Menu
blogid : 1372 postid : 1449

कैसे कैसे मंजर सामने आने लगे हैं…..

परिवर्तन की ओर.......
परिवर्तन की ओर.......
  • 117 Posts
  • 2690 Comments

कैसे कैसे मंजर सामने आने लगे हैं…….
लिखते लिखते लोग गलियाने लगे हैं…..

जागरण जंक्शन एक ऐसा मंच जिसने सबको अवसर दिया अपने विचारों को इस मंच पर लिखने वाले अन्य लोगों तक पहुंचाने का……. मनुष्य विचारशील प्राणी है… और अपने विचारों को दूसरे तक पहुंचाना हर व्यक्ति का प्रथम शौक रहता है….. इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो विचार अच्छे हैं भी कि नहीं……. पर जागरण मे एक सुविधा थी कि आप प्रतिक्रियाओं के माध्यम से एक दूसरे के विचारों को सहमति या विरोध जाता सकें….. अर्थात एक सार्थक बहस आप कर पाएँ ऐसा माहौल दिया….. बहस से विचारों का मंथन होता है……. और मंथन से हमेशा सुफल ही मिलते हैं…… फिर चाहे आप समुद्र को मथ दें या फिर दहि को परिणाम अद्भुद ही होता है……..
इन्ही कुछ कारणों से लोगों ने इस मंच पर लिखना शुरू किया और बहुत अच्छी अच्छी रचनाएँ इस मंच पर आई भीं……… कविता, गजल, हास्य व्यंग, सामाजिक, राजनैतिक हर क्षेत्र पर यहाँ लोगों ने अपने विचार रखे……… कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को अपने सौन्दर्य से उतना प्रभावित नहीं कर पाता है जितना कि अपने विचारों से…… इसलिए यहाँ पर लिखते लिखते कई लोगों का आपस मे एक बढ़िया तालमेल बना…….. और एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव भी लोगों मे दिखा……..
जेजे ने बीच बीच मे कई बार इस मंच पर लिख रहे लोगों को अपने आचरण से रुष्ट भी किया……. पर हर बार किसी अन्य वरिष्ठ या कनिष्ठ ने उस ब्लोगर का क्रोध शांत कर माहौल को सकारात्मक बनाए रखा……..
जेजे की कार्यप्रणाली से रुष्ट होकर कई लोग इस से दूर भी हो गए…… पर अन्य उपस्थित लोगों ने इसकी रचनात्मकता को बनाए रखा……. इस बीच फेसबुक ने भी स्टेटस पर शब्द सीमा को बढ़ा दिया जिसके कारण एक और मंच बन गया जहां आप अपने विचार रख सकते हों……. और इसका सबसे बड़ा लाभ ये था की फेसबुक पर अधिकांश लोग वही आपके लेख पढ़ते जो आपके वयवहार से भली भांति परिचित हों……..
मैंने अपने कई लेखों मे या प्रतिक्रियाओं मे ये बार बार लिखा की…..
“लिखे हुए शब्दों के कोई भाव नहीं होते…….. कोई भी उन्हें उसी तरह पढ़ सकता है जैसे उसके खुद के भाव हैं……. ”
एक फिल्म मे धर्मेंद्र खलनायक से कहते हैं की “_ _ _ _ _ _मैं तेरा खून पी जाऊंगा.” फिल्म मे ये संवाद खलनायक को डरता है और इसी संवाद को कई कॉमेडी शो मे लोग दर्शकों को हसाने के लिए बोलते हैं…… संवाद एक ही है…. पर सारा अर्थ बदल गया… भाव के कारण………

तो जब भी लेख पढे जाए या उनपर कोई प्रतिक्रिया पढ़ी जाती है या दी जाती है तो हर पढ़ने वाला अपने भाव से उसे पढ़ता है……. कल अपने पुराने मित्र भाई राजकमल (जो इसी मंच पर मिले थे) के एक लेख पर एक प्रतिक्रिया पढ़ी जोकि एक मित्र संदीप भाई ने दी थी……… और उस प्रतिक्रिया पर एक अन्य सज्जन की प्रतिक्रिया थी जिसे मैं किसी भी भाव से पढ़ता तो भी शायद बुरा ही लगता….. अपशब्दों से भरी उस प्रतिक्रिया को पढ़ कर लगा की क्या ये ही हमारा ब्लोगिंग का उद्देश्य है…….
संदीप भाई इस मंच के दूसरे ऐसे सदस्य हैं जिनसे मैं रूबरू मिला हूँ…… इनके अतिरिक्त हिमांशु भट्ट जी जोकि मेरे सहकर्मी है से ही मेरा जेजे के बाहर परिचय हुआ है……. और संदीप भाई से मैं निजी तौर पर प्रभावित हुआ…… अपनी छोटी सी मुलाक़ात मे बेहद शांत और हंसमुख व्यक्ति लगे संदीप जी…… इस लिए उनके प्रति अपशब्द पढ़ कर अफसोफ़ हुआ…… वो भी राजकमल जी के लेख पर जहां बड़े बड़े दिग्गज केवल उनकी ही हास्य धारा मे बहते हैं……. जहां हर प्रतिक्रिया पर एक सुंदर हास्यास्पद प्रतिक्रिया की आशा सभी को रहती हैं…….
मैंने महसूस किया की कई बार उनके उत्तर अगर आप गंभीर भाव से पढ़ें तो शायद क्रोधित हो जाएँ……. पर यदि आप उन्हें उनकी आदत को ध्यान मे रखकर पढ़ें तो निश्चित ही प्रसन्न हो जाएंगे…….

ये हमारा निजी दायित्व है की इस मंच की गरिमा को बनाए रखने मे हम सहयोग करें…….
बोलना है करके कुछ भी बोलना………
और लिखना है करके कुछ भी लिखना,,,,,,,,,,, इन आदतों से हमें बचना ही होगा……

और ये जेजे का भी दायित्व है की वो कम से कम एक अनुशासन का डंडा भी अपने हाथ मे रखें और किसी भी घटिया लेख और घटिया कमेंट को लिखने वाले को एक चेतावनी देकर सुधार का मौका दे………. अन्यथा उसे प्रतिबंधित कर अपनी गरिमा को बनाए रखें……. ताकि उत्कृष्ट लेखों को इस मंच पर सम्मान पाएँ…… और इसी बहाने अच्छे लेखों को पढ़ने का अवसर भी मिले……..

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to alkargupta1Cancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh