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विभिन्न दलों के चुनावी वादे और उन पर खरा उतरने की उनकी संकल्प शक्ति…

परिवर्तन की ओर.......
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चुनावों से पूर्व होने वाले वालों और बाद मे उनके पूरा न होने से बरबस ही एक गीत याद आ जाता है की…..
कसमें वादे प्यार वफा सब बाते हैं बातों का क्या….
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चुनावी वादों का साधारण सा गणित चुनावों मे लाभ कमाना है… इसके अतिरिक्त इन वादों का कोई और महत्व नहीं है….. इसी लिए इन्हें चुनावी वादे कहा गया है… वास्तव मे चुनाव नेताओं के अभिनय कौशल व झूठ बोलने की परीक्षा है… यहाँ सभी चुनावी दल ये सिद्ध करने का प्रयास करते हैं की कौन कितना कुशल अभिनेता है और कितना झूठ बोल सकता है…. कौन कितने घड़ियाली आँसू बहा सकता है…… और कौन कितना जनता को भावुक कर सकता है….

पूर्व मे राजनीति मे अभिनेताओं को लाया जाता था……. किन्तु अब सभी राजनेता स्वयं अभिनय करना सीख गए हैं इसलिए इनकी आवश्यकता कम ही हो गई है…… कई बार ये वादे इस तरह की हो जाते हैं की जिनका पूर्ण होना संभव ही नहीं है……. कई बार स्टार प्रचारक एक विधानसभा प्रत्याशी की सभा मे ये घोषणा कर जाते हैं की यदि ये यहाँ से जीत गए तो इस प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे…… जबकि सब श्रोतागण विधायक प्रत्याशी की योग्यता से पूरी तरह अवगत हैं की उन्हें कोई पद भी मिल पाये तो गनीमत है…….

पर क्योंकि नेता ये जानते हैं की चुनावी वादों से केवल जनता को बहलाना ही तो है इस लिए वो कोई कमी नहीं करते…..
एक बार एक सज्जन ने मुझसे पूछा की क्या क्या वादे करूँ की वोट मिल जाए….. तो मैंने पूछा की जो जो पूरे करने की क्षमता है वो करो…… तो वो बोला वादे की बात कर रहा हूँ ….. काम तो बाद मे जो हो पाएगा वो ही तो करेंगे…. पर अभी तो वादे करने हैं…..

तो मैंने उनको राय दी की जब वादे करने है तो फिर घबराना कैसा…. धरती आकाश और पाताल को एक करने वाले वादे कर लो……… वो सज्जन थोड़ा घबराए…. तो मैंने स्पष्ट किया की इन मतदाताओ को वादे करो की 24 घंटे बिजली, 24 घंटे पानी, गर्मियों मे हफ्ते मे 2 बार बारिश ताकि तापमान अधिक न बढ़े…. जाड़ों मे महीने मे एक बार बर्फबारी का आनंद दिया जाएगा, और जब जब अधिक ठंड हो एक सूरज अतिरिक्त लगवाया जाएगा…

बरसातों मे आवश्यकता से अधिक पानी नहीं बरसने दिया जाएगा…. और अंत मे समूहिक आवेदन पर किसी क्षेत्र विशेष मे आवश्यकता होने पर वहाँ के लिए अतिरिक्त बारिश, बर्फ या सूरज का प्रबंध किया जा सकता है……

वो सज्जन झल्ला गए…… वो बोले की इनता झूठ ये तो जनता सीधे पकड़ लेगी…. तुम तो हरवा दोगे….. मैंने सज्जन से पूछा की क्या आपको आखिर पार्टी ने टिकट कैसे दिया तो वो सज्जन बोले की हमारी जात के वोट यहाँ निर्णायक है……. और फिर पार्टी को वोट देने वालों का समर्थन तो यों ही मिल जाता है….. उन्हें वादों की कोई जरूरत नहीं…….. तो मैंने उन्हें समझाया की क्या आपको ये नहीं लगता की ये जनता पहले ही ये सब जानती है की आपके वादे केवल चुनाव जीतने तक ही है……. उसके बाद आपको कुछ करना है नहीं……

तो फिर आप कुछ भी बोलें…… ये लोग जो जाति, धर्म या दल को देख कर मतदान करते हैं… वो इस सफ़ेद झूठ वादों के बाद भी आपको ही वोट देंगे…… जिन आँखों मे पर्दे पड़े होते हैं उन आँखों को झूठ और सच पहचानने की अगर समझ होती तो पार्टियां आप जैसे लोगों को भला टिकट क्यों देती……

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चलते चलते….. अंत मे ये कहना चाहता हूँ की…….

ये चुनाव आपके विवेक की परीक्षा लेने के लिए ही आयोजित होते हैं…….. और इन नेताओं ने आपको (मतदाताओं को) पहले ही विवेक शून्य घोषित कर दिया है….. उन्होने पहले से ही ये मान लिया है की आपका वोट किस तरह से वो ले सकते हैं…… किन वादों से आप को बहलाया जा सकता है….. अगर ये नेता वादे पूरे ही कर पाते तो आज तक हर चुनाव मे हुए वादों के अनुसार हम सबसे अधिक विकसित राष्ट्रों की पंक्ति मे सबसे आगे होते…….

इस लिए मतदाताओं से अनुरोध …….. वादों पर न जाओ अपनी अकल लड़ाओ…..

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