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समझें सदन की गरिमा को….

परिवर्तन की ओर.......
परिवर्तन की ओर.......
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मिस्टर एक्स ने मिस्टर वाई को एक दिन आईना दिखा दिया………

अगले ही दिन मिस्टर वाई ने मिस्टर एक्स पर मानहानि का मुकदमा कर दिया……
मिस्टर वाई जैसा बर्ताव ही हमारे नेता भी कर रहे हैं……..


जब भी संसद की वास्तविक तस्वीर दिखाने की कोशिश कोई करता है तो उसे संसद की अवमानना कहा जाता है……
पर जब उसी सदन मे ये माननीय हँगामा करते हैं….
कुर्सियाँ फेंकते हैं……
अध्यक्ष की कुर्सी के सामने विधेयक की प्रतियाँ फाड़ते हैं……
जब विधानसभाओं मे अश्लील फिल्मे देखी जाती हैं…..
तो कोई अवमानना नहीं होती…..


जब जेलों से सदन तक जाने के रास्ते खोजे जाते हैं तब कोई अवमानना नहीं……
जब शोर शराबे के बीच आम आदमी के कई मुद्दे यूं ही लटका दिये जाते हैं कोई अवमानना नहीं…….
पर जब उनको इस बात का अहसास कोई करवाना चाहता है तो अवमानना ……..

इस देश के संविधान निर्माताओं को शायद कभी ये उम्मीद नहीं रही होगी की जो सदन की गरिमा की रक्षा के लिए संसदीय अवमानना का नियम बनाया गया है वो अपराधियों के खिलाफ बोलने वालों के लिए सजा बन जाएगा…..

हमारी कमजोरी ये है की कल कोई आदमी राष्ट्र हित की बात करेगा ……..
और जाहिर सी बात है की जब बात राष्ट्रहित की हो तो उसके लिए नेता को दोषी कहना ही होगा…….

और तब ये नेता कहेंगे की ये आदमी हिन्दू है या मुस्लिम है या ईसाई है ….
और ये धार्मिक हित साधने का प्रयास कर रहा है…..

तब आम आदमी उस आदमी के धर्म से खुद को अलग मान कर उसका साथ न देकर पीछे हट जाता है…..
वो ये भूल जाता है की जब बात राष्ट्रहित की है तो हिन्दू कौन और मुस्लिम कौन…… पहले ये देश है…….

और हमारी इसी भूलने की आदत को ये नेता हथियार बना लेते हैं……….
हमें अपनी यही आदत भुला कर हर उस आंदोलन का हिस्सा बनना होगा जो राष्ट्र हित मे है फिर वो भले ही उस दल के विपरीत ही क्यों न हो जिसे हम समर्थन करते हों…….

क्योंकि कोई भी दल इस देश से बड़ा नहीं………..


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