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सरकारें………

परिवर्तन की ओर.......
परिवर्तन की ओर.......
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सरकारें सोती रहती हैं जब……
जंतर मंतर पर धरने होते हैं….
ये अक्सर सोई रहती हैं जब….
घोटाले घपले होते हैं…..
जब बात राष्ट्र के हित की होती है……
बड़ी गहरी नींद ये सरकारें सोती हैं…
जब आम जन की आवाज़ें नारों में गुंजा करती हैं….
तब ये सरकारें बस यूं ही सोया करती हैं….

ये सोती रहती हैं जब…
जब कालेधन और भ्रष्टाचार की बात चले……
बस सोई ही रहती हैं जब…..
शांति सद्भावना हेतु उपवास चले…..
ये सोती ही रहती हैं जब ……
अनाज गोदामों मे सड़ता हैं……
जब गरीब किसान आत्महत्या करता है…
तब अक्सर ये सोई ही होती हैं…….

जब बातें अहिंसा, अहिंसात्मक शब्दों से होती है…..
तब सरकारें बस सोती हैं……
जब वोट बैंक की बातें न हों…..
जब हिन्दू या मुस्लिम कह कर देश में बटवारे न हों…..
तब ये अक्सर सो जाती हैं..
जब तक कोई उत्पात न हो……

फिर सरकारें जग जाती हैं………
जब आतंकियों को बचाना हो……..
ये हरकत में आती हैं जब ……..
बांग्लादेशियों को बसाना हो……
ये छोड़ नींद जग आती हैं…..
जब चुनावों की सरगर्मी हो……….

इनकी नींद कहीं खो जाती हैं जब……
नोटों से जेबें भरनी हों……….
सरकारें हरकत में आती हैं जब …..
वोट के लिए मोबाइल देना हो…….
ये नए दांव चलती हैं जब …….
उसी मोबाइल के खर्चे को नए टैक्स से भरना हो……..

ये तुरंत बातचीत को आती हैं जब…….
रेल की पटरियाँ तोड़ी जाती है…….
गिर कर घुटनो पर मानती हैं…….
जब सरकारी संपत्ति फुकी जाती है….
सारी तंद्रा टूट जाती है जब …….
दंगों से वोट बनाने हों….
और आज्ञातवास मे रहतीं हैं जब…
बस दंगे भड़काने हों…..

वो गोरो की सरकारें थीं…….
जो अहिंसामय गांधी की बोली भी सुनती थी…. .
ये चोरों की सरकारें हैं……
बस गाली और गोली ही सुनती हैं……

गोरों की सरकारें थी जिसने …..
क्रांतिकारियों पर वार किये…..
ये चोरों की सरकारें हैं ….
ये आतंकवादियों से प्यार करें……
बटवारे तभी होते थे जब गोरों की सरकारें थीं……
अब लोग बांटे जाते हैं इन चोरों की सरकारों में……….

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