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क्या सत्यमेव जयते…….. ?

परिवर्तन की ओर.......
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बड़े पर्दे के कई सितारे छोटे पर्दे पर आए और इस पर्दे को रोशन किया….. अमिताभ बच्चन की बड़ी सफलता से प्रभावित होकर शाहरुख खान, गोविंदा, सलमान खान, संजय दत्त, माधुरी दीक्षित सहित कई बड़े सितारे इस छोटे से पर्दे पर उतरे….


पर एक बार फिर आमिर खान ने साबित कर दिया की हर बार वो आम आदमी की नब्ज पकड़ कर अपने लिए सफलता खोज लेते हैं……

जो लोग आमिर खान की फिल्में देखते हैं वो निश्चित ही ये समझते हैं की हमेशा वो एक संदेशात्मक फिल्म मे अभिनय करते हैं…… एक छोटे से ईशान की कहानी तारे जमीन पर न जाने कितने ऐसे लोगों को आईना दिखा गई जिनके बच्चे कहीं न कहीं उस ईशान जैसे ही थे….. इंजीनियरिंग के छात्रों पर बनी फिल्म (बल्कि छात्रों पर बनी फिल्म जिन्हें कई बार माँ बाप की इच्छा के कारण इंजीनियरिंग करनी पड़ती है…..) 3 इडियट ने उन छात्रों का पक्ष रखा जो कई बार दबाव मे आत्महत्या कर लेते हैं….. या फिर कई बार बेमन से पढ़ाई करते हैं….. रंग दे बसंती ने भ्रष्टाचार के खिलाफ चंद उन युवाओं की कहानी दिखाई जिनहे कभी सामाजिक विषयों से कोई सरोकार ही नहीं था…… पर वो जब व्यवस्था के खिलाफ खड़े हुए तो फिर अपनी जान की बाज़ी लगा दी…..

इसी तरह छोटे पर्दे पर आमिर खान आए उनके कार्यक्रम सत्यमेव जयते के साथ…… इस कार्यक्रम ने पहले प्रसारण से पूर्व ही कई कीर्तिमान बना दिये जैसे ट्विटर, फेसबुक व कई अन्य सामाजिक साइट्स पर यह कार्यक्रम रिकॉर्ड चर्चा ले गया व प्रसारण के पहले ही दिन इस कार्यक्रम ने सफलता के कीर्तिमान बना दिये….. सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों को उठाने वाले इस कार्यक्रम का पहला दिन कन्या भ्रूण हत्या के नाम रहा….

इस कार्यक्रम के बाद कई लोग जिन्हें शायद ये कार्यक्रम पसंद नहीं आया…. वो आमिर के इस कार्यक्रम के खिलाफ आगे आए…. क्योंकि इस कार्यक्रम के खिलाफ कुछ भी लिखना कहीं न कहीं लिखने वाले को भ्रूण हत्या का समर्थक साबित कर सकता था इसलिए लोगों ने इसके खिलाफ परोक्ष रूप से लिखा….. लोगों ने आमिर की नियत पर सवाल उठाए…..

कुछ ज्ञानियों ने इसे आंसुओं के सहारे टीआरपी जुटाने का नाटक करार दिया……. तो कुछ ने इस कार्यक्रम के लिए आमिर द्वारा ली जा रही फीस को मुद्दा बनाया….. तो कई लोगों ने आमिर के अपनी पहली पत्नी को छोडने को मुद्दा बनाया…..

मुझे इन ज्ञानियों और दिग्विजय सिंह मे कुछ ज्यादा फर्क नहीं लगता …… जो अन्ना के आंदोलन पर कहते हैं की अन्ना खुद भ्रष्ट हैं…… या रामदेव पर कहते हैं की रामदेव ठग हैं….. बालकृष्ण का पासपोर्ट नकली है… पर क्या इन तर्कों से भ्रष्टाचार की लड़ाई को व्यर्थ साबित किया जा सकता है…….. उसी तरह इस कार्यक्रम सत्यमेव जयते के खिलाफ न बोलकर आमिर के विरोध से इन मुद्दों को झुठलाया जा सकता है……

मुझे उन लोगों की सोच पर तरस आता है जो इस कार्यक्रम को आंसुओं के सहारे टीआरपी जुटाने का नाटक कह रहे हैं….. वो भूल जाते हैं की जब संजय दत्त, सलमान खान एक पॉर्न स्टार को आपके घर तक पहुँचते हैं तब आपको उनमें कोई बुराई नज़र नहीं आती…… जब टीआरपी के लिए सास और बहू के बीच कई ऐसे घटनाचक्र बनाए जाते हैं जो घरों को तोड़ते हैं तब कोई बुराई नज़र नहीं आती है……. जब पारिवारिक धारावाहिक कहते कहते कार्यक्रमों मे अश्लीलता को परोसा जाता है तब किसी को कोई बुराई नज़र नहीं आती……..

जब फिल्मों मे नग्नता लिए सुपर स्टार आते हैं….. तब उनका कोई विरोध नहीं…… फिर इस बात पर आमिर का विरोध क्यों….. जब लोग नग्नता दिखाने के लिए पैसा ले रहे हैं तो फिर कोई आईना दिखाने के लिए पैसे ले तो क्या ऐतराज…… और जहां तक बात आमिर और उनकी पहली बीबी के संबंध मे है….. तो हमें इस बात पर भी विचार करना चाहिए की जब हम अपने ऑफिस मे अपनी पत्नी के साथ हो रहे झगड़े की सफाई नहीं देते तो फिर क्यों आमिर अपनी व्यक्तिगत जीवन के लिए अपनी व्यावसायिक जीवन को हानी पहुंचाए……. फिर घर के विषय ऐसे नहीं होते की किसी के घर की घटना को आप समझ सके …… किसी के अपने पत्नी/पति के साथ कैसे संबंध हैं ये उनका घरेलू विषय है…….. जब हम नहीं जानते की उनके इन सम्बन्धों मे किसका कितना दोष है तो हमें उसपर टिप्पणी का कोई हक नहीं है……..

रामायण का लेखक वाल्मीकि पूर्व मे एक डाकू था…… तो क्या इससे रामायण की महत्ता पर कोई फर्क पड़ता है… वाल्मीकि के अंतरतम मे जो क्रांति घटी उसे केवल वाल्मीकि ही समझ सकता था….. ऐसा ही कुछ अंगुलीमाल के जीवन मे भी घटा…….. हम उनको स्वीकार कर लेते हैं क्योंकि उनके होने से हमारे आज पर कोई आंच नहीं आती हैं…… पर जो हमें आज आईना दिखाएगा हम उसका विरोध ही करेंगे……

एक डॉ. जब मरीज को शराब छोडने को कहता है तो उसके ये कहने से की डॉ. साहब खुद शराब पीते हैं….. तो मैं क्यों छोडू…… क्या इसे तर्क संगत माना जाएगा…….

वास्तव मे ये हमारी बेईमानी की परकस्ठा है की हम हर उस बात मे कमी निकालने लगते हैं जो हमारे लिए अपनाना भरी पड़े…. जब बात भ्रष्ट नेताओं की होती है तो हम अन्ना के साथ खड़े होते हैं……. पर जब आंच सरकारी बाबुओं / प्राइवेट संस्थाओं पर आने लगती है तो हम कहते है की टीम अन्ना भटक गई है……

हमें सोचना होगा की क्या हम सत्य के साथ हैं भी……. क्या कहीं हम ही तो सत्य को पराजित  नहीं कर रहे…… अगर ये देश हमारे लिए बड़ा है तो फिर हमें अपने से पहले इसके लिए सोचना होगा…… अन्यथा बड़े बड़े शब्द ही अगर बोलने हैं तो मित्रो इसके लिए हमारे पास बहुत नेता पड़े हैं……… उनको ही ये कर लेने दो……..

कम से कम कल को कोई तो होगा जिसपर हर सारे इल्ज़ाम थोप सकें……..

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