Menu
blogid : 1372 postid : 1478

खंतोली जहां मंगलकामनाओं का पर्व है होली….

परिवर्तन की ओर.......
परिवर्तन की ओर.......
  • 117 Posts
  • 2690 Comments

रंगों के त्योहार होली के अपने आप में भी कई रंग है। कहीं ये होली रंगों से रंगे चेहरों के साथ हुड़दंग का पर्व है, तो कहीं रंगों के पीछे ऊंच-नीच, जातपात, अमीरी-गरीबी के भेद को ढककर एक दिन के लिए ही सही एक समान हो जाने का पर्व भी है।

इस सबसे अलग बागेश्वर ज़िले की काण्डा तहसील के खंतोली गाँव की होली का रंग है। यहाँ होली त्योहार है, गाँव की समृद्धि व ग्रामवासियों के लिए मंगल कामना का। यहाँ होली का प्रारम्भ होता है, अष्टमी के दिन गाँव के देवी मंदिर में विधि विधान के साथ एक कपड़ा (चीर) बांधे जाने के साथ।
एकादशी के दिन सुबह होलीखाला (गाँव का एक स्थान जहां होली के सारे कार्यक्रम शुरू व समाप्त होते हैं) में गाँव का होलार (होली गाने वाले दल का प्रमुख व्यक्ति) चीर बांधता है। चीर बांधने के बाद गीत गाकर प्रतीकात्मक रूप से मथुरा से होली मंगायी जाती है।

उसके बाद सभी लोग हर रोज होलीखाला में एकत्र होकर वहाँ से गाँव के प्रत्येक घर में जाकर होली गाते हैं। गाँव का हर घर होली गाने वाले इन होलारों का स्वागत करता है। गुड और पान सुपारी अपनी सुविधा के अनुसार इनके सम्मुख रखे जाते है। फिर हर घर के आँगन में खड़े हो कर होलार होली गाते हैं, नृत्य करते हैं, और कई बार हास्य व्यंग के मनोरंजक कृत्य (जिन्हें स्थानीय भाषा में स्वांग कहते हैं) करते हैं और होली का गीत समाप्त होने पर होलार उस घर के सभी सदस्यों के मंगल की कमाना करते हुए सभी को आशीष देते हैं।

इस पर्व की महत्ता और आस्था का अनुमान मात्र इस बात से लगाया जा सकता है की इस गाँव के वे लोग जो बाहर बस गए हैं और जिनके पुराने मकान अब खाली रह गए हैं वो भी कम से कम उस दिन अपने घर आते हैं जिस दिन होली उनके आँगन में आनी होती है, घर न आ पाने की स्थिति में वे लोग अपने आस पड़ोस के लोगों को होली के दल के स्वागत व उनके टीके के लिए धन भेज कर ये अनुरोध करते हैं की जब होलार उनके घर के आँगन में आए तो वो उन होलारों का स्वागत कर उन्हें होली के गीत गाकर उनकी कुशल के लिए आशीर्वाद लें।

हर घर के लिए होली का एक दिन निर्धारित होता है जब होलार उस घर के आगे जाकर होली गाते हैं। प्रत्येक दिन के लिए निर्धारित घरों में होली गा लेने के बाद होली गायन का पूरा दल फिर होली खाला में जमा होता है। और फिर वहाँ चीर को रख कर सब अपने अपने घरों की ओर चले जाते हैं। फिर रात्रि में गाँव के पुरुष होलीखाला में जमा होकर होली गायन करते हैं और तरह तरह के व्यंग विनोद से लोगों का मनोरंजन करते हैं।

चतुर्दशी के दिन गाँव के लोग मिलकर होली गाते हुए गाँव के मंदिरों में जाकर भगवान से गाँव की समृद्धि व लोगों की कुशल के लिए प्रार्थना करते हैं। पुर्णिमा के दिन होली का समापन होता है। इस दिन रात्रि में होलिका दहन का कार्यक्रम होता है। होलार चीर के टुकड़ों को अलग कर लेता है। और होलिका को जला दिया जाता है। अगले दिन छरड़ी के दिन गाँव के लोग जमा होकर होली को गीतों के माध्यम से वापस मथुरा भेज देते है।

टीके वाले दिन होलीखाला में प्रसाद व चीर के टुकड़ों को वितरित किया जाता है। और चीर के इन टुकड़ों को भगवान के प्रसाद के स्वरूप में ग्रहण कर इन्हें लोग अपने गले अथवा हाथ मे इस विश्वास के साथ धारण कर लेते हैं की उनके इष्ट देवताओं का आशीर्वाद का यह प्रतीक हर कष्ट से उनकी रक्षा करेगा।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh