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पुजारा पुजारा हैं द्रविड़ नहीं…..

परिवर्तन की ओर.......
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पुजारा ने इंग्लैंड के खिलाफ पिछले टेस्ट में दोहरा शतक लगाया और इस बार फिर एक शतक लगा दिया, इसी के साथ सभी बुद्धिजीवियों और मीडिया और अखबारों ने पुजारा को दूसरा द्रविड़ साबित करने की एक मुहिम सी चला दी है…
अफसोस है की पता नही क्यों हम आदमी और मशीन में कोई फर्क कर पाते हैं, मशीन की अपनी एक तकनीक होती है, जिसे कुछ मामूली संशोधनों के साथ जब उतारा जाता है तो उसे पहले संस्करण से जोड़ा जाता है, अग्नि मिसाइल अग्नि-1, अग्नि-2 से अग्नि-5 तक, पेंटियम प्रॉसेसर P1 से P4 तक…… क्या पुजारा कोई मशीन हैं जो हम उन्हें नया द्रविण कह दें…

ये बड़ा ही अतार्किक है… किसी पेड़ से एक बीज गिरता है और नन्हा सा एक पौंधा बनता है तो हम उसे किसी खुले स्थान पर बो देते हैं, ताकि उसे एक खुला आकाश मिले, वो जहां चाहे उस ओर को बढ़े, हम उस पौंधे को उसी पेड़ के नीचे नहीं बो देते, क्योकि ऐसा करने से उसके विकास की संभावनाएं समाप्त हो जाती है… फिर हम व्यक्ति के साथ ऐसा क्यों करते हैं….
हम अभिषेक को युवा अमिताभ कह देते हैं, रोहन गावस्कर को जूनियर सुनील गावस्कर, हम हर बार किसी पुराने से ही तुलना करने के आदि हो चुके हैं। शायद इसी लिए हम नयी प्रतिभाएं विकसित भी नहीं कर पाते हैं….. अमिताभ अमिताभ बन पाये क्योंकि उनसे पहले कोई अमिताभ नहीं था… शायद अगर वो कवि होते तो उन्हें भी जूनियर हरिवंश कह कर समाप्त कर दिया जाता…. द्रविड़ द्रविड़ बन पाये क्योंकि उनसे पहले कोई द्रविड़ नहीं था…..
हर व्यक्ति अपनी विशेष प्रतिभा और योग्यता लेकर आता है, इस तरह किसी से उसकी तुलना उसे किसी से कम आँकने के समान है… हो सकता है की पुजारा राहुल द्रविड़ को भी पिछाड़ने में सक्षम हों पर इस तरह उन्हें नया द्रविड़ कहने से उनका पहला मुक़ाबला द्रविड़ से ही हो जाएगा….तब शायद वो अपना नैसर्गिक खेल न खेल कर केवल द्रविड़ को ही अपने खेल में उतारने की कोशिश करने लगें…. और तब शायद हम एक नए किस्म के खिलाड़ी को देख पाने से वंचित हो जाएँ…..

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