परिवर्तन की ओर.......
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जीवन बहती धारा सा है,
जो बीत गया,
लौटता फिर कहाँ है,
धारा ने कब सागर की सोची,
उसका काम तो बस बहना है,
छोटे छोटे पत्थरों से,
या फिर पर्वत चट्टानों से,
टकराकर अपनी राह बनाती,
धारा को तो बस चलना है,
धारा का कोई अतीत नहीं है,
न धारा को भविष्य पता है,
उसको तो अपनी राह बनाते,
कल-कल करते बस बहना है,
उसका न कोई सगा है अपना,
न ही कोई उसे पराया,
कभी किसी की प्यास बुझाई,
कभी किसी को पार उतारा,
लोगों के अवशिष्ट बहाकर,
अपने संग संग ले कर जाती,
नहीं शिकायत कभी किसी से,
धारा अविरल बहती जाती,
धारा को जीवन में अपनाकर,
हम भी यूं ही बहते जाएँ,
न क्रोध, बैर न घृणा किसी से,
सबको निर्मल करते जाएँ……..
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~~ पियूष कुमार पन्त
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