व अपने प्रत्याशी के बारे मे पूरी तरह पड़ताल करनी चाहिए…. कही सुनी बातों पर विश्वास न करते हुए… अपने विवेक से काम लेना चाहिए…

योग्य वर के मूल्यांकन के लिए हर पिता के कुछ मापदंड हैं… कभी जाति, कभी गोत्र, तो कभी कभी लड़के का परिवार उनके मूल्यांकन का आधार होते है… उसी तरह मतदाता को भी अपने मापदंड तय करने चाहिए… और वो विकास, स्वच्छ छवि, ईमानदार व्यक्तित्व व प्रत्याशी की वैचारिक क्षमता आदि होने चाहिए… क्योकि इस देश की मिट्टी से हम सभी ने जन्म लिया है… तो इस धरा के लिए हम एक समान है…. हमारी धर्म, जाति व गोत्र भले ही हमारे व्यक्तिगत जीवन कितना भी बड़ा मूल्य क्यों न रखते हों तो भी ये हमारे लिए राष्ट्र से बड़े नहीं हो सकते… ये धर्म, जाति, गोत्र आदि व्यवस्थाएं हम इन्सानो ने बनाई हैं… हमारी इस मातृ भूमि ने नहीं… इसी कारण जब बात राष्ट्र हित की हुई है हर बार सारा राष्ट्र सामाजिक भेदभाव मिटा कर एक साथ खड़ा हुआ है……

हमारी ये मातृ भूमि जितना एक हिन्दू को देती है उतना ही किसी भी अन्य धर्म को भी…… जितना एक ब्राह्मण को देती है उतना ही किसी अन्य जाति को भी देती है… इस भूमि ने हमें नहीं बाटा है अपितु हमने ही इसे कई भागों मे बाट दिया है… इस धरा पर सबका समान अधिकार है… और इसका उत्थान हमारे लिए महत्वपूर्ण होना चाहिए…. कोई फर्क नहीं पड़ता की तिरंगे की शान कोई हिन्दू बचाता है या कोई मुस्लिम …. विषय तिरंगे की शान बचाने का है…

सरहद पर मातृभूमि के लिए लड़ने वालों की जाति का कोई महत्व नहीं होता है…… महत्व उनकी निष्ठा, देश के प्रति समर्पण का होता है…. शहीद की कोई जाति कोई मजहब नहीं होता ….. तो फिर देश के विकास के लिए काम करने वालों की जाति व धर्म क्यों महत्वपूर्ण है…..

जिस अच्छे मृदुभाषी पिता के अयोग्य पुत्र के हाथों मे कन्या का पिता अपनी पुत्री का हाथ नहीं देता… वहीं अनाथ किन्तु योग्य व्यक्ति के हाथों मे अपनी पुत्री का हाथ सौपने मे पिता को कोई एतराज नहीं होता है…… उसी तरह किसी अच्छे से अच्छे दल के दबंग व्यक्ति को वोट देने की तुलना मे कई बेहतर किसी ईमानदार निर्दलीय व्यक्ति को वोट देना है…. कोई फर्क नहीं पड़ता की वो जीतेगा भी की नहीं…. पर जरूरी ये है की इन दलों तक ये सबक पहुंचे की ईमानदार छवि वाले व्यक्तियों की अब भी जनता कदर करती है….. और इस तरह के व्यक्तियों को टिकट देना उनके लिए मजबूरी बन जाए…

अंत मे एक आवश्यक बात…….
युवा इसे अपने लिए समझे और जो इस अवस्था से पार है वे अपने बच्चों (छोटों) के लिए पढ़ें … कि
ये बड़ा विचित्र प्रश्न है……
की जब आपकी परीक्षा मे केवल आपको ही जाना होता है…
और आपके इंटरव्यू मे केवल आप ही अपनी बात रख सकते हैं …..
तो फिर वोटिंग के लिए स्टार प्रचारकों पर निर्भर नेता हमारे प्रतिनिधि क्यों हैं….

जो अपनी बात पुरजोर तरीके से खूद जनता को नहीं समझा सकते वो आपका प्रदेश कैसे चलाएँगे…….
विधानसभाओं मे आपके विधायक महोदय ही होंगे जिन्हें आपकी आवाज़ सदन मे रखनी हैं…….. सोनिया गांधी, राहुल गांधी, नितिन गडकरी, लाल कृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, हेमा मालनी, मायावती या अन्य कोई भी स्टार प्रचारक उनकी बात सदन मे नहीं रख सकता…….

तो परखिये अपने नेता को की क्या वो अपने स्तर पर भी कुछ ज्ञान रखता है….. या एक वैचारिक पंगु को आप अपना प्रतिनिधि चुन रहे हैं…..

आपका सही वोट ही भ्रष्ट नेताओं के लिए तमाचा बन सकता है………

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